Monday, December 23, 2024
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क्या सच में मोदी ने संस्थाओं को कमज़ोर किया? आंकड़े और तथ्य तो कुछ और ही कहते हैं

विश्व स्तर पर प्रसिद्ध संगठनों ने विभिन्न मापदंडों पर भारत का उन्नयन किया- क्रेडिट रेटिंग, व्यवसाय करने में आसानी, बिजली पहुँच, गरीबी मिटाने आदि और भी काफी सारे पैमानों पर भारत आगे बढ़ता नज़र आया। ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध है जहाँ मोदी सरकार के तहत भारत के विकास को पहचाना और सराहा गया है।

यदि हम ध्यान से देखें, तो पिछले 5 वर्षों में विपक्षी दलों, विशेषकर कॉन्ग्रेस, के द्वारा लगातार एक साजि़श की गई है। जैसे ही कॉन्ग्रेस ने देखा कि मोदी सरकार अनेक योजनाओं के माध्यम से अच्छे परिणाम दे रही है, उन्होंने योजनाओं, लोगों, प्रणालियों, संस्थानों, सुधारों को ही बदनाम करना शुरू कर दिया और इनका गलत प्रचार किया।

अपने किए गए पहले के गलत कार्यों की जवाबदेही से खुद को बचाने की कोशिश के अलावा, इनका उद्देश्य मोदी सरकार को मिलने वाले राजनीतिक लाभ को भी कम करना है। फिर चाहे इससे संस्थाओं की अवमानना या देशहित को नुकसान ही क्यों न हो। और तो और, अपनी गलत मंशा को छुपाने के लिए, इन्होंने मोदी सरकार पर ही संस्थाओं की अवमानना और संविधान की अवहेलना का आरोप लगाना शुरू कर दिया। विपक्ष के गलत प्रचार एवं मीडिया के एक वर्ग के विपरीत, यह लेख, तर्क व तथ्यों के आधार पर मोदी सरकार के द्वारा संस्थानों की सुदृढ़ता के लिए किए गए अथक प्रयासों पर प्रकाश डालता है।

जरा सोचिए, कॉन्ग्रेस व अन्य विपक्षी दल अगर विपक्ष में रहकर देशहित का इतना नुकसान कर सकते है, तो सत्ता में रहकर कितना विनाश किया होगा।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी पर अपने गलत बयान को माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला बताकर पेश करना ये दिखाता है कि अब कॉन्ग्रेस जिस अवस्था में है, वो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

इस लेख के माध्यम से विभिन्न स्थितियों में महत्वपूर्ण संस्थानों के प्रति मोदी सरकार व विपक्षी दृष्टिकोण को आँकने का प्रयास किया गया है। इस लेख को 7 भागों में विभाजित किया गया है एवं संस्थागत सम्मान व अवमानना किसके द्वारा की गई, यह अंको से दर्शाया गया है।

भाग 1 – न्यायालय व जाँच संस्थाएँ

सत्ता में रहते हुए कॉन्ग्रेस द्वारा जाँच संस्थाओं का उपयोग स्वयं के हित के लिए करना कोई नई बात नहीं है। एक उदाहरण- UPA के कार्यकाल के अंतर्गत 2G मामले की जाँच (जिसके सबूतों की जाँच UPA के कार्यकाल मे ही पूरी हुई), जिसमें अपराधियों को रिहा कर दिया गया। यह बताना आवश्यक है कि माननीय कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा (नोट कीजिए कि ये हिस्सा इंग्लिश से हिंदी ट्रांसलेट किया हुवा है, कोशिश की गई है कि अर्थ वही हो)- “यह एक अच्छी तरह से कोरियोग्राफ की गई चार्जशीट थी, जिसमें गलत तथ्य थे और वे स्वतंत्र होने के हकदार बन गए”।

“मैं यह भी कह सकता हूँ कि पिछले लगभग 7 वर्षों से, मैं रोज़ सुबह 10 से शाम 5 बजे तक कोर्ट में बैठे रहता था, इस इंतज़ार में कि किसी के पास ऐसा सबूत हो जिसे कानून स्वीकार करे ,लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।”

