सम्राट मिहिर भोज को ‘गुर्जर’ बताए जाने पर आखिर राजपूत समाज आक्रोशित क्यों है? आखिर क्या कारण है कि उन्हें ‘गुर्जर’ बताने वाले पोस्टरों को न सिर्फ फायदा गया, बल्कि दादरी में इसके विरोध में प्रदर्शन भी हुआ था। उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के कई इलाकों में हमने देखा कि कैसे राजपूत समाज ने सड़क पर उतर कर सम्राट मिहिर भोज को ‘गुर्जर’ बताए जाने के विरुद्ध कड़ा रुख अख्तियार किया।
आखिर उनके आक्रोश का कारण क्या है? आखिर सम्राट मिहिर भोज को ‘गुर्जर’ कहे जाने पर क्षत्रिय समाज आंदोलन पर क्यों उतर आया? अब जब उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में ये मुद्दा जोर पकड़ता ही जा रहा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रतिमा के अनावरण के बाद भी ये शांत होता नहीं दिख रहा है। राजनीतिक रूप से इसका क्या असर पड़ सकता है, हम इस पर भी बात करेंगे।
ऑपइंडिया ने इस सम्बन्ध में सोशल मीडिया में सर्कुलेट हो रहे संदेशों की भी पड़ताल की, जिनमें इसके खिलाफ अलग-अलग तरीकों से विरोध दर्ज कराया जा रहा था। राजपूत समाज के बीच एक सन्देश काफी प्रसारित हो रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि जब एक इतिहासकार के पास कुछ लोगों ने जाकर ऐसा भारत का इतिहास बताने को कहा जिसमें ‘क्षत्रिय’ नहीं आएँ, तो उस इतिहासकार ने उन्हें कोरा कागज देकर भेज दिया।
इसे ‘इतिहास की चोरी’ का नाम देते हुए राजपूत समाज के लोग कह रहे हैं कि उनसे उनकी पहचान व उनके पूर्वजों की अस्मिता न छीनी जाए। ऐसा नहीं है कि आक्रोशित सिर्फ राजपूत ही हैं। गुर्जर समाज में भी आक्रोश है, क्योंकि उनका आरोप है कि सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण के दौरान ‘गुर्जर’ शब्द को हटा दिया गया। उनका कहना है कि प्रतिमा का उद्घाटन तब तक नहीं माना जाएगा, जब तक वापस वहाँ ‘गुर्जर’ शब्द नहीं लिख दिया जाता।
सियासत में मौके देखते ही फायदे के लिए नेता तो कूद पड़ते ही हैं, ऐसे में 2017 तक उत्तर प्रदेश में सत्ता में रही सपा के मुखिया अखिलेश यादव भी कैसे पीछे रहते। अखिलेश यादव ने दावा किया कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर-प्रतिहार थे, लेकिन भाजपा ने उनकी जाति ही बदल दी है। उन्होंने लिखा, “इतिहास में पढ़ाया जाता रहा है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर-प्रतिहार थे, पर भाजपाइयों ने उनकी जाति ही बदल दी है। निंदनीय!’”
अखिलेश यादव ने आगे कहा, ‘”छल वश भाजपा स्थापित ऐतिहासिक तथ्यों से जानबूझ कर छेड़छाड़ व सामाजिक विघटन कर किसी एक पक्ष को अपनी तरफ करती रही है। हम हर समाज के मान-सम्मान के साथ हैं।” हालाँकि, सीएम योगी के दादरी दौरे से पहले गुर्जर और राजपूत संगठनों ने एक साथ मंच पर आकर विवाद ख़त्म करने की घोषणा की थी। लेकिन, ‘गुर्जर’ शब्द शिलापट्ट से हटाने जाने के विरोध में गुर्जर समाज ने महापंचायत बुला लिया।
सम्राट मिहिर भोज पर क्या कहना है राजपूत समाज के प्रतिनिधियों का?
