कॉन्ग्रेस राज में उभरने वाले राज ठाकरे की राजनीतिक दुकान अब बंद होने के कगार पर पहुॅंच चुकी है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के सुप्रीमो ने लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ सकती है। ईवीएम से छेड़छाड़ की आशंका और फंड की कमी का हवाला दे राज ठाकरे ने इसके संकेत दिए हैं। ईवीएम का बहाना उन्होंने आम चुनावों में भी बनाया था।
चाचा बाल ठाकरे से राजनीति के दॉंव-पेंच सीखने वाले राज ने मार्च 2006 में शिवसेना छोड़ मनसे का गठन किया था। फरवरी 2008 में मुंबई में उनके कार्यकर्ताओं ने जमकर गुंडई दिखाई थी। उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया गया था। उस समय केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगहों पर कॉन्ग्रेस की सरकार हुआ करती थी और राज खूब दहाड़ते थे। 2014 के आम चुनावों से पहले उन्होंने मोदी के भी कसीदे पढ़े थे। लेकिन, भाव नहीं मिलने के बाद उनके खिलाफ खूब जहर उगला। नतीजतन, 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का खाता तक नहीं खुला।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज ठाकरे की चुनावी राजनीति से दिलचस्पी इस कदर कम हो गई है उन्होंने पार्टी के नेताओं को सलाह दी है कि देश की इकॉनामी ठीक न होने के कारण आगामी विधानसभा चुनाव से उन सबको दूर रहना चाहिए। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में जो तर्क दिए हैं वो उनके ही पार्टी के नेताओं के गले के नीचे नहीं उतर रही है। इससे पार्टी नेताओं का एक बड़ा वर्ग नाराज बताया जा रहा है।
राज ठाकरे ने चुनाव नहीं लड़ने के संकेत अपने घर पर पार्टी नेताओं की बैठक में दिए। बैठक आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी की दिशा एवं रणनीति पर चर्चा के लिए थी। कुछ नेताओं ने कहा कि चुनाव लड़ना चाहिए तो कुछ ने इसके खिलाफ अपनी राय रखी। इसके बाद राज ठाकरे ने अगली बैठक में अपना निर्णय सुनाने की बात कही। हालाँकि मंदी का हवाला देकर चुनाव से दूर रहने की सलाह देकर उन्होंने बता दिया कि उनके मन में क्या चल रहा है।
‘फंड हासिल करना मुश्किल है’
राज ठाकरे ने बैठक में कहा, “देश की खराब आर्थिक हालत को देखते हुए अपने पैसे संभाल कर रखिए और सोच समझ कर खर्च कीजिए। EVM पर होने वाले चुनाव निष्पक्ष नहीं होंगे। अगर पार्टी ने चुनाव मैदान में उम्मीदवार उतारे तो फंड हासिल करना मुश्किल होगा।”
राज ठाकरे की अध्यक्षता वाली पार्टी की हालात कितनी नाजुक चल रही है, इस बात का अंदाजा मनसे (MNS) नेताओं द्वारा बैठक में दिए गए बयान से लगाया जा सकता है। इस बैठक में कुछ नेताओं ने कहा, “चुनाव लड़ने में करोड़ों रुपए डालकर अगर हारना ही है, तो चुनाव लड़ने से क्या फ़ायदा? बीजेपी का ईवीएम के जोर पर सत्ता में आना तय है तो ऐसे में चुनाव लड़ने का निर्णय सही नहीं होगा।”