झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राज्य की 81 सीटों पर पाँच चरणों में चुनाव कराए जाएँगे। नतीजे 23 दिसंबर को आएँगे। बावजूद इसके न तो विपक्षी गठबंधन और न ही कॉन्ग्रेस का अंतर्कलह समाप्त होता दिख रहा है। झारखंड प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने कहा है कि गुटबाजी अब भी पार्टी के लिए चुनौती बनी हुई है।
दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन भी अब तक आकार नहीं ले पाया है। लोकसभा चुनाव कॉन्ग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद ने मिलकर लड़ा था। लेकिन, फिलहाल ऐसी स्थिति नहीं दिख रही। झाविमो राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। आठ नवंबर को वह पहली सूची जारी कर सकता है। कॉन्ग्रेस महागठबंधन में झाविमो को बनाए रखने के पक्ष में है। वहीं, राजद 14 सीटों की मॉंग कर रहा है, जबकि झामुमो उसे चार-पॉंच से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है।
रामेश्वर उरांव ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा कि कॉन्ग्रेस में गुटबाजी अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य में नेताओं को निस्वार्थ और स्वेच्छा से काम करने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले के पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने भी गुटबाजी का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया था और कहा था कि वो पार्टी को एकीकृत और जिम्मेदार तरीके से आगे ले जाना चाहते थे, लेकिन चंद लोगों के निहित स्वार्थों के कारण ऐसा नहीं कर सके। अजय कुमार ने सोनिया और राहुल गॉंधी सहित 10 कॉन्ग्रेस नेताओं को भेजे अपने इस्तीफे में पार्टी के अपने सहयोगियों को अपराधियों से भी बदतर बताया था।
अजय कुमार द्वारा पार्टी पर लगाए गए गुटबाजी के आरोप पर जब रामेश्वर उरांव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हाँ, यह एक चुनौती है। बता दें कि अजय कुमार ने अपने इस्तीफा पत्र में अन्य कई नेताओं के साथ ही उरांव पर भी राजनीतिक पदों को हथियाने का आरोप लगाया था। लेकिन उरांव का कहना है कि वो किसी गुट के लिए नहीं, बल्कि सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली पार्टी के लिए काम करते हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी को उनकी सेवाओं की जरूरत है और यह निस्वार्थ और स्वैच्छिक होना चाहिए। तभी पार्टी आगे बढ़ेगी।
वहीं विपक्षी दलों के बीच गठबंधन और सीट बँटवारे को सार्वजनिक नहीं किए जाने के सवाल पर रामेश्वर उरांव ने इसे पार्टी की रणनीति का हिस्सा बताते हुए बात करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष कुछ बातों पर सहमत हो गया था और इसे जारी रखा गया है।
जब उनसे पूछा गया कि महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ाई नहीं लड़ी थी और उसकी मानसिकता हार मानने वाली थी। तो झारखंड में क्या स्थिति है? उरांव ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा, “यह सही है, लेकिन झारखंड की स्थिति अलग है। बीजेपी ने राज्य के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और इसका असर चुनाव में दिखेगा। हम पूरी ताकत से लड़ेंगे।”
इसके साथ ही प्रदेश में महागठबंधन में भी प्रेशर पॉलिटिक्स (दबाव की राजनीति) चरम पर है। झारखंड मुक्ति मोर्चा अधिक सीटों की जिद पर अड़ा है, तो कॉन्ग्रेस झाविमो के बगैर एक कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। राजद और वामपंथी भी अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। इस बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की कमान थाम ली है।
वैसे देखा जाए तो झारखंड में विधानसभा चुनाव के परिणाम हमेशा से ही राजनीतिक दलों को अप्रत्याशित नतीजे देते रहे हैं, लेकिन जैसा उलटफेर 2014 के विधानसभा में हुआ है वैसा कभी नहीं हुआ। चार पूर्व मुख्यमंत्री और एक उप मुख्यमंत्री अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल नहीं कर सके थे। अब देखना होगा कि आगामी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के बीच की सरगर्मियाँ कितनी बढ़ती है और इस बार किस तरह का राजनीतिक समीकरण निकल कर बाहर आता है।