Saturday, December 21, 2024
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गुजरात की 14 सीटों में ही ओवैसी के साँस फूले: मुस्लिम भी नहीं दे रहे भाव, कहीं रैली रद्द की तो कहीं बिरादरों का झेला विरोध

यह पहली बार नहीं है जब ओवैसी का गुजरात में मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया हो। इससे पहले इसी साल मई में चुनावी दौरे पर आए AIMIM नेता के विरोध में मुस्लिम समुदाय के सदस्य सूरत के लिंबायत में इकट्ठा हुए थे।

गुजरात विधानसभा चुनावों में अब तक लड़ाई हमेशा दो मुख्य दलों भाजपा और कॉन्ग्रेस के बीच रही है। लेकिन, पहली बार AAP तीसरा विकल्प बनने के लिए इस चुनावी मैदान में पूरे दमखम के साथ उतर रही है। हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की एआईएमआईएम (AIMIM) पार्टी ने भी इस बार कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

इनमें से 12 उम्मीदवार मुस्लिम हैं। चूँकि दो सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं, इसलिए पार्टी ने वहाँ हिंदू अनुसूचित जाति का उम्मीदवार खड़ा किया है।

सांसद असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी अपनी सांप्रदायिक राजनीति और विवादित बयानों के लिए देश भर में बदनाम हैं। हमने उपरोक्त कुछ सीटों पर खड़े स्थानीय मुस्लिम मतदाताओं से बात करके गुजराती मुस्लिमों में उनकी सांप्रदायिक राजनीति को लेकर क्या चल रहा है, यह जानने की कोशिश की।

दानिलिमदा में ओवैसी की सभा रद्द

AIMIM ने कौशिका बहन परमार नाम की एक महिला को दानिलिमदा सीट से चुनावी मैदान में उतारा है। इसे अहमदाबाद में मुस्लिम बहुल इलाका माना जाता है, लेकिन अनुसूचित जाति (SC) के लिए यह सीट आरक्षित है। गुजरात के बड़े राजनीतिक चेहरों में से एक कॉन्ग्रेस के शैलेश परमार ने इस सीट पर साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। इस बार भी कॉन्ग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक को मैदान में उतारा है।

वहीं, एआईएमआईएम ने इस सीट से कौशिका परमार को हिंदू अनुसूचित जाति का उम्मीदवार बनाया है। गौरतलब है कि दानिलिमदा स्थित शाह-ए-आलम दरवाजा में रहने वाले एक दबंग मुस्लिम परिवार का शैलेश परमार को समर्थन मिला हुआ है। इसलिए, वह लगातार मुस्लिम वोट पाकर यहाँ से जीत हासिल कर रहे हैं। यह वही इलाका है, जहाँ मुस्लिमों ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के नाम पर सुरक्षाकर्मियों और पुलिस पर जानलेवा हमला किया था। इसके आरोप में स्थानीय पार्षद शहजाद समेत कई लोगों को हिरासत में लिया गया था।

मुस्लिम बहुल इस सीट पर कॉन्ग्रेस पिछले 20 सालों से मुस्लिमों के समर्थन से जीतती आ रही है। यह पहली बार है जब कोई मुस्लिम पार्टी एआईएमआईएम उसे यहाँ से चुनौती दे रही है। इस सिलसिले में ऑपइंडिया ने दानिलिमदा जाकर स्थानीय मुस्लिमों की राय जानने की कोशिश की। शुक्रवार (18 नवंबर, 2022) को हमारी टीम दानिलिमदा में पीर कमल मस्जिद के पास फकीरा नाम की चाय की दुकान पर पहुँची। यहाँ हमेशा 100-150 लोग बैठे रहते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम होते हैं।

