Monday, December 23, 2024
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झटका बेच रहे हो या हलाल? दुकान में बोर्ड लगा कर बताओ: SDMC का अहम फैसला, पास किया प्रस्ताव

जो भी होटल-रेस्टोरेंट-ढाबा या फिर मटन-चिकन बेचने वाले दुकान SDMC के अंतर्गत आते हैं, उन्हें एक साइन बोर्ड लगा कर यह स्पष्ट बताना होगा कि उनके यहाँ बिकने वाला मांस झटका है या हलाल।

SDMC (दक्षिण दिल्ली म्युनिशपल कॉर्पोरेशन) ने बुधवार (20 जनवरी, 2021) को एक अहम फैसला लिया। इसके अंतर्गत आने वाले सभी होटलों, रेस्टोरेंट या मीट की दुकानों को ‘झटका’ या ‘हलाल’ मीट बेचने से संबंधित बोर्ड लगाना होगा।

दक्षिण दिल्ली म्युनिशपल कॉर्पोरेशन के पास विभिन्न कमिटियों द्वारा कुछ प्रस्ताव आए थे। इनमें से झटका-हलाल संबंधी प्रस्ताव भी था। SDMC की सिविक बॉडी की स्टैंडिंग कमिटी ने यह प्रस्ताव 24 दिसंबर 2020 को पास कर दिया था। इसी प्रस्ताव पर अब मुहर लग गई है।

“दक्षिण दिल्ली म्युनिशपल कॉर्पोरेशन के अंतर्गत आने वाले चार ज़ोन के 104 वार्डों में हजारों होटल-रेस्टोरेंट हैं। इनमें से लगभग 90 प्रतिशत में मांस परोसा जाता है। लेकिन किसी में यह बताया नहीं किया जाता है कि परोसा जा रहा मांस ‘हलाल’ या ‘झटका’ है।’ SDMC द्वारा पारित प्रस्ताव में यह कहा गया।

SDMC द्वारा ‘झटका’ या ‘हलाल’ मीट बेचने से संबंधित प्रस्ताव को पास करने का मतलब हुआ कि जो भी होटल-रेस्टोरेंट-ढाबा या फिर मटन-चिकन बेचने वाले दुकान इस म्युनिशपल कॉर्पोरेशन के अंतर्गत आते हैं, उन्हें एक साइन बोर्ड लगा कर यह स्पष्ट बताना होगा कि उनके यहाँ बिकने वाला मांस झटका है या हलाल।

आपको बता दें कि इसके संबंध में छतरपुर काउंसिलर अनिता तँवर ने प्रस्ताव रखा था, जिसे मेडिकल रिलीफ ऐंड पब्लिक हेल्थ पैनल ने 9 नवंबर 2020 को स्टैंडिंग कमिटी के सामने प्रस्तावित किया था। इस प्रस्ताव का उद्देश्य ग्राहकों को जानकारी उपलब्ध कराना है कि वो जो खा रहे हैं, वो क्या है।

झटका क्या, क्या होता है हलाल

झटका का अर्थ है कि जानवर को एक ही वार द्वारा तुरंत मार दिया जाता है, जैसा कि नाम से पता चलता है “एक ही झटके में”। इस मामले में जानवर के सिर को किसी विशेष दिशा में करने या किसी भी तरह की प्रार्थना का उच्चारण करने का कोई विशिष्ट नियम नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी वध कर सकता है।

इसके उलट हलाल में जानवर की गले की नस में चीरा लगाकर छोड़ दिया जाता है, और जानवर खून बहने से तड़प-तड़प कर मरता है। इसके अलावा मारे जाते समय जानवर को मुस्लिमों के पवित्र स्थल मक्का की तरफ़ ही चेहरा करना होगा। सबसे आपत्तिजनक शर्तों में से एक है कि हलाल मांस के काम में ‘काफ़िरों’ (‘बुतपरस्त’, गैर-मुस्लिम, जैसे हिन्दू) को रोज़गार नहीं मिलेगा।

हलाल मतलब जिहाद

किसी भी भोज्य पदार्थ, चाहे वे आलू के चिप्स क्यों न हों, को ‘हलाल’ तभी माना जा सकता है, जब उसकी कमाई में से एक हिस्सा ‘ज़कात’ में जाए- जिसे वे जिहादी आतंकवाद को पैसा देने के ही बराबर मानते हैं, क्योंकि हमारे पास यह जानने का कोई ज़रिया नहीं है कि ज़कात के नाम पर गया पैसा ज़कात में ही जा रहा है या जिहाद में। और जिहाद काफ़िर के खिलाफ ही होता है- जब तक यह इस्लाम स्वीकार न कर ले!

यानी जब कोई गैर-मुस्लिम हलाल वाला भोजन खरीदता है, तो वह उसका एक हिस्सा अपने ही खिलाफ होने जा रहे जिहाद को आर्थिक सहायता देने में खर्च करता है। ‘Dr. झटका’ और ‘King of झटका revolution’ जैसे उपनामों से नवाज़े जा चुके Live Values Foundation के अध्यक्ष और झटका सर्टिफिकेशन अथॉरिटी के चेयरमैन रवि रंजन सिंह ने ऑपइंडिया से बात करते हुए इसे ‘हलालो-नॉमिक्स’ यानी हलाल का अर्थशास्त्र बताया था। “हलालो-नॉमिक्स का अर्थ है आप अपनी सुपारी खुद दे रहे हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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