वामपंथी नेता कविता कृष्णन ने आज (शनिवार, 1 जनवरी 2022) ट्विटर पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अखबारों में दंगा मुक्त उत्तर प्रदेश से संबंधित एक विज्ञापन को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया है। विज्ञापन में कहा गया है कि 2017 से पहले दंगाइयों ने कैसे तबाही मचाई थी और अब वे योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा की गई कड़ी कार्रवाई के कारण माफी मांगने के लिए कतार में हैं। कृष्णन ने इस विज्ञापन को ‘इस्लामोफोबिक’ कहा।
Dear @rajkamaljha – take a close look at this @IndianExpress front page with a huge Islamophobic ad by the UP Govt enjoying pride of place. You can’t pretend that this is a mere commercial decision – this ad editorialises, & makes the paper a vehicle for fascism. Chilling to see. pic.twitter.com/HEARJG8wGM
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) December 31, 2021
कृष्णन ने ट्वीट किया, “प्रिय @rajkamaljha – इस @IndianExpress के फ्रंट पेज पर एक नज़र डालें, जिसमें यूपी सरकार का एक बड़ा इस्लामोफोबिक विज्ञापन का आनंद लिया जा रहा है। आप यह ढोंग नहीं कर सकते कि यह केवल एक व्यावसायिक निर्णय है – यह विज्ञापन संपादकीय निर्रणय है और यह अखबार को फासीवाद का वाहक बनाता है। यह डराने वाला है।”
दिलचस्प बात यह है कि कविता कृष्णन ने विज्ञापन को इस्लामोफोबिक कहा था, लेकिन विज्ञापन को करीब से देखने पर पता चलता है कि कविता की यह ‘फ्रायडियन स्लिप’ है। विज्ञापन में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि दंगा करने वाला मुस्लिम है। कहने का अर्थ है कि दंगाई के ऊपर कोई धार्मिक निशान नहीं है- उसने सिर पर टोपी नहीं पहनी हुई थी या ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे कहा जा सके कि विज्ञापन में बताए गए दंगाई का अर्थ मुस्लिम ही है।
विज्ञापन ने बस इतना कहा गया कि प्रशासन में अंतर स्पष्ट है – 2017 से पहले लोगों को दंगाइयों का डर था और 2017 के बाद दंगाई माफी माँग रहे हैं। विज्ञापन में ही नीचे नारा है, ‘सोच ईमानदार, काम दमदार’। इसका अर्थ है, ‘ईमानदार इरादे, अच्छे काम’।
दंगाइयों से संबंधित विज्ञापन को ‘इस्लामोफोबिक’ कहते हुए कई लोगों ने सोचा कि क्या कविता कृष्णन ने चुपचाप स्वीकार कर लिया कि सभी दंगाई वास्तव में मुस्लिम समुदाय के ही हैं। जब इस बारे में कविता कृष्णन से पूछा गया तो उनका मूड खराब हो गया। लेखक अनीश गोखले को जवाब देते हुए कृष्णन ने कहा, “विज्ञापन योगी सरकार द्वारा एक ‘डॉग ह्वीसिल’ था और योगी के डॉग ह्वीसिल को सुनकर तुम भागते चले आए।”
The ad is an example of a dog whistle – and you’ve heard Yogi’s dog whistle and come running …
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) January 1, 2022
कविता कृष्ण के इस्लामोफोबिक कहने पर कहने पर कई लोगों ने सवाल उठाया। एक यूजर ने पूछा कि इसमें रीलिजन कहाँ लिखा गया है? वहीं, एक यूजर ने कहा कि दंगाई का अर्थ कविता कृष्ण मुस्लिम बता रही हैं। एक यूजर ने इसे ‘चोर की दाढ़ी में तिनका बताया’।
Where is a religion mentioned in the ad ? https://t.co/9BIXgdaOCs
— Punit Agarwal 🇮🇳 (@Punitspeaks) January 1, 2022
The ad is about rioters.
— Abhinav Khare (@iabhinavKhare) December 31, 2021
She’s equating Muslims with Rioters. Who’s being an Islamphobe here?? https://t.co/eocK8bpMt4
"Chor ki daadi mein tinka" ka pratyaksh udhahran. https://t.co/Cnned0HLDe
— Anurag (@LekhakAnurag) January 1, 2022
Right, you’re one of the dogs hearing the dog whistle
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) December 31, 2021
कविता कृष्णन को जब अपनी गलती का अहसास हुआ तब उन्होंने दावा किया कि विज्ञापन में दंगाइयों ने कैफिया पहना हुआ है। इसलिए यह स्पष्ट था कि विज्ञापन का अर्थ था कि दंगा करने वाला एक मुस्लिम था।
And the kefiyah worn by the “rioter” is a dog whistle
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) December 31, 2021
कैफिया स्कार्फ से फैशन में आया है। आमतौर पर यह कपास से बना होता है और कई डिज़ाइनों में आता है। सऊदी अरब में सिर के चारों ओर पहने जाने वाले सादे सफेद कपड़े को भी कैफिया कहा जाता है। यह मूल रूप से सिर या गले में पहना जाने वाला चौकोर दुपट्टा होता है। Kefiyah के लिए कोई विशिष्ट पैटर्न नहीं है। फिर कविता कृष्णन इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचीं कि दंगाइयों द्वारा पहना जा रहा दुपट्टा विशेष रूप से कैफिया है, यह तर्क से परे है।
The Sanghi quote tweets & replies on this are all hearing Yogi’s dog whistle in the ad and coming running … do read them, esp the blue tick ones @rajkamaljha, to see what the bottom half of the @IndianExpress front page is saying and to whom. The history books will remember this https://t.co/RF9kHvOgfs
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) January 1, 2022
बता दें कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की रकार ने गैंगस्टरों, माफिया सरगनाओं और दंगाइयों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया है। सीएए विरोधी हिंसा के दौरान योगी प्रशासन ने दंगाइयों, जो कि मुस्लिम समुदाय से संबंधित थे, को गिरफ्तार किया गया और हिंसा के कारण राज्य को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उनकी संपत्ति को कुर्क किया। विकास दुबे जैसे गैंगस्टरों के खिलाफ भी योगी सरकार ने जबरदस्त कार्रवाई की।
यह स्पष्ट है कि गैंगस्टरों के खिलाफ सरकार की किसी भी कार्रवाई को कम्युनिस्ट और उदारवादी भय का कारण बताएँगे, क्योंकि योगी आदित्यनाथ भगवा पहनते हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी और राज्य में योगी आदित्यनाथ की की लोकप्रिय सरकार का विरोध करना इनका प्राथमिक उद्देश्य है।