जब अपने ही नींव में मट्ठा डालने पर आमादा हो तो उन्हें कौन समझाए? कभी यहाँ के चैनल्स पुलवामा के बाद पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता के गलत बयानों वाले प्रेस कॉन्फ्रेंस का प्रसारण कर पाकिस्तान को नैतिक सम्बल देते हैं कि देखो तुम्हारी बात सही है तभी तो हम (भारत के चैनल) तुम्हे दिखा रहे हैं, बिना किसी विरोध के। हाँ, इसके पीछे की मानसिकता यही है कि हर हाल में देशहित का विरोध और राष्ट्रविरोधियों का समर्थन करना है। कभी यहाँ के नेताओं के बयानों का, तो कभी कुछ विरोधी पोर्टलों और मीडिया चैनलों के रिपोर्टों का प्रयोग पाकिस्तान न सिर्फ़ अपनी जनता को यकीन दिलाने के लिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में बतौर सबूत भी इस्तेमाल करता है।
ख़ैर, अभी बात जम्मू-कश्मीर के पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती की, जिन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खुली छूट का गलत प्रयोग करते हुए एक बार फिर आतंकियों को उकसाने वाला बयान दे दिया है, मुफ़्ती ने खुलेआम कहा “आग से मत खेलो, अनुच्छेद -35 A के साथ छेड़छाड़ न करें, अन्यथा आप वो देखेंगे जो आपने 1947 से अभी तक नहीं देखा है। अगर उस पर (अनुच्छेद-35 A) हमला होता है तो मुझे नहीं पता कि जम्मू-कश्मीर में तिरंगे की जगह कौन से झंडे लोग लहराने को मजबूर होंगे।”
PDP leader Mehbooba Mufti: Don’t play with fire; don’t fiddle with Article-35A, else you will see what you haven’t seen since 1947, if it’s attacked then I don’t know which flag people of J&K will be forced to pick up instead of the tricolour. pic.twitter.com/8we431nID5
— ANI (@ANI) February 25, 2019
मुफ़्ती जी, आपका यह बयान, भारत सरकार को धमकी है या आप बता रही हैं कश्मीर में छिपे पाकिस्तानी आतंकियों को कि क्या करना है? आप ये बताइए कि क्या कश्मीर इस देश का हिस्सा नहीं, जो वहाँ के कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हैं? एक अच्छे लोकतान्त्रिक देश की पहचान होती है कि समय के साथ वह भी परिवर्तनशील हो। वहाँ कानून वक़्त की ज़रूरत के हिसाब से न्यायसंगत हों, न कि किसी तरह के तुष्टिकरण को बढ़ावा देते हुए अपने ही देश के दूसरे लोगों के साथ अन्याय करें।
आपसे तो पहला सवाल यही है कि क्या आप नहीं चाहतीं कि कश्मीरियों का भला हो? या सिर्फ़ राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता की लालसा में लगातार कश्मीर को आतंक और देशद्रोह की फैक्ट्री बनाए रखना चाहती हैं?
