जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा का चुनाव होे जा रहा है। इस दौरान वहाँ बहुत कुछ बदल गया है। राज्य में अब ना ही धारा 370 और ना ही पूर्ण राज्य का दर्जा। जम्मू-कश्मीर अब केंद्रशासित प्रदेश है। इसके साथ ही यहाँ का सामाजिक परिदृश्य भी बदल गया है। यहाँ के वाल्मीकि समुदाय के लोग पहली बार मतदान करेंगे। इससे पहले उन्हें मतदान करने का अधिकार नहीं था।
जम्मू-कश्मीर में रह रहे लगभग 350 वाल्मीकि परिवार के लोग इससे बेहद उत्साहित हैं। अनुच्छेद 370 और 35A हटने के बाद उन्हें अन्य नागरिकों की तरह ही सारे अधिकार मिल गए हैं। इन परिवारों के पूर्वजों को 1957 में तत्कालीन सरकार द्वारा महामारी के दौरान सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने के लिए पंजाब से जम्मू लाया गया था।
यह परिवार यहीं का होकर रह गया। इसके बावजूद इन्हें राज्य के स्थायी निवासी का कभी दर्जा नहीं दिया गया। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सबसे अहम हिस्सा मतदान तक से वंचित यह तबका जम्मू-कश्मीर में दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रह रहा था। इन्हें राज्य के अन्य निवासियों के लिए उपलब्ध अन्य अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया था।
केंद्र की मोदी सरकार ने जब 5 अगस्त 2019 को राज्य से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया तो इनकी स्थिति अचानक से बदल गई। इनके राज्य में आने के लगभग छह दशक बाद वाल्मीकि समुदाय के सदस्यों को आखिरकार 2020 में स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। इस तरह इन परिवारों के लिए यह एक नया सवेरा था।
वाल्मीकि समुदाय के इन परिवारों के लगभग 10,000 सदस्य राज्य विधानसभा चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे। वाल्मीकि समाज के अध्यक्ष घारू भट्टी ने इंडिया टुडे से बातचीत में संवैधानिक बदलावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति समुदाय की ओर से गहरी कृतज्ञता व्यक्त की है। उन्होंने कहा यह सपना सच होने जैसा है।
दरअसल, मतदान के साथ-साथ वाल्मीकि समुदाय के बच्चों के वहाँ की सरकारी नौकरियों में आवेदन भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनके पास स्थायी निवासी प्रमाण पत्र नहीं था। इससे उन लोगों में भारी निराशा होती है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे वाल्मीकि समुदाय में खुशी की लहर छा रही है।
पाकिस्तान जैसी हालत थी वाल्मीकि समुदाय की
पाकिस्तान में सफाईकर्मियों की नौकरी के लिए गैर-मुस्लिम होना जरूरी है। इस तरह के वहाँ विज्ञापन भी निकलते रहते हैं। नाले-पेशाब-पखाना साफ करते हिंदू दलितों की जो हालत आज पाकिस्तान में है, वही हालत अनुच्छेद 370 के उन्मूलन से पहले भारत के जम्मू-कश्मीर में थी। इनके लिए जम्मू-कश्मीर का कोई भी राजनीतिक दल आवाज नहीं उठाया।
1957 में जम्मू-कश्मीर राज्य ने राज्य विधानसभा के शासनादेश से सफाई कर्मी के नाम पर वाल्मीकि समाज के लोगों को पंजाब के पठानकोट, अमृतसर, जालंधर, होशियारपुर इत्यादि से लाकर जम्मू-कश्मीर राज्य के भिन्न-भिन्न स्थानों पर उनकी कॉलोनी बना कर बसाया गया। सरकारी दस्तावेजों में इस नौकरी को ‘भंगी पेशा’ नाम दिया गया था।
वाल्मीकि समुदाय के लोगों को सफाई-कर्म के अलावा कोई भी अन्य नौकरी करना आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित था। देश-विदेश तक से शिक्षित इस समुदाय के लोग न ही किसी सरकारी उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल कोर्स, जैसे मेडिकल या इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन ले सकते थे, न ही विधानसभा में चुनाव लड़ सकते थे और वोट भी नहीं डाल सकते थे।