कर्नाटक कॉन्ग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार को आयकर विभाग की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट से किसी प्रकार की राहत नहीं मिली। कोर्ट ने विभाग की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
कॉन्ग्रेस नेता ने कार्रवाई को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने जाँच पर स्टे माँगा था। मगर जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने इनकम टैक्स की जाँच पर कर्नाटक के पूर्व मंत्री शिवकुमार को स्टे देने से इनकार कर दिया। वहीं दूसरी ओर आयकर विभाग को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया गया है।
साल 2017 के अगस्त महीने में आईटी विभाग ने कॉन्ग्रेस नेता के 64 ठिकानों पर छापे मारे थे। इसके बाद से उन पर आय से अधिक संपत्ति और टैक्स चोरी का मामला चल रहा है। पिछले साल नवंबर में उन्होंने राहत पाने के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन वहाँ भी उन्हें राहत नहीं मिली थी। उससे पहले बेंगलुरु की सत्र अदालत से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी।
जानकारी के अनुसार, शिवकुमार द्वारा दायर विशेष अवकाश याचिका का आधार है कि छापेमारी के दौरान मिली राशि को अघोषित आय के रूप में नहीं माना जा सकता है। उनके वकील की दलील है कि जो भी धन मिला उसे तभी अघोषित माना जा सकता है, जब आयकर अधिनियम की धारा 69 ए की शर्तें पूरी हुई हों।
आईटी अधिनियम की धारा 69 के अनुसार, किसी भी वित्तीय वर्ष में, यदि कोई धन, बहुमूल्य वस्तु, गहने या अन्य मूल्यवान चीजें किसी कर अधिकारी द्वारा अनधिकृत (unrecorded) पाए जाते हैं, और कर देने वाला व्यक्ति ऐसी आय की घोषणा नहीं करने के लिए एक वाजिब स्पष्टीकरण प्रदान नहीं करता है, तो जाँच करने वाला अधिकारी उस संपत्ति को कर देने वाले व्यक्ति की आय घोषित कर सकता है।
शिवकुमार के वकीलों का तर्क है कि भले ही छापेमारी के दौरान पाई गई संपत्ति सेक्शन 69 ए के तहत आती है। लेकिन फिर भी उन पर आय छिपाने का इल्जाम नहीं लग सकता। क्योंकि जब आयकर विभाग द्वारा ने छापेमारी कर ये चीजें जब्त कीं तब शिवकुमार ने रिटर्न ऑफ इनकम दायर नहीं किया था।