राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत असम के दौरे पर हैं, जहाँ उन्होंने एक पुस्तक के लॉन्च में हिस्सा लिया। इस पुस्तक में CAA और NRC को लेकर चल रही नागरिक की बहस के सम्बन्ध में लिखा गया है। इस दौरान सरसंघचालक ने कहा कि इस कानून का समर्थन और विरोध दोनों के पीछे चिंतन है, लेकिन किस चिंतन की दिशा कल्याणकारी है – हमें ये देखना है। उन्होंने कहा कि आजकल हर बात पर बवाल मचाने की पद्धति चल पड़ी है, पर हमें सच्चाई से डरना नहीं चाहिए।
उन्होंने भारत के उदाहरण देते हुए कहा कि यहाँ हजारों वर्षों से विविधताओं के बीच कई पंथ और संप्रदाय के लोग एक साथ जिस तरह से रह रहे हैं, वैसा कहीं और देखने को नहीं मिला। उन्होंने कहा कि हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक और कामरूप से लेकर कच्छ तक, अलग-अलग राज्य होने के बावजूद भारतवर्ष में लोग कहीं यात्रा कर सकते हैं। कोई पासपोर्ट वाला कंसेप्ट नहीं था। उन्होंने कहा कि हम एक-दूसरे के रिश्तेदार हैं, बंधु हैं, इसीलिए आज की तारीख़ में सारी दुनिया की नागरिक ‘वन’ है।
उन्होंने कहा कि CAA और NRC को जबरन सांप्रदायिक जामा पहनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हर एक प्रदेश का अपना-अपना इतिहास है, जो मिल कर एक हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत विरोधी इतिहासकारों की भी मानें तो 4000 वर्षों से ये चल रहा है, हालाँकि ये अनुमान गलत है और हम काफी प्राचीन हैं। उन्होंने कहा कि जीवन का विचार ये नहीं होना चाहिए कि हम जहाँ भी रहें हावी रहें, ये होनी चाहिए कि सब साथ में रहें।
उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी धर्म या भाषा से हमें कोई आपत्ति नहीं है। साथ ही दोहराया कि जब ऐसा कहा जाने लगा कि यहाँ मेरा खानपान चलेगा, मेरा ईश्वर चलेगा और मेरी भाषा चलेगी – तब हमें समस्या ज्ञात हुई। उन्होंने कहा कि (नीचे के वीडियो में 1:19:50 के बाद से) 1930 से योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिमों की संख्या बढ़ाने के प्रयास हुए हैं, ताकि वो अपना वर्चस्व स्थापित कर के देश को पाकिस्तान बना दें। उन्होंने कहा कि पंजाब, बंगाल, असम, सिंध – हर जगह ये था।
मोहन भागवत ने कहा कि कुछ मामलों में ये सत्य भी हुआ, क्योंकि भारत से पाकिस्तान अलग हो गया, लेकिन असम नहीं गया और बंगाल व पंजाब आधा-आधा चला गया। उन्होंने कहा कि बीच में वो लोग कॉरिडोर चाहते थे, लेकिन ये नहीं मिला। उन्होंने कहा कि उद्देश्य एक ही था कि संख्या बढ़े, और इसके लिए आज भी उनकी सहायता की जाती है। उन्होंने कहा कि सोच ये थी कि हम जहाँ रहें वहाँ हमारा वर्चस्व चले और बाकी हमारी दया पर रहें।
मोहन भागवत ने कहा, “जिनकी संख्या कम हो जाती है और उनकी बढ़ जारी है, तो कम वालों को सदा चिंता में रहना पड़ता है। ये भारत का, असम का अनुभव है। हमें आपकी भाषा-पूजा पद्धति से कोई दिक्कत नहीं है, हम सम्मान करेंगे। इस्लाम में भी ये आदर्श की बातें हैं लेकिन इन सबका अनुसरण भारत में होता रहा है। हमें ये सब दुनिया से नहीं सीखना है। हमारा रिश्ता कोई सौदा नहीं है, हम एक-दूसरे के भाई हैं।”
उन्होंने कहा, “नागरिकता एक तकनीकी मुद्दा है। संविधान में हमारे कर्तव्य बताए गए हैं। इन नागरिक कर्तव्यों को इस देश में रह कर वो करना ही है – ऐसा संकल्प करने वाला ही यहाँ का नागरिक है। दिक्कत तब आती है जब संवैधानिक कर्तव्य नहीं चाहिए और अधिकार चाहिए, ऐसा कहा जाता है। यहाँ रहने वाले प्रत्येक का इस भूमि के प्रति कर्तव्य है और वो किसी पूजा-संप्रदाय पर आधारित नहीं है।”
मोहन भागवत ने कहा, “CAA और NRC किसी भारत के नागरिक के विरुद्ध बनाया गया कानून नहीं है, इससे यहाँ के नागरिकों या मुस्लिमों को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा। आज़ादी के समय हमने अपने देश के अल्पसंख्यकों की चिंता करने की बात कही थी, जो हम आज भी कर रहे हैं पर पाकिस्तान ने नहीं किया। ये हिन्दू-मुस्लिम का विषय ही नहीं है, राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा बना दिया गया है।”