नेहरू ने गोवा को आज़ाद कराया, इंदिरा गाँधी ने सिक्किम दिया,कश्मीर हिंदुस्तान का आंतरिक नहीं द्विपक्षीय/अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है, 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और कश्मीर के विभाजन में समानता है- कश्मीर के पुनर्गठन और विशेष दर्जे के खात्मे के मुद्दे पर ये कॉन्ग्रेस नेताओं के बयान हैं। आज कॉन्ग्रेस की भाषा देश की विपक्षी पार्टी, या केवल भाजपा की विरोधी पार्टी की नहीं, हिंदुस्तान के दुश्मनों और पाकिस्तान के हिमायतियों जैसी है।
कई सांसद, विधायक और देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह का यह ट्वीट पढ़िए:
It goes to the credit to Pt Nehru who gave us Goa and Smt Indira Gandhi who gave us Sikkim. Don’t forget it was Indira Gandhi ji’s leadership which bifurcated Pakistan and helped to create Bangladesh.
— digvijaya singh (@digvijaya_28) August 6, 2019
इस ट्वीट के पहला इरादा ज़रूर किसी तरह नेहरू-गाँधी परिवार की आड़ में श्रेय लूटने का था, लेकिन इसके अलावा? इसके अलावा इसका यह सिला होगा कि देश के बँटवारे को इस तरह कश्मीर के विभाजन से जोड़ने को पाकिस्तान एक ‘वरिष्ठ’ हिंदुस्तानी सियासतदां का अपने स्टैंड कि कश्मीर हिंदुस्तान का नहीं, उसका है, पर मुहर के रूप में प्रचारित करेगा।
इसके अलावा भी झूठों की कमी नहीं है। गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त नेहरू ने नहीं, आज़ाद गोमंतक दल के बलिदानों और यूनाइटेड फ़्रंट ऑफ़ गोअन्स जैसे राजनीतिक संगठनों के लम्बे संघर्ष ने कराया था।
1947 में आज़ाद रियासत बना सिक्किम 1975 में जनमत संग्रह से बना था हिंदुस्तान का राज्य। इसमें इंदिरा गाँधी की क्या भूमिका थी?
दिग्विजय अकेले नहीं हैं कॉन्ग्रेस में। पार्टी के तौर पर जहाँ कॉन्ग्रेस ने दोनों सदनों में बिल के खिलाफ मतदान किया, वहीं लोकसभा में कॉन्ग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कश्मीर मसले पर बिल लाने की सरकार की हैसियत को ही चुनौती दे डाली थी। उनके इस बयान पर भड़के गृह मंत्री और भाजपा सुप्रीमो अमित शाह ने तो उन्हें खरी-खोटी सुनाई ही, खुद सोनिया गाँधी भौंचक्की नज़र आईं। शाह ने सदन में यह भी साफ़ किया कि भाजपा नेता कश्मीर के लिए जान भी दे देंगे, और वह जब भी “कश्मीर” बोलेंगे, तो उनका तात्पर्य पाकिस्तान और चीन के कब्ज़े वाले गुलाम कश्मीर से भी होगा।
कॉन्ग्रेस के कई नेता पार्टी-लाइन से इतर इस मुद्दे पर राय रख रहे हैं। गुना के पूर्व सांसद और कभी राहुल गाँधी के करीबी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व सांसद रंजीत रंजन और मुंबई कॉन्ग्रेस के बड़े नेता मिलिंद देवड़ा इनमें शामिल हैं।
सवाल यह है कि कॉन्ग्रेस की राजनीति जा किस दिशा में रही है। किसी तरह रोते-गाते वह 2014 के मुकाबले 2019 में सीटों में मामूली बढ़ोतरी करा ले गई हो, लेकिन उसका जनाधार सिकुड़ ही रहा है। ऐसे में देश के लोगों को खुद से और दूर धकेलना अपने ही ताबूत में खुद कील ठोंकना नहीं तो क्या है?