झारखण्ड को जानने-समझने वाले लोगों ने पत्थलगड़ी का नाम ज़रूर सुना होगा। आदिवासियों के इस मूवमेंट को कुछ मिशनरियों व कट्टरवादियों का समर्थन मिला, जिससे इसे सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई का एक प्रतीक बना दिया गया। हालाँकि, आज स्थिति सामान्य है लेकिन फिर भी खूँटी और गुमला जैसे जिलों में चुनाव के दौरान स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण रही। एक समय यह आंदोलन लोहरदगा, राँची और सिमडेगा तक फैल गया था। नक्सलियों के उभार के बाद ये हिंसक हो गया था और मिशनरियों के साथ के कारण ग़ैर-क़ानूनी रूप से इसके तहत ‘स्वतंत्र सरकार’ स्थापित करने का प्रयास किया गया था – अर्थात, सामानांतर सरकार।
नक्सल समर्थित इस मूवमेंट वाले इलाक़ों में मुख्यमंत्री रघुबर दास के ख़िलाफ़ ख़ूब दुष्प्रचार अभियान चलाया गया। लोगों के बीच अफवाह फैलाई गई कि भाजपा आदिवासी विरोधी है, इसीलिए उसने 2014 में जीतने के बाद एक गैर-आदिवासी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया। क्या नक्सलियों की ये साज़िश कामयाब रही? इसके लिए खूँटी लोकसभा क्षेत्र में आने वाले 6 विधानसभा क्षेत्रों के ट्रेंड देखिए क्योंकि पत्थलगड़ी मूवमेंट का एक तरह से यही गढ़ रहा है:
खरसावाँ: (2014: झामुमो) अब- झामुमो
तमाड़: (2014:आजसू) अब- झामुमो
तोरपा: (2014: झामुमो) अब- भाजपा
खूँटी: (2014: भाजपा) अब- भाजपा
कोलेबिरा: (2018: कॉन्ग्रेस) अब- कॉन्ग्रेस
सिमडेगा: (2014: भाजपा) अब- कॉन्ग्रेस
जैसा कि आप देख सकते हैं, इस चुनाव से पहले खूँटी की 2 सीटें भाजपा व 2 सीटें कॉन्ग्रेस के पास थीं। अब 4 सीटें कॉन्ग्रेस व झामुमो के पास हैं। इससे पहले कि आपके मन में सवाल उठे, बता दें कि आदिवासियों द्वारा शिलालेख पर अपने पूवजों व बलिदानियों के नाम लिखने की परंपरा है, जो पत्थलगड़ी कहलाई। आदिवासियों के बीच डर बैठाया गया है कि सरकार उनकी ज़मीन छीन लेगी, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। खूँटी में विपक्षियों ने रघुवर दास पर उनकी रैली में चप्पल-जूते भी फेंके थे।
पत्थलगड़ी मूवमेंट को देखते हुए ही हिंसा रोकने हेतु चुनाव के दौरान इन क्षेत्रों में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी। चुनाव के दौरान गाँव-गाँव तक में सुरक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रखी गई थी। हिंसा फैलाने वाले उपद्रवियों के ख़िलाफ़ सैंकड़ों मामले दर्ज हैं, जो चुनाव का मुद्दा भी बनी। इस संबंध में कुल 19 मामलों में 172 नामजद आरोपित हैं। भाजपा के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार का एक मुद्दा यह भी रहा। हालाँकि, भाजपा ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के जरिए इन इलाक़ों को साधने का प्रयास भी किया। पूरे आंदोलन के दौरान मुंडा ने इसके विरोध में कुछ नहीं बोला। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा खूँटी से ही सांसद हैं, ऐसे में उनके गढ़ में भाजपा के लिए स्थिति कैसी रही, यह परिणाम से पता चल जाता है।
मुख्यमंत्री रघुबर दास के ख़िलाफ़ गुस्सा क्यों था? ये इसीलिए, क्योंकि उनकी सरकार ने 2016 के अंत में एक संशोधन क़ानून पास किया था, जिसके तहत ट्राइबल क्षेत्रों की ज़मीन का भी विकास कार्यों के लिए अधिग्रहण किया जाना था। पत्थलगड़ी हिंसा के आरोपित और विकास के लिए आदिवासियों का जमीन अधिग्रहण- इन दो फैक्टरों को मिला दें और झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन का बयान देखें… तो इस क्षेत्र की राजनीति साफ हो जाएगी। शिबू सोरेन ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि उनकी सरकार बनते ही पत्थलगड़ी हिंसा के आरोपितों पर से सभी केस हटा लिए जाएँगे। और फिर खूँटी का महत्व इसीलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहाँ से चुनाव प्रचार किया था।