विपक्षी दलों, खालिस्तानी कट्टरपंथियों और वामपंथियों के हाथों ‘किसान आंदोलन’ के हाइजैक होने के बाद अब किसान संगठनों में भी आपस में लड़ाई शुरू हो गई है। कोई वार्ता के पक्ष में है तो कोई तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बगैर बातचीत नहीं करना चाहता।
भारतीय किसान यूनियन (BKU) के ‘एकता उगराहा’ गुट ने सोमवार (दिसंबर 14, 2020) को आयोजित उपवास से खुद को अलग कर लिया है। बीकेयू (भानु) के तीन नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। वहीं कॉन्ग्रेस नेता और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के प्रमुख सरदार वीएम सिंह आंदोलन में पंजाब के किसानों के दबदबे से नाराज बताए जा रहे हैं।
BKU (एकता उगराहा) के महासचिव सुखदेव सिंह ने कहा है कि संगठन का कोई भी नेता उपवास में भाग नहीं लेगा। ये वही संगठन है, जिसकी टिकरी सीमा पर हुई सभा में उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे दिल्ली दंगा आरोपितों की रिहाई की माँग करते हुए पोस्टर्स लहराए गए थे। सुखदेव सिंह ने कहा कि उन्हें या उनके संगठन को ऐसा करने का कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि ‘मानवाधिकार दिवस’ के मौके पर ऐसी माँग करना लाजिमी था।
उधर चिल्ला सीमा पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों में दो फाड़ हो गया है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हस्तक्षेप के बाद BKU (भानु) ने नोएडा-दिल्ली मार्ग खोलने का निर्णय लिया। संगठन के कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि वे इस निर्णय से आहत हैं और तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए बिना किसी भी प्रकार की रियायत दिए जाने के खिलाफ हैं। उन्होंने वार्ता में भी पीछे हटने से इनकार किया।
संगठन के फैसले का विरोध करते हुए राष्ट्रीय महासचिव महेंद्र सिंह चौरोली, राष्ट्रीय प्रवक्ता सतीश चौधरी समेत एक महिला किसान नेता ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। इन सभी ने कहा है कि वो संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह के निर्णय से दुःखी हैं।
There’s no rift among farmers. 3 leaders of Bharatiya Kisan Union (Bhanu) faction resigned because they were upset with their President Bhanu Pratap Singh, as to why he compromised: Rakesh Tikait, Spokesperson, Bhartiya Kisan Union on 3 BKU (Bhanu Faction) leaders’ resignation pic.twitter.com/30FAGCrkAx
— NewsMobile (@NewsMobileIndia) December 14, 2020
जिन किसान नेताओं ने इस्तीफा दिया है, वो धरना स्थल पर भी नहीं पहुँच रहे हैं। तीनों ने कुछ किसान नेताओं को अपने इस्तीफे की जानकारी दी है और सीधे भानु प्रताप को इस्तीफा सौंपा है। भानु प्रताप का कहना है कि लोगों की परेशानियों को देखते हुए उन्होंने रास्ता खोलने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि आंदोलन से आम जनता को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
किसान आंदोलन के बीच ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के घुसने के कारण भी इन संगठनों में दरार पड़ रही है। उत्तर प्रदेश के BKU (भानु) ने वीएम सिंह से नाता तोड़ लिया है। पंजाब छोड़ कर बाकी राज्यों के किसान संगठन थोड़ी नरमी दिखाते हुए सरकार से बातचीत के पक्षधर हैं। इससे पहले अकाली दल के समर्थक अजमेर सिंह लखोवाल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के कारण आंदोलन से निकाल बाहर किया गया था। याचिका वापस लेने के बाद उनकी वापसी तय की गई।
यूपी के वीएम सिंह इस बात से नाराज हैं कि बातचीत में पंजाब के ही किसानों का ज्यादा दबदबा है। हरियाणा में पहले 20 और फिर 29 किसानों के प्रतिनिधिमंडल के सरकार से मिल कर समर्थन देने को सीएम खट्टर और डिप्टी सीएम चौटाला की रणनीति बता कर कई संगठन इससे नाराज हैं। उत्तराखंड के भी कई किसान सरकार के समर्थन में पहुँच रहे हैं।
इससे 1 दिन पहले बीकेयू (भानु) के प्रदेश अध्यक्ष योगेश प्रताप ने किसान नेता व संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह की बात मानने से साफ़ इनकार कर दिया था।इसके बाद वो चिल्ला सीमा पर धरने पर बैठ गए थे। बाद में वो धरने से लौट गए थे, लेकिन कार्यकर्ताओं के मान-मनव्वल के बाद फिर लौट कर आए। प्रदर्शनकारियों ने नोएडा के सेक्टर-14ए का वो रास्ता शनिवार (दिसंबर 12, 2020) को खोल दिया था, जो पिछले 12 दिनों से बंद कर रखा गया था।