मोदी सरकार को 2G घोटाले के मामले को फिर से खोलने की अपील करनी पड़ी। बल्कि, पहले दिन से ही मोदी सरकार की भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई, सभी के लिए स्पष्ट थी।

कॉन्ग्रेस को यह शुरुआत में ही समझ आ गया था कि उनके द्वारा किए गए गलत कार्यों (भ्रष्ट सौदे, फ़ोन बैंकिंग द्वारा दिए हुए बैंक ऋण, NPA आदि) का खुलासा होने वाला है तथा कई बड़े नेताओं के जेल जाने की संभावना भी है, और जिसका पूरा राजनीतिक श्रेय भी NDA को मिलेगा। इससे बचने के लिए, कॉन्ग्रेस ने पिछले 5 वर्षों में BJP नेताओं के तथाकथित भ्रष्टाचार की झूठी कहानियों का प्रचार किया।

बल्कि, ठीक इसके विपरीत, मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार व आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए कई कदम उठाए व संस्थाओं को सशक्त बनाया।

1. IBC के रूप में कानून पारित करके NCLT (एक महत्वपूर्ण संस्था) को सशक्त बनाया और कई NPA खातों का समाधान किया। NPA से निपटने का यह तरीका, कॉन्ग्रेस की अस्पष्ट नीतियों और तरीकों से पूर्णतया विपरीत है।

2. भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए संस्थाओं को सशक्त बनाया गया। जिससे कि, नीरव मोदी, चौकसी, माल्या आदि भगोड़ों की संपत्ति (विदेशी संपत्ति सहित) को जब्त किया। मोदी सरकार ने भगोड़ों के प्रत्यर्पण के लिए लगातार प्रयास किया एवं सफलता प्राप्त की या सार्थक प्रगति की।

मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई देखकर कॉन्ग्रेस ने अधिकारियों को यह धमकी दी (संस्थागत अवमानना का एक रूप) कि उन्हें यह याद रखना चाहिए, कॉन्ग्रेस कुछ समय में सत्ता में आ जाएगी और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।

(स्कोर- मोदी +1, विपक्ष -1)

मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं भ्रष्टाचार व अपराधियों पर सही कार्रवाई के लिए संस्थाओं को दी गई छूट अच्छे परिणाम दिखा रही है, जो इस प्रकार है-

1. इतिहास में पहली बार, पिछले 5 वर्षों में 18 भगोड़ों को भारत वापस लाया गया। यह एक तरह से संस्थागत स्वतंत्रता का ही परिणाम है।

2. गाँधी, वाड्रा, यादव, चिदंबरम आदि के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों की जाँच जारी है

3. लालू यादव को कई घोटालों के लिए जेल भेजा गया

4. माननीय दिल्ली HC ने अपने फैसले में यह निष्कर्ष निकाला कि सोनिया और राहुल गाँधी ने नेशनल हेराल्ड मामले में देश को धोखा दिया। एक अन्य मामले में दोनों ज़मानत पर बाहर हैं। इसके अलावा, बड़ी मात्रा में करों का भुगतान नहीं करने के कारण, अब अदालतों द्वारा कर जमा करने के निर्देश दिए गए है।

5. रोबर्ट वाड्रा से संबंधित कुछ हरियाणा भूमि सौदे रद्द कर दिए गए हैं। वाड्रा के मामलों में ED की कठोर पूछताछ चल रही है।

कई बड़े दिग्गजों की ईमानदारी से जाँच की जा रही है जिससे कानूनी संस्थाएँ मज़बूत व सशक्त बनेंगी एवं भविष्य में भ्रष्टाचार करने से पहले कोई भी दस बार सोचेगा।

(स्कोर- मोदी +2, विपक्ष -1)

