सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को (21 अगस्त 2020) मुंबई के तीन जैन मंदिरों को खोलने और पर्युषण पूजा की सशर्त अनुमति दी थी। शिवसेना को यह फैसला रास नहीं आया है। पार्टी मुखपत्र सामना में इसकी आलोचना करते हुए कहा गया है कि अदालत का हर फैसला ‘यस माय लॉर्ड’ कह कर कबूल करना पड़ता है।
फैसले की निंदा करते हुए महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ शिवसेना ने कहा कि कोरोना के भय के कारण सर्वोच्च न्यायालय का कामकाज भी हमेशा की तरह खुले ढंग से नहीं चल रहा। लेकिन उसी न्यायालय को ऐसा लगता है कि सरकार को अन्य सभी पाबंदियों को शिथिल कर देना चाहिए।
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कहा गया है, “कोरोना का डर न होता तो न्यायालय भी ‘वर्चुअल’ पद्धति से नहीं चल रहे होते। मगर हमें न्यायालय का हर निर्णय, ‘यस माय लॉर्ड…, ‘जी महाराज’ कहते हुए गर्दन झुकाकर ही स्वीकार करना पड़ता है। उस पर इस निर्णय का स्वरूप धार्मिक होने के कारण इसका सम्मान करना ही होगा।”
देश की सर्वोच्च ने पर्युषण पूजा के लिए 3 जैन मंदिरों को खोलने की अनुमति देते हुए महाराष्ट्र सरकार को फटकार भी लगाई थी। अदालत ने कहा था कि जब बाकी आर्थिक गतिविधियाँ चल रही हैं तो कोरोना का डर नहीं है, लेकिन धार्मिक स्थलों को खोलते वक्त कोरोना क्यों याद आता है। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन को कहा कि वो अंडरटेकिंग दें कि कोरोना को लेकर SoP और सरकार की गाइडलाइन का पालन किया जाएगा।
मुंबई में पर्युषण पर्व के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दादर, बाइकूला और चेंबूर स्थित 3 जैन मंदिरों को 22 और 23 अगस्त को खोलने की सशर्त इजाजत दी थी। इसी को लेकर शिवसेना ने सामना में लिखा है। इसमें कहा गया कि कोरोना कोई राज्य अथवा किसी सरकार द्वारा नहीं लाया गया है। इसमें राजनीति का ऐसा कोई संबंध होता तो देश के गृहमंत्री अमित भाई शाह व केंद्रीय कैबिनेट के पाँच-छह मंत्रियों को ‘कोरोना’ के संक्रमण के कारण अस्पताल नहीं जाना पड़ा होता।
संपादकीय में आगे कहा गया, “हम खुद मंदिर, व्यायामशाला खोल दिए जाएँ, ऐसा मत रखते हैं। मंदिर की भी एक अर्थनीति होती ही है और उस पर भी कई लोगों की आजीविका निर्भर है। भजन-प्रवचन करने वाले महाराज तो हैं ही, लेकिन उनके साथ-साथ पेटी, तबला बजाने वाले, कीर्तन गानेवाले भी हैं। कोई भी राज्य लोगों की बदहाली नहीं देख सकता है। यह सब खोल दिए जाएँ और लोग काम-धंधे पर जा सकें, यह सभी की चाहत है। मंदिर जनता का श्रद्धास्थल है और मंदिर में बैठे भगवान दुर्बलों को सहारा देते हैं। यह हर किसी के विश्वास पर निर्भर है। करोड़ों लोगों की आजीविका का प्रश्न मंदिर व अन्य प्रार्थनास्थल हल करते हैं। इसलिए मंदिरों का मुद्दा भी वित्तीय कारोबार का ही है माय लॉर्ड। भूल चूक माफ!”