Sunday, December 22, 2024
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हर दिन 14 घंटे करो काम, कॉन्ग्रेस सरकार ला रही बिल: कर्नाटक में भड़का कर्मचारियों का संघ, पहले थोपा था 75% आरक्षण

कई देशों में 'राइट टू डिस्कनेक्ट' का कानून लाया जा रहा है, जिसके तहत नॉन-वर्क ऑवर्स में कर्मचारी खुद को काम से एकदम दूर रख सकेंगे और ईमेल वगैरह की रिप्लाई देने की भी बाध्यता नहीं होगी।

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु को भारत की सिलिकन वैली के रूप में जाना जाता रहा है। लेकिन, जब से वहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी सत्ता में लौटी है तभी से वहाँ के IT सेक्टर को झटके पर झटके दिए जा रहे हैं। अब कर्नाटक सरकार नया कानून लेकर आ रही है, जिसके तहत IT कर्मचारियों को प्रतिदिन 14 घंटे काम करना होगा। यानी, मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की सरकार इसे कानून का रूप देती है तो इंजीनियरों को दफ्तर में अधिक समय गुजारना पड़ेगा, इससे उनका वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ेगा।

अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब कर्नाटक सरकार एक ऐसा बिल लेकर आई थी, जो अगर कानून बन जाता तो मैनेजमेंट की नौकरियों में राज्य के नागरिकों को 50% और नॉन-मैनेजमेंट की नौकरियों में 75% आरक्षण मिलता। इसके बाद IT कंपनियों के संघ NASSCOM ने कहा था कि किसी भी महानगर को आईटी हब बनने के लिए अलग-अलग क्षेत्र की प्रतिभाओं को आकर्षित करना पड़ेगा। इसके बाद आंध्र प्रदेश के मंत्री नारा लोकेशन ने इन कंपनियों को हैदराबाद और विशाखापत्तनम आने का न्योता तक दे दिया था।

जहाँ पहले वाले फैसले से कंपनियों को दिक्कत होती, नए फैसले से कर्मचारियों का जीवन तबाह होगा। कर्नाटक के ‘IT/ITeS Employees Union (KITU)’ ने कॉन्ग्रेस सरकार पर निशाना साधा है। KITU ने कहा कि लेबर डिपार्टमेंट ने इंडस्ट्री के विभिन्न हितधारकों की एक बैठक में प्रस्ताव दिया कि कर्नाटक शॉप्स एन्ड कमर्शियल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में संशोधन किया जाए। इसके लिए विधानसभा में बिल लाने की भी तैयारी है। हालाँकि, कर्नाटक सरकार ने फ़िलहाल इस पर चुप्पी साध रखी है।

मौजूदा नियमों की बात करें तो ओवरटाइम मिला कर एक दिन में किसी कर्मचारी से अधिकतम 10 घंटे काम लिया जा सकता है। यूनियन का कहना है कि नए आदेश के बाद वर्क ऑवर्स अनिश्चित समय के लिए भी बढ़ाया जा सकता है। KITU ने इसे इस काल में वर्किंग क्लास पर सबसे बड़ा हमला करार दिया। संघ ने कहा कि इसके बाद कंपनियाँ 3-शिफ्ट व्यवस्था की जगह 2-शिफ्टव्यवस्था पर व्यवस्था पर आ जाएगी और बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नौकरी से बाहर फेंक दिया जाएगा।

उक्त बैठक में लेबर डिपार्टमेंट के मंत्री संतोष S लाड के अलावा IT व बायोटेक्नोलॉजी विभाग के कई अधिकारी भी मौजूद थे। KITU ने कहा कि ये फैसला लागू होता है तो IT सेक्टर में काम करने वालों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। आँकड़े कहते हैं कि पहले से ही 45% IT कर्मचारी मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, 55% शारीरिक रूप से दुष्प्रभाव का सामना कर रहे हैं। WHO-ILO का अध्ययन कहता है कि वर्क ऑवर्स बढ़ाने से स्ट्रोक से मौत का खतरा 35% और दिमाग-हृदय रोगों से मौत का खतरा 17% बढ़ जाएगा।

यूनियन ने कहा कि ये बिल ऐसे समय में लाया जा रहा है जब दुनिया मान रही है कि वर्क ऑवर्स बढ़ाने से उत्पादन क्षमता पर गलत असर पड़ता है। कई देशों में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ का कानून लाया जा रहा है, जिसके तहत नॉन-वर्क ऑवर्स में कर्मचारी खुद को काम से एकदम दूर रख सकेंगे और ईमेल वगैरह की रिप्लाई देने की भी बाध्यता नहीं होगी। पिछले साल इनफ़ोसिस के अध्यक्ष NR नारायणमूर्ति ने 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करने की सलाह देकर विवाद पैदा कर दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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