जम्मू-कश्मीर की अनुसूचित जनजातियों को केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ा तोहफा दिया है। केंद्र ने प्रदेश में अपना वो वादा पूरा कर दिया है जहाँ उन्होंने कहा था पहाड़ी समुदाय को आरक्षित जनजाति का कोटा मिलेगा और इसका असर पहले से शामिल समुदायों (गुज्जर) पर नहीं पड़ेगा। जानकारी के अनुसार, जम्मू कश्मीर में प्रशासन ने अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अलग से 10% कोटा को मंजूरी दे दी है।
इसका प्रत्यक्ष फायदा वहाँ की पहाड़ी जनजातियों- पददारी जनजाति, कोली और गड्डा ब्राह्मण को मिलेगा। इन्हें हाल ही में अनुसूचित जनजाति की कैटेगिरी में शामिल किया गया था। इस फैसले के साथ ही प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों के लिए कुल कोटा 20% हो जाएगा। पहाड़ी और गुज्जरों दोनों को 10-10% आरक्षण मिलेगा।
इसके अलावा प्रशासन ने ओबीसी में 15 नई जातियों को जोड़ने की भी मंजूरी दे दी है। जम्मू-कश्मीर में अब ओबीसी का कोटा बढ़ाकर 8% कर दिया गया है।
बता दें कि राज्य जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में शुक्रवार (15 जनवरी 2024) को हुई प्रशासनिक परिषद की बैठक में यह फैसले लिए गए। इस बैठक में उपराज्यपाल के सलाहकार राजीव राय भटनागर, मुख्य सचिव अटल डुल्लू और उपराज्यपाल के प्रधान सचिव मंदीप कुमार भंडारी शामिल थे।
अमित शाह ने किया वादा पूरा
गौरतलब है कि इस संबंध में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी राजौरी और बारामूला के लोगों से वादा किया था कि वह पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा दिया जाएगा और साथ ही गुज्जर-बकरवालों को आश्वस्त किया था कि उनके आरक्षण में किसी प्रकार की कटौती नहीं होगी।
इस वादे के बाद इसी साल संसद (6 फरवरी लोकसभा, 9 फरवरी राज्यसभा) में अनुसूचित जनजाति संवर्ग में दस फीसदी आरक्षण को लेकर एक बिल पारित किया गया था, जिसके अनुसार अनुसूचित जनजाति में पहले से शामिल गुज्जर-बकरवाल समुदाय के आरक्षण से छेड़छाड़ के बिना अन्य जनजाति के लोगों को कोटा दिया जाने की बात थी।
उपराज्यपाल ने इस संबंध में कहा था कि इस प्रयास से पहाड़ी समुदाय की 12 लाख की आबादी को नौकरी, शिक्षा के साथ ही अब राजनीतिक आरक्षण भी मिलने लगेगा। इन इलाकों का भी विकास ट्राइबल प्लान के तहत होगा। लेकिन इससे पहले से अनुसूचित जनजाति में शामिल गुज्जर-बकरवाल समुदाय के आरक्षण पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
2019 से पहले क्या थे हालात
बता दें कि साल 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर में दलितों की हालत बहुत दयनीय थी। यशार्क पांडे अपनी रिपोर्ट में बताए थे कि प्रदेश में हालात ये थे कि जम्मू-कश्मीर में रह रहे वाल्मीकि समुदाय के लड़के-लड़कियाँ स्कूली शिक्षा के आगे पढ़ाई ही नहीं करना चाहते थे। उनका कहना था कि जब पढ़-लिख कर सफ़ाई कर्मचारी ही बनना है तब पढ़ने से क्या फ़ायदा? इस समुदाय की लड़कियाँ जम्मू-कश्मीर राज्य के बाहर जाकर विवाह कर रही थीं क्योंकि वे अपनी जाति के कम पढ़े लिखे सफाई कर्मचारी की नौकरी करने वाले युवाओं से विवाह नहीं करना चाहतीं।
उस समय जब शेष भारत में जब ऐसा माहौल था कि एक जाति सूचक शब्द बोलने पर सजा का प्रावधान था, तब जम्मू-कश्मीर राज्य वाल्मीकि समुदाय को जाति प्रमाण पत्र तक जारी नहीं करता था जिससे इस समुदाय के लोगों को अनुसूचित जातियों के लिए बनाए गए विशेष प्रावधानों और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रहना पड़ता था। यही नहीं 2015 में एकलव्य नामक एक लड़के के प्रमाण पत्र पर जम्मू-कश्मीर राज्य के सरकारी कर्मचारी ने जाति सूचक शब्द लिखा और उस कर्मचारी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। जाति प्रमाण पत्र न होने से एक प्रकार से अनुसूचित जातियों में जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि समुदाय की गिनती ही नहीं होती।