मुफ़्ती जी, माना कि आप अभी भी अपने पिता के विरासत को सँभालने में लगी हुई हैं। सत्ता के लिए राजनीति ठीक है लेकिन उसका स्तर इतना नीचे मत गिराइए कि आप कश्मीर को पाकिस्तान परस्त आतंकी राज्य में ही बदल डालिए।
याद है पिछले दिनों बिजबिहाड़ा में आपने अपने पिता के आत्मा की शांति के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में सेना की कार्रवाई में मारे गए आतंकी को शहीद का दर्ज़ा दे डाला था। आपने कश्मीर के नौजवानों से कहा था कि मैं आपकी माँ समान ही हूँ। अच्छा है! बहुत ख़ूब! लेकिन जब आपको घाटी को जहन्नुम बनाने पर आमादा आतंकियों के मर जाने पर पीड़ा होने लगी तो क्या तब आप उसी कश्मीर के अपने दूसरे बेटों को भूल गईं, जो इन आतंकियों के गोलियों का, पत्थरों का लगातार शिकार और लहूलुहान होते रहें।
जानती हैं, आप जैसे नेताओं की वजह से ही कश्मीर में आतंक न सिर्फ पनप रहा है बल्कि फल-फूल भी रहा है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद एक तरफ जहाँ सरकार आतंक की नर्सरी पर लगाम लगाने के मूड में है। वहीं आप लगातार आतंक, आतंकियों और उसके सरंक्षण कर्ताओं को प्रश्रय दे रही हैं।
सरकार जिस समय अलगाव वादी और घाटी में अशांति फैलाने वाले नेताओं पर कार्रवाई कर रही थी तो आप ट्वीट कर सरकार से पूछ रही थी कि किस कानून के तहत हुर्रियत नेताओं और जमात के कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया है? आपने तो एक कालजयी डॉयलाग भी दे मारा कि ‘आप लोगों को कैद कर सकते हैं, लेकिन उनके विचारों को क़ैद नहीं कर सकते।’
In the past 24 hours, Hurriyat leaders & workers of Jamaat organisation have been arrested. Fail to understand such an arbitrary move which will only precipitate matters in J&K. Under what legal grounds are their arrests justified? You can imprison a person but not his ideas.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) February 23, 2019
आपको तो पता ही होगा जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने शाह महमूद कुरैशी ने भारत को घेरने के लिए किया। लेकिन आपको राजनीति से फुरसत हो तब न देशहित की बात सोंचे।
कितना याद दिलाऊँ आपने तो आतंक के प्रति अपनी मुहब्बत का इज़हार करते हुए यहाँ तक कह दिया था, “मैं हमेशा से कहती रही हूँ कि कश्मीरी आतंकी (लोकल मिलिटेंट) मिट्टी के लाल हैं। हम लोगों का प्रयास हर हाल में लोकल मिलिटेंट को बचाने का होना चाहिए न सिर्फ़ हुर्रियत बल्कि जम्मू-कश्मीर के ‘बंदूकधारी लड़ाकों’ के पक्ष में हूँ।”
PDP Chief and former J&K CM Mehbooba Mufti: I’ve always said that the local militant is the son of the soil. Our attempts should be to save him. I believe, in Jammu and Kashmir, not only Hurriyat but those with the guns should also be engaged with, but not at this time. pic.twitter.com/zMcMGp3jda
— ANI (@ANI) January 15, 2019
याद है आपको, आपका यह बयान भी ऐसे समय में आया था, जब राज्य में आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए सेना लगातार छापेमारी कर रही थी। गर सेना ने मौत के घाट उतार दिए होते उन आतंकियों को तो शायद पुलवामा में 40 CRPF के जवानों की जान नहीं गई होती!
आप कहती हैं कि आतंकियों से बातचीत की जाए, बातचीत अच्छी बात है लेकिन तब जब आतंक पर लगाम लगे। एक तरफ कोई निर्दोष लोगों को जान से मार देने पर आमादा हो और आप कहें कि इन आतंकियों को मत मारिए, इनसे बातचीत कीजिए। क्या यह सही है?
बातचीत तब होगी जब वह बातचीत के लिए तैयार हो, इस देश ने आतंकियों को जितने मौके दिए उतना किसी ने नहीं दिया। बार-बार पाकिस्तान को मौका देने के बावजूद भी क्या वह अपनी हरकतों से बाज आया है? नहीं, आज भी वहाँ आतंक की खेती जारी है। और जब अब उस पर लगाम कसने की तैयारी हो रही तो सब पिनपिना रहें हैं जो कहीं न कहीं उसके प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थक हैं।
ख़ैर, आपको कितना याद दिलाया जाए, उससे कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं होने वाला, लेकिन फिर भी 30 दिसंबर 2018 की एक घटना याद दिला रहा हूँ जब आप एक संदिग्ध आतंकी के परिवार से मिलकर भारतीय सेना व गवर्नर को चेतावनी दे रहीं थी। आपने कहा था कि यदि आतंकवादियों के परिजनों के साथ उत्पीड़न नहीं रुका तो इसके ‘ख़तरनाक परिणाम’ होंगे। क्या अभी तक घाटी के आम लोग और सुरक्षा बल जो भुगत रहें वो कम ख़तरनाक है?
चुनाव आने वाले हैं महबूबा जी, आपकी भी मजबूरी होगी आतंक और आतंकियों को प्रश्रय देना, लगातार उनके पक्ष में बयान देना। शायद आपको भी शांति अच्छी नहीं लगती होगी।