महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी भले अब तक शिवसेना को नहीं मिल पाई है। लेकिन, इसके लिए हिन्दुत्व से उसकी दूरी बढ़ती जा रही है। पहले खबर आई थी कि कॉन्ग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए शिवसेना वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मॉंग से पीछे हट गई है। अब खबर यह है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या नहीं जाएँगे। वे 24 नवंबर को अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन करने वाले थे।
मीडिया रिपोर्टों में दौरा रद्द करने की अलग-अलग वजहें बताई गई है। एएनआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि सुरक्षा कारणों से उद्धव ने दौरा रद्द किया है। रिपब्लिक टीवी के अनुसार महाराष्ट्र की राजनीतिक हालत को देखते हुए शिवसेना सुप्रीमो ने अयोध्या नहीं जाने का फैसला किया है। साथ ही किसानों की स्थिति को भी इसका कारण बताया गया है। दैनिक जागरण के अनुसार सरकार गठन को लेकर स्थिति साफ नहीं होने के कारण ऐसा किया गया है। साथ ही कहा गया है कि राम जन्मभूमि परिसर सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील होने के कारण, सुरक्षा एजेंसियों ने वहॉं किसी भी राजनीतिक दल के नेता को जाने से मना किया है।
बता दें कि 9 नवंबर को राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उद्धव ठाकरे ने उसका जोरदार स्वागत किया था। उसी समय उन्होंने 24 नवंबर को अयोध्या जाने का ऐलान किया था। पिछले साल उन्होंने राम मंदिर के लिए ‘चलो अयोध्या’ आंदोलन की शुरुआत की थी। नारा दिया था- ‘पहले मंदिर फिर सरकार’।
Uddhav Thackeray cancels Ayodhya visit over Maharashtra govt formation; farmer distress https://t.co/HpHuMOyJ5a
— Republic (@republic) November 18, 2019
भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस के साथ समीकरण बनाकर सरकार गठन करने के लिए प्रयासरत है। लेकिन सोनिया गाँधी की ओर से स्थिति साफ़ होने के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है। आज कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बीच होने वाली बैठक से तस्वीर साफ़ होने की उम्मीद है। वहीं, शिवसेना नेता संजय राउत शनिवार को दावा कर चुके हैं कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ही होंगे।
ध्यान देने वाली बात है कि शिवसेना इस समय राज्य में सरकार बनाने के लिए इतनी लालायित है कि उसने अपनी मूल विचारधारा से समझौता करने की बात पर भी हाँ भर दी है। खबरों के अनुसार, तीनों पार्टियों के बीच संयुक्त बैठक के बाद तैयार हुए न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शिवसेना अपना कट्टर हिंदुत्व का चेहरा छोड़कर न केवल मुस्लिमों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने वाली शर्त पर तैयार हुई है, बल्कि कहा जा रहा है कि वे इस गठबंधन के बाद वीर सावरकर का नाम लेने से भी बचेगी।
ये भी पढ़ें:बिगड़ रही शिवसेना-कॉन्ग्रेस-NCP की बात?
ये भी पढ़ें:शिवसेना के 16, एनसीपी के 14 और कॉन्ग्रेस के 12 मंत्री होंगे