सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (7 नवंबर) को कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के निरस्त किए जाने के बाद विभिन्न प्रतिबंधों को लागू करने के विरोध में सवाल किया और पूछा कि क्या अधिकारियों को ‘दंगे होने का इंतज़ार’ करना चाहिए था?
जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने आज़ाद के वकील, पार्टी सहयोगी और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सवाल किया, “इस तरह के मामले में, ऐसी आशंका क्यों नहीं हो सकती कि पूरा क्षेत्र या स्थान अशांत हो सकता है?” इस पर सिब्बल ने तर्क दिया कि अधिकारियों द्वारा संचार और परिवहन व्यवस्था समेत अनेक पाबंदियाँ लगाना अधिकारियों का बेजा इस्तेमाल था। बता दें कि कपिल सिब्बल कॉन्ग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद की याचिका पर उनकी तरफ से बहस कर रहे थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल का तर्क था कि सार्वजनिक शांति को किसी प्रकार के ख़तरे की आशंका के बारे में उचित सामग्री के बगैर अधिकारी इस तरह की पाबंदियाँ नहीं लगा सकते।
उन्होंने पीठ के समक्ष तर्क दिया, कि सरकार यह कैसे मान सकती है कि सारी आबादी उसके ख़िलाफ़ होगी और इससे क़ानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होगी।
सिब्बल ने कहा,
“घाटी के 10 ज़िलों में सात मिलियन लोगों को पंगु बनाना जरूरी था? उन्हें ऐसा करने के समर्थन में तथ्य सामने रखने होंगे। यहाँ हम जम्मू और कश्मीर के लोगों के अधिकारों की बात नहीं बल्कि भारत के लोगों के अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि अधिकारियों को क़ानून और व्यवस्था की समस्या के बारे में आशंका हो सकती है, लेकिन उन्हें अपनी आशंकाओं को वापस लेने के लिए सामग्री की आवश्यकता होती है।
इस पर पीठ ने उनसे पूछा, “क्या उन्हें दंगे होने का इंतज़ार करना चाहिए था?”
इसका जवाब देते हुए, सिब्बल ने कहा, “वे कैसे मान सकते हैं कि दंगे होंगे। यह दर्शाता है कि उनके दिमाग में धारणा है और उनके पास कोई तथ्य नहीं है। ऐसा कहने के लिए उनके पास ख़ुफ़िया इनपुट हो सकते हैं।” उन्होने कहा कि यदि ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती तो अथॉरिटी वहाँ धारा-144 लगा सकती थी। राज्य का दायित्व न सिर्फ़ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है बल्कि ज़रुरतमंदों की रक्षा करना भी है।
इसके आगे उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में क्या हो रहा है, भारत की जनता को यह जानने का अधिकार है। इस मामले पर अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी।