फादर स्टेन स्वामी। एक एक्टिविस्ट पादरी। एक अर्बन नक्सल, जिसे राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने भीमा-कोरेगाँव हिंसा मामले में गिरफ्तार किया था। जिनकी मौत 5 जुलाई 2021 को उस अस्पताल में हो गई जिसे न्यायिक हिरासत में रहते हुए भी दाखिल होने के लिए उन्होंने खुद चुना था। मौत के बाद से ही लिबरल गैंग ‘शहीद’ बता उन पर लगे गंभीर आरोपों पर पर्दा डालने की कोशिश में है। इस कड़ी में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक कदम और आगे निकल गए हैं। उन्होंने फादर स्टेन स्वामी की तुलना उस बिरसा मुंडा से की है जिसे आदिवासी भगवान मानते हैं।
सीएम सोरेन ने उन्हें शहीद बताते हुए कहा कि समाज के लिए उनका ‘अमूल्य योगदान’ हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने यह बात फादर स्टेन स्वामी की याद में राँची के नामकुम बगीचा में आयोजित सभा में कही। इतना ही नहीं आप तस्वीरों में देख सकते हैं कि इस दौरान वहाँ मौजूद पादरी तक जूते में हैं पर सीएम नंगे पैर हैं। इससे उन पर नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले इस पादरी के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। ध्यान रहे कि स्टेन स्वामी पर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के खिलाफ वामपंथी आतंकियों के साथ मिलकर साजिश करने और देश में अशांति फैलाने का आरोप था।
रिपोर्ट के मुताबिक, सोरेन ने गुरुवार (15 जुलाई 2021) को आयोजित सभा में कहा कि झारखंड बलिदान देने में कभी पीछे नहीं रहा। स्टेन स्वामी जैसे लोगों को समाज में ‘अमूल्य योगदान’ के लिए याद किया जाएगा। युगों बाद ऐसे लोग आते हैं, जिनके किए कामों की छाप नहीं मिटती। इतना ही नहीं सीएम ने अपने ट्विटर हैंडल से कार्यक्रम की तस्वीरों को शेयर करते हुए स्टेन स्वामी के सम्मान में रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता भी लिखी।
जहां मन में भय न हो, और ऊंचा हो भाल
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) July 15, 2021
जहां ज्ञान हो मुक्त,
जहां संकीर्ण दीवारों में न बंटी हो दुनिया
जहां सत्य की गहराई से निकलते हों शब्द सभी,
जहां दोषरहित सृजन की चाह में,
अनथक उठती हों सभी भुजाएं,
जहां रूढ़ियों के रेगिस्तान में खो न गई हो,
तर्क-बुद्धि-विवेक की स्वच्छ धारा
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सोरेन ने सभा के दौरान यह भी कहा कि स्टेन स्वामी ने दलितों, वंचितों और आदिवासियों की लड़ाई लड़ी थी। इसलिए आने वाली पीढ़ी को उनके जीवन से ‘प्रेरणा’ लेगी। उन्होंने कहा, “फादर स्टेन स्वामी से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात की थी। उस दौरान यह नहीं पता था कि वह अपने जीवनकाल में एक अमिट छाप छोड़ जाएँगे… उनका जीवन आसान नहीं था। वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। अपने जीवन काल में उन्होंने एक राह दिखाई है और ऐसे लोगों द्वारा किए गए कार्यों की छाप हमेशा रहती है।” इस कार्यक्रम में राँची के आर्क बिशप थियोडोर मस्कारेनहास, सहायक बिशप टेलोस्फर बिलुंग समेत कई अन्य लोग शामिल थे।
भारतीय रोमन कैथोलिक जेसुइट पादरी रहे स्टेन स्वामी लंबे वक्त से असामाजिक गतिविधियों में लिप्त थे। वर्ष 2018 में एल्गार-परिषद मामले की जाँच के दौरान स्वामी के देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की जानकारियाँ सामने आई थीं। जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तब भी कॉन्ग्रेस और झामुमो ने उनका बचाव किया था। हेमंत सोरेन ने उस समय कहा था, “गरीब, वंचितों और आदिवासियों की आवाज़ उठाने’ वाले 83 वर्षीय वृद्ध ‘स्टेन स्वामी’ को गिरफ्तार कर केंद्र की भाजपा सरकार क्या संदेश देना चाहती है?”
इसी तरह स्टेन स्वामी की मौत के बाद ट्वीट कर कहा था, “फादर स्टेन स्वामी के निधन के बारे में जानकर स्तब्ध हूँ। उन्होंने अपना जीवन आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने में समर्पित कर दिया था। मैंने उनकी गिरफ्तारी और उन्हें कैद करने का कड़ा विरोध किया था। उन्हें समय पर इलाज नहीं करवाने और उदासीनता बरतने के लिए केंद्र सरकार को जवाबदेह होना चाहिए।”