तकरीबन 3 दशकों तक प्रवासी रहने के बाद अब प्रवासी कश्मीरी पंडित समुदाय जम्मू कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनावों में न्याय और सम्मान की लड़ाई लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। अगली विधानसभा में चुनावी आगाज करने के लिए इस समुदाय ने एक राजनीतिक पार्टी बनाई है। प्रवासी कश्मीरी पंडितों ने न्याय के लिए लड़ने और निर्वासित कश्मीरी पंडित समुदाय के पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अशोक भान की अध्यक्षता में ‘कश्मीरी पंडित राजनीतिक कार्रवाई समिति’ (KPPAC) नामक एक राजनीतिक पार्टी बनाई है। संगठन ने अपनी पार्टी के लिए समर्थन जुटाने के लिए देश भर में सदस्यता अभियान भी शुरू किया है।
In a first after their exile, Kashmiri Pandits to fight assembly polls in homeland https://t.co/itmcWi3ypv, reports @ishfaq72https://t.co/Yp0CiICnct
— DNA (@dna) April 29, 2019
खबर के अनुसार, KPPAC जम्मू और कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनावों में कई निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए तैयार है। हालँकि, यह पहली बार होगा जब जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में प्रवासी कश्मीरी पंडित समुदाय को उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतारा जाएगा।
KPPAC के उपाध्यक्ष सतीश महालदार ने कहा कि वो चुनाव में उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की योजना बना रहे हैं और साथ ही अन्य राजनीतिक दलों से भी गठबंधन की माँग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के अधिकांश राजनीतिक पार्टियाँ लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं। सतीश महालदार का कहना है कि चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पार्टियों के द्वारा प्रलोभन देना उन्हें अस्वीकार्य है। वो कहते हैं कि हम इंसान हैं और हमारे साथ इज्जत से पेश आना चाहिए।
पार्टी के द्वारा चलाए जा रहे सदस्यता अभियान के बारे में महालदार ने कहा कि इसके लिए नामांकन प्रक्रिया पहले से ही चालू है और वो कश्मीर के अंदर गठबंधन करने वाले साझेदारों की तलाश में हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी में सिर्फ कश्मीरी पंडितों को ही नहीं बल्कि लद्दाख, कश्मीरी कट्टरपंथियों, सिखों और अन्य लोगों को भी शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है। वो कहते हैं कि वो न्याय के लिए लड़ रहे हैं और यह राजनीतिक विचारधारा है। वो कश्मीर में सभी समुदायों के लिए लड़ेंगे।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन है। जम्मू कश्मीर में भाजपा और पीडीपी के गठबंधन की सरकार थी, मगर पिछले साल जून में पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के साथ हुए मतभेद के बाद भाजपा सरकार ने अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर में सरकार गिर गई और फिर 6 महीने के राज्यपाल शासन के बाद पिछले साल दिसंबर में यह राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन हो गया।