दानिलिमदा में पीर कमल मस्जिद के पास चाय की दुकान

ऑपइंडिया से बात करते हुए इलेक्ट्रीशियन का काम करने वाले सोहेल नाम के स्थानीय शख्स ने कहा, “दानिलिमदा में चीजें वैसी होती हैं, जैसा शहजाद बाबा कहते हैं। ओवैसी का यहाँ कुछ नहीं होने वाला।” सोहेल ने आगे कहा, “कुछ दिन पहले दानिलिमदा में ओवैसी की सभा थी, लेकिन उन्हें अपनी सभा रद्द करके यहाँ से जाना पड़ा, क्योंकि सभा में कोई पहुँचा नहीं। अब जिनकी सभा में लोग नहीं आ रहे हैं, उन्हें वोट कौन देगा?” फरीद मोहम्मद अटारी नाम के एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “मुस्लिम यह बात अच्छे से जानते हैं कि ओवैसी उनका नेता नहीं हैं। वह बीजेपी-आरएसएस का एजेंट है। इसलिए कोई मुस्लिम उन्हें वोट नहीं देगा।”

इसके अलावा, हमारी टीम ने कई और लोगों से भी बात की। उनमें से ज्यादातर के जवाब उपरोक्त लोगों से मिलते-जुलते थे। ध्यान दें, यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, इसलिए यहाँ एआईएमआईएम ने एक हिंदू महिला को मैदान में उतारा। यदि यह सीट सामान्य होती और एआईएमआईएम से कोई मुस्लिम पुरुष उम्मीदवार होता तो शायद लोगों की प्रतिक्रिया और चुनाव के परिणाम में अंतर होता।

जमालपुर में छीपा मुस्लिम बनाम छीपा मुस्लिम की लड़ाई

अहमदाबाद की जमालपुर सीट भी मुस्लिम बहुल है, जहाँ से कॉन्ग्रेस के इमरान खेड़ावाला विधायक हैं। वे इस बार भी यहाँ से कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार हैं। यहाँ भी एआईएमआईएम ने अपना उम्मीदवार उतारा है। ओवैसी की पार्टी ने गुजरात AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष साबिर काबुलीवाला को यहाँ से उम्मीदवार बनाया है। अहमदाबाद की जमालपुर सीट पर छीपा मुस्लिमों का दबदबा है। यह मुस्लिमों की एक जाति है। अब तक का इतिहास ऐसा है कि छीपा मुस्लिमों ने अपने वोट से यहाँ की राजनीति को दिशा दी है।

2012 में कॉन्ग्रेस ने यहाँ के छीपा मुस्लिम की जगह अन्य समुदाय के मुस्लिम समीर खान सिपाही को मैदान में उतारा, जो पठान थे। छीपा समाज से ताल्लुक रखने वाले साबिर काबुलीवाला ने यहाँ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया था। ऐसे में पूरे छीपा समुदाय ने उन्हें 30,000 से अधिक वोट दिए और कॉन्ग्रेस उम्मीदवार हार गया। भाजपा उम्मीदवार भूषण भट्ट को 6000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

जमालपुर की मशहूर लकी टी स्टॉल पर भी ऑपइंडिया की टीम पहुँची। यहाँ हमने स्थानीय मुस्लिमों के बारे में पता लगाने की कोशिश की। प्राइवेट नौकरी करने वाले एजाज अख्तर शेख ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा, “इस बार जमालपुर में छीपा बनाम छीपा की लड़ाई है। कॉन्ग्रेस के इमरान खेड़ावाला और AIMIM के साबिर काबुलीवाला – दोनों छीपा समुदाय से आते हैं।”

जमालपुर में लकी टी स्टॉल

उन्होंने आगे कहा, “इन दोनों नेताओं का अपनी जाति के लोगों पर अच्छा प्रभाव है और यह पता लगाना असंभव है कि उनकी जाति के लोग दोनों में से किसे वोट देंगे। लेकिन, एक बात तय है कि काबुलीवाला को जो भी वोट मिलेगा वो उनके नाम पर होगा न कि AIMIM के नाम पर। क्योंकि, इससे पहले उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़कर 30 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं।”