जाँच अधिकारियों को धमकाने में मिली असफलता के पश्चात कॉन्ग्रेस ने संस्थानों में आंतरिक झगड़ों का सहारा लिया। CBI/ SC के आंतरिक लड़ाई के माध्यम से, संस्थानों को सार्वजनिक रूप से खुले तौर पर बदनाम करने व मोदी सरकार पर दोषारोपण करने का प्रयास किया गया। इसके अलावा ED, CAG, CVC को बदनाम करने की कोशिश की गई और दोष मोदी सरकार पर डाला गया। ऐसा इन संस्थानों की विश्वसनीयता को कानूनी तौर पर/ राजनैतिक रूप से नष्ट करने के लक्ष्य से किया गया ताकि किसी भी प्रतिकूल खुलासे (ED द्वारा), आदेश (अदालतों द्वारा) या रिपोर्ट (CAG द्वारा Rafale पर, CVC द्वारा CBI पर) से स्वयं को बचाया जा सके।

(स्कोर- मोदी +2, विपक्ष -6)

मोदी सरकार ने विभिन्न समस्याओं एवं विपरीत परिस्थितियों को बहुत अच्छे से नियंत्रित किया, जिसकी कल्पना कॉन्ग्रेस ने नहीं की थी। SC के 4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के मामले में, मोदी सरकार ने न्यायिक संस्थागत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, समस्या को आंतरिक रूप से हल करने पर जोर दिया। लेकिन जब हस्तक्षेप की ज़रूरत पड़ी, जैसे CBI के मामले, तो मोदी सरकार पीछे नहीं हटी, क्योंकि वह जानती है कि आखिर में लोकतंत्र में जबाबदेही सरकार की है, किसी और की नहीं। और अंत में मोदी सरकार सही सिद्ध हुई जब SC द्वारा आलोक वर्मा को हटाने की मंज़ूरी मिल गई। CBI निर्देशकों पर भ्रष्टाचार का आरोप व आंतरिक झगड़े के कारण विश्वसनीयता में कमी आने के बावजूद मोदी सरकार ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि संस्थागत अवमानना एवं किसी भी स्तर पर गलतियाँ स्वीकार्य नहीं होंगी। इसके फलस्वरूप, संस्थानों को मज़बूत बनाकर, भविष्य के लिए सही पथ निर्धारित हुआ है।

वाड्रा व चिदंबरम से पूछताछ और कोलकाता पुलिस कमिश्नर प्रकरण के बाद, विपक्ष और मीडिया में एक वर्ग यह प्रचारित कर रहा है कि CBI व ED, मोदी सरकार के आदेशानुसार काम कर रही है। लेकिन वे यह भूल रहे है कि यदि यह सच होता तो मोदी सरकार इतनी आसानी से CBI निर्देशक को निकाल नहीं पाती।

(स्कोर- मोदी +4, विपक्ष -6)

अब जब और कुछ काम नही किया तो कॉन्ग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से न्यायालयों को अपने पक्ष में निर्णय देने के लिए इस प्रकार धमकी दी-

1. विपक्ष की पसंद के न्यायधीषों को जज लोया मामले को सौंपने के लिए अदालतों पर दबाव डाला

2. महाभियोग प्रस्ताव

3. अदालतों में विशेष प्रस्तावों की अस्वीकृति पर, कॉन्ग्रेस के वकीलों ने बहिष्कार की धमकी दी।

2017 में राम मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान, माननीय CJI व SC ने कॉन्ग्रेस व उनके समर्थित वकीलों (सिब्बल, दवे, धवन) को फटकार लगाते हुए कहा कि “जब वकील संवैधानिक भाषा के अनुरूप वाद नहीं करते, तो हम इसे कब तक सहन करेंगे? यदि स्वयं नियमित नहीं करते, तो मजबूरन हमें इसे नियंत्रित करना होगा”।

इसी प्रकार, जज लोया मामले में, माननीय SC की वकील दुष्यंत दवे पर टिप्पणी- “याचिकाकर्ताओं का प्रयास पक्षपात पैदा करना और न्यायाधीशों की गरिमा को खराब करना है”।

