लोकसभा ने 21 दिसम्बर, 2023 को देश के चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति के प्रावधानों को नियमित करने वाले कानून को पास कर दिया है। यह बिल पहले ही राज्यसभा से पास हो चुका है। इसे राज्यसभा ने इसी सत्र में 12 दिसम्बर, 2023 को पास किया था। यह बिल अब राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा। अब इसी के तहत भारत के चुनाव आयोग में दो चुनाव आयुक्तों और एक प्रमुख चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जाएगी। भारत के चुनाव आयोग में तीन आयुक्त होते हैं।
भारत में आजादी के बाद पहली बार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर स्पष्ट क़ानून बना है। इससे पहले तक इनकी नियुक्ति के विषय में कोई स्पष्ट नियम कायदे नहीं थे। इसी कारण से मोदी सरकार को यह कानून संसद में लाना पड़ा है। हालाँकि, पहले ही संसद की सुरक्षा पर हंगामा करने के कारण अधिकाँश विपक्ष इस चर्चा से नदारद रहा।
क्या कहता है कानून?
इस कानून के तहत अब चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति देश के प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा एक नामित केन्द्रीय मंत्री की सदस्यता वाली समिति के सिफारिश आधार पर राष्ट्रपति के माध्यम से होगी। इन समिति को चुनाव आयोग के आयुक्तों के लिए उपयुक्त नाम केन्द्रीय कानून मंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति देगी। चुनाव आयोग में आयुक्त बनने वाले आयुक्त भारत सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी होंगे। इस कानून में अन्य कई महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं।
अब तक कैसे होती थी चुनाव आयोग में नियुक्ति?
इससे पहले देश के संविधान में चुनाव आयोग और इसमें आयुक्तों की संख्या को लेकर तो बात की गई थी लेकिन उनकी नियुक्ति के लिए नियम कायदे नहीं बनाए गए थे। अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में थी। केंद्र सरकार ही इनके लिए नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को भेजती थी। इस प्रक्रिया में यह कमी थी कि इसमें विपक्ष का कोई रोल नहीं था। अब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को चुनाव आयुक्त के नाम की सिफारिश करने वाली समिति में हिस्सा दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को लेकर क्या कहा था?
इस सम्बन्ध में मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक देश की संसद चुनाव आयुक्तों को नियुक्त करने के लिए कोई स्पष्ट क़ानून नहीं लेकर आती तब तक प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और देश के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति करेगी। हालाँकि, यह एक अस्थायी प्रोविजन था और संसद के नया कानून बनाए जाने तक ही यह तरीका चलता। अब कानून आ जाने से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में न्यायपालिका का कोई रोल नहीं रह जाएगा।