हमने इस पूरे मामले को समझने के लिए उत्तर प्रदेश में ‘श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना’ प्रदेश संगठन महामंत्री राणा बृजेश प्रताप सिंह से बात की, जिन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रतिमा का अनावरण किया है, उस पर ‘गुर्जर’ शब्द नहीं लिखा था और ये बात उस कार्यक्रम में उपस्थित गुर्जर नेताओं को भी पता है। उन्होंने ताज़ा घटना का जिक्र करते हुए बताया कि सोमवार (27 सितंबर, 2021) की रात को सपा-बसपा के कुछ गुर्जर नेताओं ने प्रतिमा को गंगाजल से धोया है।
राणा बृजेश प्रताप सिंह ने कहा कि इस कृत्य में कुछ भाजपा के स्थानीय नेता भी शामिल थे। उनका कहना था कि वो इस उद्घाटन को नहीं मानते, इसीलिए ‘शुद्धिकरण’ कर के फिर से उसमें ‘गुर्जर’ शब्द लगा दिया। उन्होंने भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह नागर पर आरोप लगाया कि उन्होंने सुबह-सुबह जाकर प्रतिमा पर फूल चढ़ाया और सोशल मीडिया पर ‘सत्यमेव जयते’ लिखा। बृजेश ने पूछा कि क्या किसी के लिख देने से इतिहास बदल जाएगा?
उन्होंने कहा कि पहली बात तो ये है कि मुख्यमंत्री ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। उन्होंने कहा कि इस शब्द को लगाने का ये लोग प्रयास कर रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री को संभवतः इतिहास की जानकारी है और इसीलिए उन्होंने इस शब्द पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि सीएम योगी ने सत्य का साथ दिया है, लेकिन इन हरकतों से उनका अपमान किया जा रहा है। उन्होंने पूछा कि जब यही करना था तो उन्हें बुलाया क्यों?
बृजेश ने कहा, “आज का राजपूत युवा स्वतंत्र सोच रखता है और किसी पार्टी के पीछे लग कर काम करने वाला नहीं है। वो खुद अपना निर्णय लेने में सक्षम है। कुछ लोग बंद कमरे में समझौता कर के आंदोलन को खत्म कराने का ठेका ले रहे हैं, लेकिन ये आंदोलन युवाओं का है। समझौता कराने वालों का नहीं है, जो मीडिया में आकर आंदोलन खत्म कराने की घोषणा कर रहे। युवा नाराज़ है। रोजगार नहीं मिल रहा हमारे युवाओं में। सरकारी नौकरियों में हमारी हिस्सेदारी 4% से भी कम है। युवाओं को कोई बहका नहीं सकता, वो अपना हक़ माँगने के बदले अब छीनेंगे।”
अखिलेश यादव के बयान पर राणा बृजेश प्रताप सिंह ने कहा कि पूर्व सीएम ने ‘गुर्जर-प्रतिहार’ लिख कर एक भ्रामक सी स्थिति पैदा कर छोड़ दी है और ये नहीं बताया है कि वो जाति की बात कर रहे या क्षेत्र की। वो बाद में राजपूतों से कहेंगे कि क्षेत्र की बात की है और गुर्जरों से कहेंगे कि उनकी बात की गई है। बकौल बृजेश, गाँव-गाँव में राजपूत युवाओं की पंचायत हो रही है और सिकंदराबाद-जेवर से लेकर कई विधानसभा क्षेत्रों में ये चालू है।
उन्होंने कहा, “भाजपा और RSS पिछले एक-डेढ़ दशक से इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास कर रही है। युवा इसके खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। पहले के बड़े-बुजुर्ग समझौते कर के बैठ जाते थे। अब हम मूर्तियाँ लगाएँगे, क्योंकि पहले नहीं लगाया तभी आज ऐसा हो रहा। हम सम्राट मिहिर भोज के अलावा भीमदेव सोलंकी, पृथ्वीराज चौहान, अनंगपाल तोमर और महाराजा सुहेलदेव की भी प्रतिमाएँ लगाएँगे। महाराणा प्रताप एक राष्ट्रीय नायक हैं, उनकी छवि अलग है। हम अब उन नायकों की प्रतिमाएँ लगाएँगे, जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई।”
उन्होंने ‘श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना’ की अगली योजनाओं के बारे में बात करते हुए बताया कि अब हमारे जो छिपे हुए महापुरुष हैं, उन्हें सबके सामने लाना है क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया तो उन पर भी दावा ठोका जाएगा कल को। उन्होंने कहा कि गुर्जर व राजपूत में विवाद पैदा कर के योगी आदित्यनाथ को नुकसान पहुँचाया जा रहा है, जिसमें कुछ भाजपा के लोग भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि राजपूत युवा अब अपना अलग स्वतंत्र राजनीतिक लड़ाई शुरू करेंगे।