कॉन्ग्रेस द्वारा उपरोक्त रणनीति के बावजूद, सरकार ने कोई जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं की। विपक्ष के गलत कार्यों एवं NDA के खिलाफ झूठे मामलों को देखते हुए, अदालतों के निर्णय विपक्ष के पक्ष में नहीं थे ( जैसे राफ़ेल, जज लोया, CBI, साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद आदि) और सुनवाई के लिए राम मंदिर मामले को सूचीबद्ध किया गया।

2017 में ज़मानत के बाद, साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि UPA के दौरान उनकी गिरफ्तारी के बाद- “मुझे हिरासत में 24 दिनों के लिए दिन-रात पुरुष अधिकारियों द्वारा एक मज़बूत बेल्ट से बेरहमी से पीटा गया। मेरे हाथ-पैर सूज गए थे, जिन्हें नमक वाले गरम पानी में डालने के पश्चात, मारपीट फिर से शुरू की जाती। हिरासत में अधिकारियों ने मुझे गंदी गालियांँ दी एवं आपत्तिजनक CD देखने के लिए मजबूर किया। वे RSS के वरिष्ट नेताओं को फँसाने के लिए मुझसे जबरन दोष स्वीकृत करवाना चाहते थे”।

(स्कोर- मोदी +4, विपक्ष -7)

कॉन्ग्रेस ने राम मंदिर मामले में विलंब करने की पूरी कोशिश की, इस उम्मीद से कि मोदी सरकार SC में सुनवाई के दौरान, कुछ कानूनी रूप से चुनौतिपूर्ण कदम उठाए। जिससे वे यह झूठी मंशा बनाना चाहते थे कि मोदी सरकार संविधान और न्यायपालिका का सम्मान नहीं करती। साथ ही मोदी सरकार के पिछले 4.5 वर्षों के राष्ट्र-शांति के रिकॉर्ड में बाधा डालने का भी इनका लक्ष्य था।

हालाँकि, कॉन्ग्रेस राम मंदिर मामले में देरी करने में सफल रही है, लेकिन मोदी सरकार ने संविधान और न्यायपालिका के प्रति अत्यंत संयम व सम्मान दर्शाया जिसके फलस्वरूप कॉन्ग्रेस की मोदी सरकार को बदनाम करने व देश में अशाँति की चाह पूरी नहीं हुई।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -7)

फिर, कॉन्ग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से राम मंदिर निर्माण आरंभ तिथि की घोषणा करके, प्रेरित समूहों को उत्तेजित करने का प्रयास किया। लक्ष्य फिर से देश की शांति को भंग करके, दोष मोदी सरकार पर डालने का था। यह पूर्ण रूप से संविधान के खिलाफ था। मोदी व योगी सरकार ने इस समस्या को भी बहुत अच्छी तरह से संभाला।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी पर अपने गलत बयान को माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला बताकर पेश करना यह दिखाता है कि अब कॉन्ग्रेस जिस अवस्था में है, वो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -8)

भाग 2- चुनाव आयोग*

2014 के बाद , BJP को एक के बाद एक, चुनावों में जीत मिलती रही, जिसे देखकर विपक्ष को अपने राजनैतिक अस्तित्व पर संदेह होने लगा। उन्होंने चुनाव आयोग एवं EVM को बदनाम करना शुरू कर दिया ताकि मतदान प्रक्रिया के बारे में लोगों के मन में संदेह पैदा हो जाए। लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला, एवं यदि थोड़ा भी संदेह था, वह राजस्थान, MP, CG चुनाव में कॉन्ग्रेस की जीत के बाद खत्म हो गया। फिर भी विपक्ष ने, माननीय कोर्ट्स के द्वारा अपने अनेक याचिकाओं को खारिज करने के बावजूद, EVMs के खिलाफ गलत प्रचार जारी रखा है।

