वे सर जी हैं। दिल्ली के। आज ही यानी 16 फरवरी 2020 को लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। साथ में उनके छह कैबिनेट सहयोगियों ने भी शपथ ली है। लेकिन, एक बार फिर आधी आबादी की नुमाइंदगी गायब है।
इससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी (आप) और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिए महिलाएँ केवल वोट बैंक हैं? आप ने दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बस में महिलाओं की मुफ्त सवारी और उनकी सुरक्षा का मसला जोर-शोर से उठाया था। लेकिन, जब प्रतिनिधित्व देने का मौका आया तो उनको किनारे लगा दिया है। ऐसा लगता है कि आप की नजर में महिलाएँ न तो अपने मन से वोट देने के काबिल हैं और न सरकार चलाने के। ऐसा हम नहीं कह रहे। आठ फरवरी यानी जिस दिन विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले गए थे उस दिन के केजरीवाल के इस ट्वीट पर नजर डालिए;
वोट डालने ज़रूर जाइये
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 8, 2020
सभी महिलाओं से ख़ास अपील – जैसे आप घर की ज़िम्मेदारी उठाती हैं, वैसे ही मुल्क और दिल्ली की ज़िम्मेदारी भी आपके कंधों पर है। आप सभी महिलायें वोट डालने ज़रूर जायें और अपने घर के पुरुषों को भी ले जायें। पुरुषों से चर्चा ज़रूर करें कि किसे वोट देना सही रहेगा
इस बार के चुनाव में आप ने नौ महिलाओं को मैदान में उतारा था। इनमें से आठ जीतकर भी आई हैं। ये हैं- आतिशी मार्लेना, राखी बिड़ला, राजकुमारी ढिल्लो, प्रीति तोमर, धनवंती चंदेला, प्रमिला टोकस, भावना गौड़ और बंदना कुमारी। आप की एकमात्र महिला उम्मीदवार जो इस चुनाव में जीत नहीं पाईं वे हैं सरिता सिंह। पार्टी ने उन्हें रोहतास नगर से उम्मीदवार बनाया था। इससे पहले 2015 के चुनावों में पार्टी ने आठ महिलाओं को मौका दिया था और सभी जीत कर विधानसभा पहुॅंचने में कामयाब रही थीं।
इस बार आप की जो महिला विधायक चुनी गईं हैं उनमें से एक आतिशी को तो पार्टी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कथित सुधारों का श्रेय भी देती रही है। वे उपमुख्यमंत्री और शिक्षा विभाग के मुखिया रहे मनीष सिसोदिया की पिछले कार्यकाल में प्रमुख सलाहकार थीं। वैसे, नतीजों से तो लगता है कि सरकारी स्कूलों की दशा बदल देने का आप का दावा जनता के गले नहीं उतरा है। यही कारण है कि खुद सिसोदिया बड़ी मुश्किल से इस बार विधानसभा पहुॅंचे हैं। बावजूद इसके केजरीवाल ने उनको कैबिनेट में रखा है। लेकिन, कालकाजी से 52 फीसदी से ज्यादा वोट पाने वाली आतिशी को इसके काबिल नहीं समझा गया।
आप की पहली कैबिनेट में कुछ समय के लिए रहीं राखी बिड़ला तो मंगोलपुरी से करीब 58 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही हैं। 30 हजार के ज्यादा के अंतर से जीती हैं। उन्हें भी मंत्री पद के काबिल नहीं समझा गया। प्रमिला टोकस, बंदना कुमारी जैसी महिलाएं दोबारा चुनकर आई हैं। लेकिन उन्हें भी मौका नहीं मिला है। इसके उलट बड़ी मुश्किल से जीते सत्येंद्र जैन और कैलाश गहलोत जैसे नेता कैबिनेट में अपनी जगह बचाने में कामयाब रहे हैं।
मैं, अरविंद केजरीवाल, ईश्वर की शपथ लेता हूँ … pic.twitter.com/RZ97CiWzMH
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 16, 2020
महिलाओं की नुमाइंदगी गायब होने के कारण विपक्षी नेताओं ने केजरीवाल पर महिला विरोधी होने के आरोप लगाए हैं। सोशल मीडिया पर भी आप की इसके लिए आलोचना हो रही है। @shivanibazaz के नाम के यूजर ने कहा, “आपने लोगों से वोट देने की अपील की, क्योंकि दिल्ली को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना है, लेकिन महिलाओं के लिए नीतियाँ कौन बनाने जा रहा है, आपके मंत्रिमंडल में महिलाएँ कहाँ प्रतिनिधित्व कर रही हैं। एक बार सोचो…।”
Dear @AamAadmiParty
— Shivani Bazaz (@shivanibazaz) February 15, 2020
You asked people to vote for you because you aim to make Delhi safer for women. Who is going to make policies for women? Where are women in your cabinet? Representation?
Think about it. A bunch of powerful men running the show isn’t a great example to set.
Where are the women representatives @ArvindKejriwal ? https://t.co/mt8QaOmGOi
— Faye DSouza (@fayedsouza) February 15, 2020
एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली के इस विधानसभा चुनाव में 60% महिलाओं ने आप को अपना वोट दिया है। लेकिन, 70 में से 62 सीटें जीतने वाली पार्टी सरकार में उनकी भूमिका तय नहीं कर पाई है। वैसे, केजरीवाल को यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में जनादेश केवल पॉंच साल के लिए होता है। इसलिए, उसके वादों पर यकीन कर जो महिलाएँ उसे वोट दे सकती हैं, वो सत्ता में अपनी हिस्सेदारी के लिए उससे सवाल भी कर सकती हैं।