महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार द्वारा पेश किए गए एक अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इसके बाद उद्धव सरकार और राज्यपाल के बीच मतभेद की खबरें आने लगी। बता दें कि महाविकास अघाड़ी सरकार ने राज्यपाल से सीधे जनता से सरपंच चुनने के पूर्ववर्ती सरकार के निर्णय को रद्द कर ग्राम पंचायत सदस्यों में से सरपंच चुनने संबंधी अध्यादेश जारी करने की सिफारिश की थी।
महाराष्ट्र सरकार की इस सिफारिश को राज्यपाल ने खारिज कर दिया और कहा कि 24 फरवरी से शुरू होने वाले विधानमंडल के सत्र में तत्संबंधी कानून बनाया जाए। राज्यपाल द्वारा अध्यादेश पर हस्ताक्षर न करने की वजह से अब विधानमंडल में कानून बनने तक सीधे सरपंच चुनने का पहले का निर्णय बरकरार रहेगा।
जब उद्धव ठाकरे से इस बाबत सवाल किया गया तो उन्होंने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मतभेद होने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि राज्य विधानमंडल का सत्र होने वाला है और राज्यपाल ने सुझाव दिया है कि सदस्यों में से सरपंच चयन का निर्णय सदन में कराया जाना चाहिए। वहीं एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार ने अब अध्यादेश जारी करने के बजाय कैबिनेट के फैसले पर नए सिरे से विधेयक बनाने का फैसला किया है।
बता दें कि राज्य मंत्रिमंडल ने 29 जनवरी को फडणवीस सरकार के सीधे सरपंच चुने जाने के फैसले को पलट दिया और अध्यादेश को राज्यपाल के सामने हस्ताक्षर के लिए पेश किया। लेकिन राज्यपाल ने हस्ताक्षर से मना कर दिया। इसके अलावा ठाकरे सरकार ने नगरपालिका परिषदों जैसे स्थानीय स्व-सरकारी निकायों में डायरेक्ट इलेक्शन को लेकर किया गया भाजपा सरकार का एक और निर्णय भी पलट दिया।
गौरतलब है कि हाल ही में शिवसेना के दो मंत्रियों ने इस्तीफा दि दिया था। जानकारी के मुताबिक दोनों मंत्रियों ने लाभ का पद मामले में विपक्ष के आरोपों से बचने के लिए इस्तीफा दिया था। ऐसी संभावना जताई जा रही थी कि विपक्ष बजट सत्र के दौरान विधानसभा में इस मसले को प्रमुखता से उठा सकती है। वह दोनों की नियुक्तियों को मुद्दा बना सकती है। बताया जा रहा है कि आपसी मतभेद में घिरी सरकार को और ज्यादा संकट में डालने से बचाने के लिए दोनों नेताओं ने अपना इस्तीफा उद्धव को भेज दिया।