कुछ दिन पहले के गुजरात HC निर्णय के कुछ अंश-

“हमें EVMs की विश्वसनीयता और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर पूर्ण विश्वास है”।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -9)

भाग- 3 संसद

PM मोदी ने अपनी लोकसभा यात्रा की शुरुआत संसद में शीश झुकाकर की एवं सख्ती से सांसदों व अधिकारियों को अधिक से अधिक उत्पादकता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का आदेश दिया। इससे जनता व संसद के प्रति सम्मान स्पष्ट दिखाई दिया। संसद की कार्यवाही में बाधा डालने का हर प्रयास विपक्ष द्वारा किया गया। इसके बावजूद, 16वीं लोकसभा सबसे सफल रही।

(स्कोर- मोदी +6, विपक्ष -10)

भाग 4- सैन्यबल

मोदी सरकार ने सशस्त्र बलों की संस्था को कई माध्यमों से मज़बूत करने के प्रयास किए हैं

1. सैन्यबलों को कार्यवाही करने की खुली छूट

2. राफ़ेल, S400, एवं अन्य आवश्यकताओं (बुलेट प्रूफ जैकेट आदि) की प्राप्ति

3. वन रैंक वन पेंशन

4. PM ने सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए हर दिवाली सेना के साथ मनाई

कॉन्ग्रेस ने सेना के मनोबल को कम करने व मोदी सरकार को सेना के प्रति लापरवाह दर्शाने का पूरा प्रयास किया-

1. जब JNU में टुकड़े गैंग ने भारत व सेना के खिलाफ नारे लगाए, तब राहुल गाँधी एवं अधिकांश विपक्षी दलों ने उनका समर्थन किया

2. सेना प्रमुख को “सड़क का गुंडा” कहा

3. सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के लिए प्रमाण माँगा

4. शत्रु देश व उसके PM की प्रशंसा

5. कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन से प्रेरित रिपोर्ट को बढ़ावा

6. भारत के रक्षा खर्च को कम दिखाने के लिए गलत प्रचार का समर्थन

7. राफ़ेल सौदे को रद्द करने के लिए हर संभव कोशिश करना

8. मोदी सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए सुरक्षा बलों के उपयोग का आरोप लगाना

लेकिन, दी गई स्वतंत्रता एवं ऊँचे मनोबल के फलस्वरूप, सेना ने पिछले 5 वर्ष में प्रतिकूल परिस्थितियों में अभूतपूर्व परिणाम दिए हैं।

1. पहली बार दुश्मन के इलाके में घुसकर सर्जिकल एवं एयर स्ट्राइक का संचालन करना

2. हमारी सीमाओं (कश्मीर, नक्सलियों व अन्य राज्यों में आतंकवादियों) के भीतर आतंकवादियों को खत्म करना

मोदी सरकार के तहत खुफिया एजेंसियों को भी मज़बूत किया गया है, जिससे देश भर में आतंक के कई प्रयासों को रोका गया। परिणाम स्वरूप, कश्मीर के अलावा, भारत ने पिछले 5 वर्षों में कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं देखा।

जैसा कि सब जानते है कि पहले रक्षा खर्च का प्रमुख हिस्सा बिचौलियों, राजनेताओं आदि के पास जाता था। लेकिन अब, बिचौलियों को हटाने के बाद, बहुत सारा पैसा बचाया जा रहा है। विरोधी भी इस बात से सहमत हैं कि PM मोदी धन के अभाव में राष्ट्रीय सुरक्षा पर समझौता नहीं करेंगे।

PM मोदी ने ISRO और DRDO को भी मज़बूत बनाया। इसका नतीजा भी हमने हाल ही में देखा जब स्पेस स्ट्राइक (मिशन शक्ति) की गई और भारत, स्पेस वारफेयर क्षमता में, वर्ल्ड के टॉप 4 देशो में शामिल हो गया। उससे पहले स्पेस में एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च करके भारत ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

(स्कोर- मोदी +10, विपक्ष -12)