एक अन्य व्यक्ति, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, उसने कहा कि हर चुनाव में मतदान से पहले छीपा समुदाय द्वारा फतवा जारी किया जाता है कि वे किसे वोट देंगे। फतवे में जिस उम्मीदवार का नाम होगा, उसे पूरे समुदाय का वोट मिलना लगभग तय है। अब देखना यह होगा कि दो छीपा उम्मीदवारों की इस लड़ाई में उनकी जाति के लोग किसका साथ देते हैं।

अनस पाटनी नाम के एक शख्स ने ऑपइंडिया को बताया, “एआईएमआईएम गुजरात में कहीं भी अच्छा नहीं करेगी। यह केवल कॉन्ग्रेस के कुछ वोट काटने का काम करेगी। इससे बीजेपी को ही फायदा होगा।” हमने कई अन्य मुस्लिम लोगों से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उनमें से अधिकतर हमसे बात करने और अपनी राय व्यक्त करने से बच रहे थे।

सूरत में ओवैसी इफेक्ट क्या है?

AIMIM ने अहमदाबाद के अलावा सूरत की दो सीटों पर भी उम्मीदवार उतारे हैं। ये दो सीटें सूरत ईस्ट और लिंबायत हैं। इन दोनों सीटों पर अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है। हाल ही में ऑपइंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें ओवैसी को सूरत पूर्वी सीट पर एक जनसभा के दौरान मुस्लिमों के विरोध का सामना करना पड़ा था। जब ओवैसी मंच पर बोलने आए तो कुछ मुस्लिम युवकों ने ‘मोदी-मोदी‘ का नारा लगाकर और काले झंडे दिखाकर उनका विरोध किया था।

यह पहली बार नहीं है जब ओवैसी का गुजरात में मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया हो। इससे पहले इसी साल मई में चुनावी दौरे पर आए AIMIM नेता के विरोध में मुस्लिम समुदाय के सदस्य सूरत के लिंबायत में इकट्ठा हुए थे।

विरोध के दौरान लोगों ने ओवैसी को बीजेपी-आरएसएस का एजेंट बताया। सिर्फ सूरत ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात के मुस्लिमों का एक बड़ा तबका मानता है कि ओवैसी बीजेपी के एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं। ऑपइंडिया की ग्राउंड रिपोर्ट में भी यह बात सामने आ रही है।

बीजेपी की बी-टीम है AIMIM

मुस्लिम समुदाय में चर्चा है कि ओवैसी बीजेपी और आरएसएस के एजेंट हैं और उनकी पार्टी बीजेपी की बी-टीम है। मुस्लिमों में यह भी प्रचलित है कि एआईएमआईएम गुजरात में कॉन्ग्रेस का वोट काटकर बीजेपी की मदद करने आई है। उधर, अहमदाबाद की बापूनगर सीट से एआईएमआईएम के उम्मीदवार शाहनवाज पठान ने कॉन्ग्रेस प्रत्याशी को समर्थन देने के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। अब मुस्लिम समुदाय के लिए यह तय करना और मुश्किल होगा कि ओवैसी और AIMIM की बी-टीम असल में किसकी है।

इसके अलावा स्थानीय लोगों को विश्वास नहीं है कि एआईएमआईएम ने जिन सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, वहाँ भी ओवैसी कोई बड़ा प्रभाव नहीं डाल पाएँगे। तो अब यह देखना है कि क्या गुजरात का मुस्लिम समुदाय वास्तव में ओवैसी की साम्प्रदायिक राजनीति को नकारता है या अंतिम समय में ‘अपना वाला है’ नियम का पालन करता है।

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Lincoln Sokhadia
Lincoln Sokhadia
Young and enthusiastic journalist, having modern vision though bound with roots. Shares deep interests in subjects like Politics, history, literature, spititual science etc.

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