Sunday, November 17, 2024
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किसी के गहने गिरवी, कई की नहीं हुई शादी, 100+ तो पक्के घर का ख्वाब देखते मर गए: पात्रा चॉल के पीड़ितों की दर्दभरी कहानी, संजय राउत की गिरफ्तारी से जगी आस

सावंत का कहना है, "कम से कम 100-150 निवासियों की तो मृत्यु भी हो गई है जो अपने मकान का सपना लिए ही डेढ़ दशक तक इंतजार करते-करते चल बसे।"

शिवसेना सांसद संजय राउत पात्रा चॉल केस की वजह से चर्चा में हैं। यह घोटाला 1034 करोड़ रुपए से ज्यादा का बताया जाता है। जहाँ अदालत ने पात्रा चॉल घोटाले में संजय राउत को 4 अगस्त तक ED की रिमांड पर भेज दिया है वहीं इस कार्रवाई से पात्रा चाल के निवासियों में उम्मीद जगी है कि शायद अब उन्हें अपने सपनों का घर मिल जाए।

इंडियन एक्सप्रेस ने इस मामले में ऐसे कई निवासियों से बात की जिन्होंने अपनी परेशानियों को साझा किया है। उसमें से एक हैं गोरेगाँव में छह लोगों के परिवार के साथ किराए के मकान में रहने वाले संजय नाइक, जिन्होंने 30 की उम्र में नया आशियाना पाने के लिए सिद्धार्थ नगर स्थित 47 एकड़ में फैले पात्रा चाल का अपना मकान खाली कर दिया था। तब उन्हें तीन साल में अपना मकान मिलने का ख्वाब दिखाया गया था। लेकिन आज 14 साल बाद भी वो मकान के लिए इंतज़ार ही कर रहे हैं।

नाइक आज भी पात्रा चाल के 671 अन्य किरायेदारों के साथ अपना मकान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बता दें कि उस समय सभी ने अपने मकान महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) को सौपें थे।

नाइक जैसे कई अन्य लोगों ने दावा किया है कि पात्रा चाल खाली करने के बाद कहीं और रहने के किराए भरने के लिए उन्हें अपने सोने के गहने तक गिरवी रखने पड़े। नाइक का कहना है कि उनकी कमाई का 20 हजार रूपया तो हर महीने बस किराया भरने में जा रहा है और बाकी खर्चों ने मुंबई जैसे शहर में उनकी कमर तोड़ दी है। उनका कहना है कि उनका कहना है कि अगर परियोजना में देरी हुई तो हमें वो किराया भी नहीं मिल रहा है जो हमसे वादा किया गया था।

पात्रा चाल के निवासियों का कहना है कि समझौते के अनुसार, डेवलपर को सभी 672 किरायेदारों को हर महीने परियोजना के पूरा होने तक किराए का भुगतान करना था। जबकि, किराए का भुगतान केवल 2014-15 तक ही किया गया था। बाद में यह पूरी परियोजना जीएसीपीएल से जुड़े घोटाले की वजह से छह साल से अधिक समय तक रोक दिया गया था। इसके बाद फरवरी 2022 में फिर से इस परियोजना पर काम शुरू हो सका।

वहीं अभी भी पात्रा चाल की जगह आवासीय परियोजना पर निर्माण के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे हैं। तस्वीरों में वहाँ बैरिकेड्स नजर आ रहे हैं। चॉल के सहकारी समिति के किराएदार व सदस्य नरेश सावंत ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सैकड़ों परिवार जो चॉल में रहते थे, वे अब मुंबई महानगर क्षेत्र में फैले गए हैं। हर रोज लम्बी यात्रा करने को मजबूर हैं क्योंकि यहाँ मुंबई में एक कमरे के मकान का भी किराया 20 हजार से ज़्यादा है। जिसको सब लोग नहीं दे सकते इसलिए सब बहुत दूर-दूर तक बिखर गए हैं। जैसे विरार, वसई, नालासोपारा, कल्याण, डोंबिवली और नवी मुंबई। कुछ तो वापस अपने गाँव लौट गए हैं। और सब उम्मीदें छोड़ दिया है।

सावंत का यह भी कहना है, “कम से कम 100-150 निवासियों की तो मृत्यु भी हो गई है जो अपने मकान का सपना लिए ही डेढ़ दशक तक इंतजार करते-करते चल बसे। यहाँ तक परिवारों को किराया मिले भी छह साल से अधिक समय हो गया है। हम म्हाडा से अनुरोध करते रहे हैं लेकिन कुछ नहीं हुआ।”

उन्होंने बताया कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने परियोजना पर फरवरी 2021 में फिर से काम शुरू किया था तब राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि वह मार्च से किराया देना शुरू करेगी। अब तो अगस्त 2022 आ गया लेकिन अभी तक कोई किराया नहीं मिला है। उनका कहना है, “अपना घर न होने से कई लोगों की तो शादी भी नहीं हुई। क्योंकि शादी के मामले में लोग जानना चाहते हैं कि दूल्हे के पास क्या है? उसका अपना घर है या नहीं। हमारे मामले में, हमारे पास घर तो है, लेकिन एक नहीं दिखा सकते।”

पात्रा चॉल जमीन घोटाला क्या है?

इस घोटाले की शुरुआत साल 2007 में हुई थी। तब, महाराष्ट्र हाउसिंग एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) की 47 एकड़ जमीन पर 672 किराएदार रहते थे। इन्हीं 672 किराएदारों के पुनर्वास के लिए पात्रा चॉल परियोजना के तहत चॉल के विकास का काम प्रवीण राउत की कंपनी गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन और हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को सौंपा गया।

कॉन्ट्रैक्ट में कहा गया था कि 47 एकड़ पर जो बिल्डिंग बनेगी उसके 672 फ्लैट चॉल के किराएदारों को देने होंगे और तीन हजार फ्लैट एमएचडीए को हैंडओवर करने होंगे। बाद में जो जमीन बचेगी उसे बेचने और विकसित करने के लिए भी अनुमति जरूरी होगी। अब चॉल विकास के कॉन्ट्रैक्ट में सब चीजें तय थीं। लेकिन घोटाले की शुरुआत तब हुई जब कंपनी ने न तो इस जगह का विकास किया और न किराएदारों को मकान दिए और न ही MHADA को फ्लैट हैंडओवर किए।

प्राइवेट कंपनी पर आरोप है कि उन्होंने 47 एकड़ जमीन पर गरीबों के लिए फ्लैट बनाने की बजाए उसे 9 अलग-अलग बिल्डरों को बेचा और खासा पैसा कमाया। जब म्हाडा को इसकी सूचना हुई तो उन्होंने 2018 में जाकर उनके विरुद्ध एफआईआर करवाई और केस अपराध विंग के पास गया। इसके बाद 2020 में प्रवीण राउत की गिरफ्तारी हुई और यही से शुरु हुआ संजय राउत का इस केस से कनेक्शन।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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