भाग 5- राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन

मोदी सरकार का शुरू से ही लक्ष्य बडे़ पैमाने पर ऐसी योजनाओं को प्रारंभ करने का रहा है जिनके माध्यम से जनता एकजुट होकर प्रेरित हो (जैसे स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ, आदि)। यह भारत जैसे विशाल व विविध आबादी वाले देश में कम समय में कुछ बड़ा करने का नया, सटीक एवं सही प्रयास साबित हुआ। PM मोदी की सोच व क्षमता ने इन प्रयासों को सफल बनाया।

मोदी सरकार के पिछले सरकारों के मुकाबले में नए दृष्टिकोण के तहत मिलने वाली सफलता को आँकने में कॉन्ग्रेस को काफी समय लगा। इसीलिए, शुरुआत में विपक्ष ने सरकार की योजनाओं का मजा़क उड़ाया। लेकिन जब उन्हें इन  की सफलता का एहसास हुआ तब उन्होंने इन योजनाओं की निंदा करना और गलत भ्रांति फैलाना प्रारंभ कर दिया, यह कहकर कि सब सिर्फ दिखावा है, असल में कुछ नहीं हो रहा है।

लेकिन सामने आए अधिकतर आँकड़ो ने मोदी सरकार के अर्थव्यसवस्था के विकास, नौकरियों का सृजन, बिजली, स्वच्छता, LPG कवरेज और बडे़ पैमाने पर कई अन्य उपलब्धियों के दावों का समर्थन किया। इसे देखकर, विपक्ष ने नेशनल स्टैटिस्टिकल कमिशन (NSC) को बदनाम करना शुरू कर दिया एवं भारत के आँकड़े मोदी सरकार के तहत विश्वसनीय नहीं है, ऐसा गलत प्रचार किया।

लेकिन विश्व स्तर पर प्रसिद्ध संगठनों ने विभिन्न मापदंडों पर भारत का उन्नयन किया- क्रेडिट रेटिंग, व्यवसाय करने में आसानी, बिजली पहुँच, गरीबी मिटाने आदि और भी काफी सारे पैमानों पर भारत आगे बढ़ता नज़र आया। पिछले 5 वर्षों में रिकॉर्ड मात्रा में FDI व FII ने मोदी सरकार की विश्वसनीयता का अप्रत्यक्ष रूप से प्रमाण दिया। ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध है जहाँ मोदी सरकार के तहत भारत के विकास को पहचाना और सराहा गया है।

लेकिन यहाँ भी, भारत की प्रशंसा करने पर वैश्विक संस्थानों की निंदा करके, विपक्ष ने स्वयं अपने गलत प्रचार का पर्दाफाश किया।

(स्कोर- मोदी +10,  विपक्ष -13)

भाग 6- अन्य कार्य में असफल, लेकिन ‘विपक्ष’ को बदनाम करने में सफल

संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश में विपक्ष ने अपनी ही विश्वसनीयता एवं सम्मान को खो दिया है। अब, असहाय होने के कारण, विपक्ष अब मोदी पर बार बार वही झूठे आरोप (संस्थाओं को नष्ट करना, संविधान खतरे में, EVM में गड़बड़ी, राफ़ेल आदि) रिपीट कर रहा है  इस आशा में कहीं शायद कभी कोई तुक्का लग जाए।

PM मोदी की विश्वसनीयता तो पहले से बढ़ ही रही है, लेकिन विपक्ष खुद खुले आम जहाँ-जहाँ उसकी सरकार है, वहाँ संस्थाओं को नष्ट करने एवं संविधान की अवलेहना करने के कई काम कर रहा है उसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं—-

1. ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर के साथ धरने पर बेठी, जो साफ दर्शाता है कि पुलिस TMC के लिए काम करती है, राज्य के लिए नहीं।

2. ममता बनर्जी ने राज्य में विपक्षी नेताओं को चुनाव प्रचार की अनुमति न देकर, संविधान की अवलेहना की

