देश में संसाधन सीमित हैं लेकिन आबादी बेहद तेजी से बढ़ती जा रही है। हर साल बढ़ती जनसंख्या के आँकड़े दर्शा रहे हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है। देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर लगातार बहस जारी है। अब इस संबंध में कानून को लेकर कुछ सांसद कागजी दिलचस्पी भी दिखा रहे हैं। इसी कड़ी में मुख्य विपक्षी दल कॉन्ग्रेस के सांसद अभिषेक मनु सिंघवी दो बच्चों की नीति वाला विधेयक राज्यसभा में पेश करने वाले हैं।
सिंघवी का प्रस्ताव है कि दो बच्चा नीति को मानने वालों को प्रोत्साहन और ना मानने वालों को हतोत्साहित या सुविधाओं से वंचित किया जाना चाहिए। सिंघवी निजी हैसियत से ‘हम दो-हमारे दो’ नीति वाला जो विधेयक पेश करने जा रहे हैं उसको सदन में पेश करने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। अभिषेक मनु सिंघवी के Population Control Bill, 2020 के प्रस्ताव में कहा गया है कि दो बच्चा नीति का पालन नहीं करने वालों को चुनाव लड़ने, सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति लेने, सरकारी योजनाओं या सब्सिडी का लाभ लेने, बीपीएल श्रेणी में सूचीबद्ध होने और समूह ‘क’ यानी Group A की नौकरियों के लिए आवेदन करने से रोका जाना चाहिए।
साथ ही विधेयक में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि केंद्र सरकार को राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण फंड की स्थापना करनी चाहिए ताकि जो लोग दो बच्चा नीति का पालन करना चाहते हैं उनकी मदद की जा सके। इसके अलावा सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भनिरोधकों को उचित दर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
विधेयक में एक ही बच्चे पर नसबंदी कराने वालों को सरकार की ओर से विशेष प्रोत्साहन देने की पैरवी की गई है। मसलन, उनके बच्चे को उच्च शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में वरीयता दी जाए। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले वैसे दंपति जो खुद नसबंदी कराते हैं उन्हें केंद्र की ओर से एकमुश्त रकम के माध्यम से मदद करने की बात कही गई है। कहा गया है कि अगर दंपति का एक ही बच्चा हो और वह लड़का हो तो उन्हें 60 हजार रुपए और यदि एक ही लड़की हो तो उन्हें 1 लाख रुपए दिए जाएँ।
विधेयक में कहा गया है कि इसके लागू होने के बाद केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लिखित में यह भी देना चाहिए कि वह दो बच्चा नीति का पूरी तरह से पालन करेंगे। जिन कर्मचारियों के पहले से ही दो से ज्यादा बच्चे हैं, वह भी लिखित में यह देंगे कि वह अब और बच्चे पैदा नहीं करेंगे। केंद्र सरकार को भी नियुक्तियों के समय उन्हीं लोगों को वरीयता देनी चाहिए जिनके दो या उससे कम बच्चे हों। सरकारी कर्मचारियों के बच्चों में यदि कोई दिव्यांग है या कोई अन्य ऐसी परिस्थिति है कि तीसरा बच्चा आवश्यक है तो ही उसे विधेयक में प्रस्तावित किए गए नियमों के तहत छूट मिलेगी। विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि दो बच्चा नीति का पालन जो भी सरकारी कर्मचारी नहीं करें उनकी सेवाएँ समाप्त की जा सकती हैं।
कॉन्ग्रेस सांसद सिंघवी ने विधेयक के बारे में कहा, “बढ़ती जनसंख्या भारत के सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डाल रही है। इस कारण मैं दो-बच्चे के आदर्श नीति को लागू करने का आह्वान करता हूँ। वास्तविक समृद्धि और कल्याण को हमेशा प्रति व्यक्ति आय में मापा जाता है न कि सकल आय में। जब भी हम 5 ट्रिलियन और 20 ट्रिलियन इकोनॉमी की बात करते हैं, तो अच्छा लगता है, लेकिन यह तभी संभव है जब प्रति व्यक्ति आय बढ़े।”
गौरतलब है कि संसद के वर्तमान बजट सत्र में ही भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने जनसंख्या नियंत्रण कानून की माँग करते हुए इसे समय की जरूरत बताया और कहा कि वर्तमान में ही सभी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना संभव नहीं हो रहा है, जबकि जब आबादी 150 करोड़ के पार पहुँच जाएगी तब पीने का पानी मिलेगा ही नहीं।
सांसद ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जनसंख्या कई गुना बढ़ती है, जबकि संसाधनों में बहुत कम वृद्धि हो पाती है। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना चाहिए जो ‘हम दो-हमारे दो’ पर आधारित हो और इसका पालन नहीं करने वालों को हर तरह की सुविधाओं से न सिर्फ वंचित किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें किसी भी प्रकार के चुनाव लड़ने से भी रोका जाना चाहिए। लोकसभा में भी यह मुद्दा कई बार उठ चुका है। कई नेता जनसंख्या नियंत्रण कानून के समर्थन में आवाज उठा चुके हैं।