वहीं ऑपइंडिया ने ‘अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा’ के यशपाल तँवर से भी बात की, जिन्होंने जानकारी दी कि हमारे समाज ने करनाल में 26 सितंबर, 2021 को ‘वीर चक्र’ से सम्मानित कर्नल देवेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक महापंचायत बुलाई थी। उन्होंने बताया कि पूरे हरियाणा के राजपूत अक्टूबर में पुनः इकट्ठे होंगे और लुधियाना के अमर गार्डन में राजपूत समाज का एक बहुत बड़ा कार्यक्रम हुआ था, जिसमें पंजाब के विधानसभा स्पीकर केपी राणा भी आए थे।
उन्होंने बताया कि 10,000 के राजपूत उस दिन इकट्ठे हुए थे। उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वजों की जाति बदली जाएगी तो हमारे युवा इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। ग्वालियर में हमारी टीम अदालत में भी लड़ाई लड़ रही है। केवल सोशल मीडिया ही नहीं, जमीन पर भी हम लड़ रहे हैं। हमारे अध्यक्ष महेंद्र तँवर ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की। सरकार असामाजिक तत्वों को सहारा दे रही है। लोकतंत्र के भीतर राजपूतों के अधिकारों का हनन हो रहा है।”
उन्होंने आगे कहा, “हमारे बच्चों पर गोकशी के आरोप लगाए जा रहे हैं। उनका बेवजह चालान काटा जाता है। ‘किसान आंदोलन’ को मैं ‘जाट आरक्षण’ आंदोलन कहता हूँ, उन्होंने ‘भारत बंद’ के बहाने इतनी तबाही मचाई, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। राजपूत समाज पूरे देश में फैला हुआ है। हमारा युवा योगी जी को काफी पसंद करता है और जब उन्हें दिल्ली बुलाया गया था और उन्हें सीएम पद से हटाने जाने की अटकलें थीं, उस समय पूरे देश के राजपूतों ने उनके समर्थन में ट्रेंड चलाया।”
सम्राट मिहिर भोज को ‘गुर्जर’ बताए जाने पर राजपूत समाज के विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें
सम्राट मिहिर भोज के ‘राजपूत’ होने के पीछे क्या दिए जा रहे हैं सबूत?
आज भी ‘प्रतिहार’ वंश का क्षत्रिय समाज मौजूद है। भीनमाल, उज्जैन और कन्नौज पर इन्हीं के पूर्वजों ने शासन किया था – ऐसा माना जाता है। ये भी कहा जा रहा है कि राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों को ही ‘गुर्जरदेश’ कहा जाता था, पूरे भारत को नहीं। ‘गुर्जर’ का अर्थ ‘गुजराती’ या ‘गुर्जरदेश में निवास करने वाले’ के रूप में भी किया जाता रहा है। गल्लका के शिलालेख में लिखा है कि नागभट्ट ने गुर्जरों को हराया था, जो अब तक अजेय थे।
इन तर्कों के आधार पर सवाल पूछा जा सकता है कि जब बागभट्ट ‘गुर्जर’ थे तो उन्होंने ‘गुर्जरों’ को कैसे हरा दिया? नागभट्ट के वंश में ही मिहिर भोज का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि ‘गुर्जरदेश’ पर विजय पाने के पश्चात ही नागभट्ट को ‘गुर्जरेश्वर’ कहा गया। मिहिर भोज के सेनापति कनलपल के बारे में भी तथ्य दिया जा सकता है कि वो ‘गुर्जर’ नहीं थे, क्योंकि आज भी गढ़वाल में परमार राजपूत रहते हैं, जो इसी समाज के हैं।
836 ईस्वी से 885 ईस्वी तक शासन करने वाले मिहिर भोज का शासनकाल 49 वर्षों का था। इन 5 दशकों में भारतीय उप-महाद्वीप का एक बड़ा हिस्सा उनके मार्गदर्शन में काफी फला-फूला। उनका साम्राज्य मुल्तान से पश्चिम बंगाल में गुर्जरपुर तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फैला हुआ था। ये वो समय था, जब अरब के इस्लामी कट्टरपंथियों ने साम्राज्य विस्तार शुरू कर दिया था और उनकी नजर सिंधु के पार भारतवर्ष पर थी।