3. अखिलेश यादव ने अप्रत्यक्ष रूप से पत्रकारों को अपने बारे में सब अच्छा लिखने को कहा, जिसका भुगतान वे सरकार बनने के बाद करेंगे

4. कर्नाटक पुलिस ने ‘मोदी’ का नाम बार बार लेने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया

5. कई विपक्षी राज्यों ने CBI जाँच पर प्रतिबंध लगाया (बंगाल, आंध्र, छत्तीसगढ़)

6. कई विपक्षी नेताओं ने सरकारी मकानों पर, बिना किसी हक़ व अदालत के निर्देशों के बावजूद, कब्जा बनाए रखा है

7. कॉन्ग्रेस खुलेआम टुकड़े गैंग का समर्थन कर रही है, जो भारत को तोड़ने का आह्वान कर रहे हैं। अफज़ल गुरू को न्यायिक शोषण का शिकार बताकर, आतंकवादियों का भी समर्थन कर रही है।

8. राहुल गाँधी ने HAL को सरकार के खिलाफ करने का प्रयास किया

9. नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान गए और बिना किसी अधिकार के संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत की

10. पिछले 5 वर्षों में कई बार विपक्ष के द्वारा देश में हलचल मचाने के लक्ष्य PSU बैंको व ATMs में पैसे नहीं होने का गलत प्रचार किया गया

(स्कोर- मोदी +10,  विपक्ष -25)

भाग 7- क्या मोदी सरकार द्वारा संस्थाओं की अवलेहना का कोई विशेष उदाहरण है?

मैंने खोजने का बहुत प्रयास किया, लेकिन PM मोदी द्वारा कोई भी ऐसा बयान या कार्य नहीं मिला जो संविधान और संस्थाओं की अवलेहना करता हो।

कुछ लोग कह रहे हैं कि जो अमित शाह ने केरल में सबरीमला पर कहा, वो माननीय SC की अवलेहना है। असल में, उन्होंने जो कहा, वह भविष्य में किसी के भी द्वारा अवलेहना से बचाने के लिए कहा। कठोर सत्य यह है कि SC के कई आदेश पिछले कई वर्षों से लागू नहीं किए गए हैं। ऐसे मामलों में SC की विश्वसनीयता कम हो जाती है और भविष्य में आदेशों का पालन नहीं करना आसान हो जाता है।

साथ ही मोदी सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए सेना का उपयोग करने के आरोप के विषय में हमें सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या सेना ने जो किया, वो नहीं किया जाना चाहिए था? सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, देश में रहे आतंकवादियों को मारना, आतंकी हमलों को रोकना?

यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि सशस्त्र बलों ने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया, जो गलत हो या नहीं करना था। ऐसे में सेना का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए कैसे किया जा सकता है? वे तो सिर्फ देश की रक्षा के लिए, जो उपयुक्त है, वही कर रहे है। और यदि कोई सोचे कि मोदी सरकार को इन कार्यों से राजनीतिक लाभ मिल रहा है, तो यह उनकी मूर्खता है।

जाहिर है कि यदि कोई सरकार सख्त निर्णय लेगी तो उसे सराहा जाएगा, ठीक इसी प्रकार यदि कुछ गलत हो जाता तो सरकार को ही दोषी माना जाता। इसलिए, यदि समझदारी से विचार किया जाए तो मोदी सरकार द्वारा किया गया कोई भी ऐसा कार्य, जो संविधान के विरुद्ध हो, मिल पाना मुश्किल है।

अब यदि विपक्ष के द्वारा संवैधानिक अवहेलना एवं संस्थागत अवमानना पर विचार किया जाए, तो कई सारे उदाहरण और मिल जाएँगे। और यदि उनके इतिहास के बारे में सोचा जाए, तो ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं होगी।

अंतिम स्कोर- मोदी +10, विपक्ष -25 (गिनती जारी है)

एक भारतीय के रूप में हमें इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान व संस्थाएँ, दोनो ही मोदी सरकार मैं पूर्ण रूप से संरक्षित हैं।

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Jain Amitanshu
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