राजनीति के गलियारे में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता ही रहता है, मगर चुनाव के समय ये कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है। अक्सर देखा गया है कि चुनावी समय में नेता लोग विपक्षी दल के नेताओं पर कुछ आरोप लगा देते हैं या फिर कोई विवादित बयान दे देते हैं। मगर जब से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अमेठी के साथ साथ-साथ केरल के वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, विपक्षी पार्टी भाजपा के साथ-साथ कॉन्ग्रेस के ‘अपने’ यानी कि वाम दल भी उनके खिलाफ हमलावर हो गए हैं। वाम दल के नेता भी राहुल गाँधी के इस फैसले से खफा हैं और उनके खिलाफ विवादित बयान दे रहे हैं।
बता दें कि केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता वी एस अच्युतानंदन ने सोमवार (अप्रैल 1, 2019) को राहुल और कॉन्ग्रेस पर प्रहार करते हुए कहा कि उन्होंने पहले जो राहुल गाँधी को ‘अमूल बेबी’ कहा था, वह बात आज भी प्रासंगिक है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के संस्थापक सदस्यों में से एक 95 वर्षीय अच्युतानंदन ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि अप्रैल 2011 में जब उन्होंने राहुल गाँधी को ‘अमूल बेबी’ कहा था, तो यह बेवजह नहीं था। राहुल ने राजनीति में जो बचपना दिखाया, उसकी वजह से उन्होंने ये बात कही थी और जब राहुल ने वायनाड से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, तो उनकी बात आज भी सही ठहरती है। अच्युतानंद कहते हैं कि आज, जब राहुल अधेड़ उम्र के हो रहे हैं, तो भी उनका बचपना जारी है और वह भी ऐसे समय में जब देश भाजपा के रूप में सबसे बड़ी समस्या का सामना कर रहा है। इस समय जरूरत भाजपा से लड़ने की है।
CPM leader & former Kerala CM VS Achuthanandan in his Facebook post: I called Rahul Gandhi ‘Amul Baby’ earlier, because of his attitude of approaching situations without understanding them. What will happen in Wayanad if Rahul comes? Left parties will fight against Rahul & BJP.
— ANI (@ANI) 1 April 2019
‘सेकुलर’ दलों से हाथ मिलाने की बात कहने वाले राहुल गाँधी (जिनकी बात कॉन्ग्रेस में अंतिम मानी जाती है) ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी से हाथ नहीं मिलाया। दक्षिण में राहुल ने वाम मोर्चा से ही लड़ने का फैसला ले लिया! ऐसे में अच्युतानंद का कहना है कि यह तो वैसे ही है जैसे किसी पेड़ की उस शाखा को काटना, जिस पर आप बैठे हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि राहुल के बारे में उन्होंने जो सालों पहले ‘अमूल बेबी’ बोला था, वह आज भी वैसे ही लागू होता है।
वीएस अच्युतानंदन वाला बवाल अभी शांत भी नहीं हुआ था कि केरल से ही दूसरा बवाल खड़ा भी हो गया। वहाँ की सत्ताधारी सीपीएम के अखबार ‘देशाभिमानी’ में राहुल गाँधी को ‘पप्पू’ के नाम से प्रकाशित किए जाने को लेकर विवाद पैदा हो गया है। इस अखबार में ‘कॉन्ग्रेस के पतन के लिए पप्पू ने लगाया जोर’ शीर्षक से संपादकीय लिखा गया है। इसमें कहा गया है कि राहुल गाँधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी में हार के डर से वायनाड से चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
अब नेताओं के बीच तो एक दूसरे को लेकर बयानबाजी चलती रहती है। राजनीति में तो ये सब एक आम बात है, मगर किसी अखबार का किसी राजनेता को लेकर इस तरह के विवादित शीर्षक ‘कॉन्ग्रेस के पतन के लिए पप्पू ने लगाया जोर’ लिखना कहाँ तक सही है? अखबार सूचनाएँ प्रदान करने का बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावी संस्थान होता है, जो देश-समाज में घट रही घटनाओं की संपूर्ण व सटीक जानकारी देता है। ये अखबार के संपादक की जिम्मेदारी होती है कि अखबार में किसी तरह की कोई विवादित सामग्री का प्रकाशन न हो। अगर कोई नेता किसी के बारे में कुछ विवादित टिप्पणी करता है, तो ये उस नेता का निजी विचार होता है, इसलिए उस नेता की टिप्पणी को लेकर संपादकीय लिख देना संपादक के गैर-जिम्मेदराना रवैये को दर्शाता है।
हालाँकि, मामले को बढ़ता देख सीपीएम ने इसे संभालने की कोशिश करते हुए कहा कि असावधानी की वजह से यह भूल हुई है और अखबार के स्थानीय संपादक पीएम मनोज ने भी स्वीकार किया कि ये संदर्भ गलत था और असावधानी के कारण भूल हुई है। उन्होंने माना कि किसी राजनेता के प्रति गलत बात कहना उनकी राजनीति नहीं है और वो इसे आगे ठीक कर लेंगे।