केरल में अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप स्कीम को लेकर हाईकोर्ट से झटके के बाद राज्य सरकार मुश्किल में फँस गई है। हाईकोर्ट के फैसले से राज्य में मुस्लिम समुदाय बेहद नाराज़ हैं तो दूसरी तरफ ईसाइयों में खुशी की लहर है – और यही वहाँ की सरकार के लिए मुसीबत की जड़ है।
केरल में चल रहे इस सियासी ड्रामे के बीच इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने शनिवार (मई 29, 2021) को राज्य की LDF सरकार पर हाईकोर्ट को गलत जानकारी देने का आरोप लगाया और कहा कि केरल सरकार ने अदालत को गुमराह किया। IUML का मानना है कि इसी कारण अदालत ने आदेश पारित कर अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं में 80:20 के मौजूदा अनुपात को अमान्य घोषित कर दिया है।
IUML ने कहा कि मुस्लिम समुदाय की सामाजिक स्थिति अनुसूचित जाति समुदायों से भी खराब है। इसलिए आरक्षण के इस अनुपात को न सिर्फ बने रहना देना चाहिए बल्कि इसे बढ़ा कर 100% कर देना चाहिए।
‘पूरी छात्रवृत्ति मुस्लिमों को मिले’
केरल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने माँग की है कि अनुपात खत्म कर दिया जाना चाहिए और पूरी छात्रवृत्ति मुसलमानों को मिलनी चाहिए।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए IUML के राष्ट्रीय सचिव ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा, “सरकार अदालत के सामने तथ्य पेश करने में विफल रही। राष्ट्रीय स्तर पर सच्चर समिति की रिपोर्ट के बाद छात्रवृत्ति शुरू हुई। साल 2006-11 के एलडीएफ शासन द्वारा मुस्लिमों के लिए बनाई गई एक योजना में संशोधन किया गया था ताकि लैटिन कैथोलिक और धर्मांतरित ईसाइयों को एक हिस्सा दिया जा सके। सरकार को अन्य अल्पसंख्यकों के लिए अलग योजनाएँ लानी चाहिए।”
मुस्लिम विद्वानों की संस्था समस्त केरल जमीयत-उल-उलेमा ने भी माँग की है कि अनुपात को समाप्त किया जाए और पूरी छात्रवृत्ति मुस्लिमों को दी जाए। बता दें कि केरल में जमीयत-उल-उलेमा, आईयूएमएल के अच्छे-खासे समर्थक हैं।
ईसाइयों ने फैसले का स्वागत किया
इस बीच चर्च चाहते हैं कि सरकार तुरंत आदेश को लागू करे। जैकोबाइट बिशप और चर्च ट्रस्टी जोसेफ मोर ग्रेगोरियस ने कहा, “ईसाइयों को अल्पसंख्यक कोचिंग केंद्रों में उनके उचित हिस्से से वंचित कर दिया जाता है। हमें उम्मीद है कि सरकार हमें न्याय से वंचित नहीं करेगी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे (ईसाई) मुद्दों को मुख्यमंत्री द्वारा संबोधित किया जाएगा।” ऑर्थोडॉक्स चर्च ने भी इस आदेश का स्वागत किया और कहा कि वह चाहते हैं कि विजयन अल्पसंख्यक दरियादिली के बीच ईसाइयों के अधिकारों की रक्षा के लिए निर्णय लें।
बता दें कि शुक्रवार (मई 28, 2021) को केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के 6 साल पुराने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिमों को 80 फीसदी स्कॉलरशिप दी जा रही थी, जबकि ईसाइयों की इसमें महज 20 फीसदी हिस्सेदारी थी। केरल हाई कोर्ट ने इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया।
केरल हाई कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि सरकार को इसके खिलाफ अपील करनी चाहिए। जबकि दूसरी तरफ ईसाइयों ने इस फैसले का स्वागत किया है। इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा है कि कोई भी फैसला हाई कोर्ट के ऑर्डर को पढ़ने के बाद ही लिया जाएगा। शनिवार को सीएम विजयन ने मीडिया से कहा कि कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा, “यह (अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति) कई वर्षों से अस्तित्व में है। उच्च न्यायालय के आदेश की विस्तार से जाँच होनी चाहिए और उसके बाद सरकार अपना रुख तय करेगी।”
गौरतलब है कि केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार (मई 28, 2021) को फैसले में कहा था, “हम राज्य सरकार को राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पास उपलब्ध नवीनतम जनसंख्या जनगणना के अनुसार राज्य के भीतर अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को समान रूप से योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए आवश्यक और उचित सरकारी आदेश पारित करने का निर्देश देते हैं।”
फैसले में कहा गया कि सरकार को अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करने का कोई अधिकार नहीं था। लेकिन यह एक ऐसा मामला है, जिसमें राज्य के भीतर ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के जनसंख्या अनुपात से उपलब्ध अधिकार को ध्यान में रखे बिना, राज्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को 80% छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है। कोर्ट के अनुसार, यह असंवैधानिक है और किसी भी कानून द्वारा समर्थित नहीं है।