उर्दू अकादमी के लिए घोषित एक लाख रुपए की अनुदान राशि बढ़ाने के बजाए कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने इसे जारी रखा, जिससे मुस्लिम निराश हैं। उनका कहना है कि कॉन्ग्रेस को चुनाव के समय मुस्लिमों के वोट तो चाहिए होते हैं, जिसके लिए वो खूब इमोशनल अत्याचार भी करती है, लेकिन चुनाव जीतते ही वो मुस्लिमों को भूल जाती है। कर्नाटक के मुस्लिम उर्दू अकादमी की खराब हालत की वजह से कॉन्ग्रेस सरकार से बेहद नाराज हैं।
सिर्फ 274 रुपए प्रति दिन पर चलती है उर्दू अकादमी
‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस‘ से बातचीत में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के सलाहकार रहे सैयद अशरफ ने उर्दू अकादमी का अध्यक्ष पद पिछले दो वर्षों से खाली रहने पर अपनी निराशा व्यक्त की। उन्होंने बताया कि अकादमी के रखरखाव के लिए एक साल में 1 लाख रुपए दिए जाते हैं, जो बेहद कम है। अगर इन 1 लाख रुपयों को 365 के हिसाब से बाँट दें, तो प्रति दिन महज 274 रुपए ही उर्दू अकादमी के खर्च के नाम पर आते हैं। इन पैसों से उर्दू अकादमी कौन सी पुस्तकें प्रकाशित करेगी और किस तरह से साहित्य की सेवा करेगी?
अशरफ ने कहा कि बोम्मई सरकार ने एक लाख का भुगतान शुरू किया था, लेकिन मुस्लिमों के वोट के दम पर सत्ता में आने वाली कॉन्ग्रेस ने भी सिर्फ 1 लाख रुपए ही जारी किया है। उर्दू सिर्फ मुस्लिमों से ही नहीं जुड़ी, बल्कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री धर्म सिंह भी उर्दू का प्रयोग करते थे। वो उर्दू में बोलते थे। लेकिन मौजूदा सरकार बहुत गलत कर रही है। उन्होंने कहा कि इस कॉन्ग्रेस सरकार से ऐसी उम्मीद तो बिल्कुल नहीं थी।
कॉन्ग्रेस के मुस्लिम मंत्री पर साधा निशारा
इस रिपोर्ट के मुताबिक, सैयद अशरफ राज्य के वक्फ और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बीजे जमीर अहमद खान से बेहद नाराज हैं। उन्होंने जमीर पर मुसलमान समुदाय के लिए बोलने में विफलता और उर्दू अकादमी को अतिरिक्त धन आवंटित करने में विफलता को लेकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जमीर के पास उर्दू का सर्टिफिकेट तो है, लेकिन वो सही मायने में विद्वान होते, तो इस दर्द को समझते।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या से मिलेंगे अशरफ
अशरफ ने कहा कि अगले एक-दो दिनों में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से एक प्रतिनिधिमंडल मुलाकात करेगा। उन्हें ज्ञापन सौंपा जाएगा और बताया जाएगा कि उर्दू अकादमी की क्या हालत है। इसकी प्रति कॉन्ग्रेस हाई कमान को भी भेजी जाएगी। इस मुद्दे पर शोधकर्ता आलम पाशा का कहना है कि मुस्लिमों के वोटों के लिए कॉन्ग्रेस खूब जोर लगाती है, लेकिन जब जरूरत पड़ती है, तो वो मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ी नहीं होती।