‘बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’, ‘आडवाणी जी आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं’ ‘जन्मभूमि के काम न आए, वो बेकार जवानी है… ख़ून नहीं वो पानी है..।’ सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाने के संकल्प को लेकर जहाँ से भी गुजरे। वहाँ रामभक्त बस यही उद्घोष कर रहे थे। कहते हैं कि आडवाणी का रथ उस रथयात्रा में भले अयोध्या नहीं पहुँच पाई हो लेकिन उनका संकल्प जरूर जन-जन तक पहुँच गया था।
वर्ष 1990 ने भारतीय राजनीति और समाज में व्यापक परिवर्तन की नींव रखी थी। लाल कृष्ण आडवाणी ने, जो कि उस समय भाजपा के अध्यक्ष थे, 25 सितंबर से मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू कर दी। इस रथयात्रा को 30 अक्टूबर को ही अयोध्या पहुँचना था। लेकिन उससे पहले ही उनके रथ को रोक दिया गया था। लेकिन देशवासियों का संकल्प अपने रामलला के मंदिर निर्माण की दिशा में सदैव आगे बढ़ता रहा।
लंबे समय से प्रतीक्षारत अयोध्या श्रीराम मंदिर निर्माण और इसके भूमी पूजन की तारीख की घोषणा के बाद से पूरे देशभर में हिन्दुओं में उत्साह का माहौल है। पिछले साल 9 नवंबर को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए स्थल सौंपने और उसी के लिए एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया। इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने सरकार को सुन्नी वक्फ बोर्ड को पाँच एकड़ उपयुक्त जमीन देने का निर्देश भी दिया।
लेकिन क्या हिन्दू आस्था के सबसे बड़े और अहम प्रतीक भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण का सफर इतना सरल और खुशनुमा था? इसका जवाब इस मंदिर के इतिहास और बाबरी मस्जिद विवाद के साक्षी लोगों से बेहतर और कौन दे सकता है।
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर अयोध्या भूमि विवाद भारत के सबसे लंबे भूमि विवाद में से एक है, जो दशकों तक जारी रहा। वर्ष 1528 में इस्लामिक आक्रान्ता बाबर के शासनकाल के दौरान, पुराने हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था और अयोध्या में उसी स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया था, जिसे बाबर के नाम पर रखा गया था।
1859 में औपनिवेशिक ब्रिटिश प्रशासन ने इस साइट के चारों ओर एक बाड़ लगा दी, जो हिंदू और दूसरे मजहब के लिए पूजा के अलग-अलग क्षेत्रों को दर्शाता है। यही कारण है कि यह ढाँचा लगभग 90 वर्षों तक खड़ा रहा। हालाँकि, कानूनी रूप से यह विवाद पहली बार 1980 के दशक में शुरू हुआ और 2019 में दो दशकों से भी अधिक समय के बाद लगभग समाप्त हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार अपना फैसला दिया।
लेकिन, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने हिन्दुओं के मन में इस राम मंदिर के लिए आस्था और उत्साह का जो संचार किया, वह आज भुलाया नहीं जा सकता है। इसी क्रम में वो दिन स्मरण हो आता है जब लालकृष्ण आडवाणी, अयोध्या पहुँचे थे।
1990 में वीपी सिंह बीजेपी के समर्थन से भारत के प्रधान मंत्री बने, जिन्होंने चुनाव में 58 सीटें जीती थीं। तब, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने अयोध्या स्थित इस भूमि पर श्रीराम मंदिर बनाने के फैसले के समर्थन के लिए देशभर में एक रथ यात्रा निकाली थी। 23 अक्टूबर को, उन्हें यात्रा के दौरान बिहार में गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद भाजपा ने सरकार को दिया हुआ अपना समर्थन वापस ले लिया।
इसी क्रम में जब लालकृष्ण आडवाणी जब सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकले थे , तो उनकी राजनीतिक और धार्मिक रैली के हर पड़ाव में उनका समर्थन करने के लिए हजारों की संखा में भीड़ उमड़ी। रथयात्रा के दौरान जहाँ से भी अडवाणी का रथ गुजरा सड़कों पर लोगों के जनसैलाब ने आडवाणी को मंत्रों और फूलों के साथ सम्मानित किया। इस संकल्प के स्वागत के लिए, हर पड़ाव पर श्रीराम भक्तों के हाथों में भगवा झंडे, धनुष और त्रिशूल नजर आ रहे थे।
श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण का खाका वर्ष 1984-85 में तैयार किया गया था। इस पूरे मामले का केंद्र प्रयागराज में अशोक सिंहल का निवास ‘महावीर भवन’ बना। इसी जगह पर संत-महात्माओं के साथ रज्जू भैया, डॉ मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, सुब्रमण्यम स्वामी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार ने बातचीत की थी। लालकृष्ण आडवाणी ने जब रथयात्रा निकाली तो अशोक सिंहल का उन्हें पूरा सहयोग मिला। इसने देश भर में भगवान् श्री राम के मंदिर के लिए माहौल बना दिया था।
आखिरकार लम्बे इन्तजार के बाद, आने वाले 5 अगस्त को इस दिव्य मंदिर का भूमिपूजन किया जाना तय हुआ है। निश्चित ही हिन्दुओं ने जिस राम मंदिर के लिए इतने वर्षों तक इन्तजार किया है, उसके उद्घाटन और स्थापना को लेकर जनमानस में कितना उत्साह होगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।