लोकसभा में नागरिकता अधिनियम (संशोधन) विधेयक पर बहस के दौरान सदन को शर्मसार करते हुए ऑल इंडिया मजलिस उल इत्तिहाद अल मुसलमीन के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने सदन के पटल पर रखे गए बिल के मसौदे की कॉपी फाड़ दी।
AIMIM leader Asaduddin Owaisi tore a copy of #CitizenshipAmendmentBill2019 in Lok Sabha. pic.twitter.com/pzU1NtutD8
— ANI (@ANI) December 9, 2019
साथ ही उन्होंने इसे करोड़ों यहूदियों, समलैंगिकों, कम्युनिस्टों की हत्या का आदेश देने वाले जर्मन तानाशाह हिटलर के कानूनों से भी बदतर बताया।
हैदराबाद के लोकसभा सांसद ओवैसी ने कहा, “जब संविधान की प्रस्तावना बनाई जा रही थी, तो उसकी शुरुआत ईश्वर के नाम से नहीं हुई। उस समय में और अब में अंतर देखिए। अब हम एक कानून ला रहे हैं (जो, ओवैसी के त्रुटिपूर्ण/असत्य दावे के मुताबिक, नागरिकता के लिए आस्था को पैमाना बनाता है)”।
इसमें उन्होंने जोड़ा, “सीएबी (नागरिकता बिल) और एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता का रजिस्टर) को जोड़ा जा रहा है, ताकि (भारतीय) मुस्लिमों का कोई देश ही न रहे। भारत का एक तिहाई हिस्सा चीन ने ले लिया है, हमने अक्साई चिन पर से दावा छोड़ दिया है, सरकार चीन से डरी हुई क्यों है?”
ओवैसी के इस कथन में कई गलतियाँ/असत्य हैं। उनके स्टाफ़ ने शायद उन्हें यह जानकारी नहीं दी कि अक्साई चिन (चीन द्वारा हड़पा गया लद्दाख का भारतीय भू-भाग) पूरे भारत का नहीं, केवल पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा था। साथ ही उन्हें शायद इस बात की जानकारी नहीं है कि भारत ने अक्साई चिन पर दावा छोड़ा नहीं है। ऐसी खबरें मीडिया में अकसर आती ही रहतीं हैं कि भारत-चीन के बीच कोई समग्र वार्ता केवल अक्साई चिन मुद्दे के कारण हो नहीं पा रही है, या होकर सफ़ल नहीं हो पाई।
उन्होंने अपने शर्मनाक कृत्य को गाँधी जी के चोगे में छिपाने की कोशिश करते हुए उसकी तुलना गाँधी जी द्वारा तथाकथित रूप से दक्षिण अफ़्रीका में उन्हें जारी भेदभावकारी नागरिकता कार्ड फाड़ने से की। यह तुलना भी गलत थी, क्योंकि गाँधी के साथ व्यक्तिगत तौर पर उस नागरिकता के स्तर पर क़ानूनी भेदभाव हो रहा था, लेकिन ओवैसी इस देश में एक भी ऐसा कानून नहीं गिना सकते जो मुस्लिम के तौर पर उनको (ओवैसी को) किसी हिन्दू से एक भी पायदान नीचे रखे।