नितिन गडकरी जब महाराष्ट्र में मंत्री हुआ करते थे तो उनका नाम ही हाईवे मिनिस्टर पड़ गया था। फिलहाल वे केंद्र में भूतल परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे विभागों के मंत्री हैं। वे मोदी सरकार के उन मंत्रियों में शामिल हैं जिनके कामकाज की सबसे ज्यादा तारीफ होती है। अब गडकरी का लोहा देश की शीर्ष अदालत ने भी मान लिया है। खुद मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने पूछा है कि क्या केंद्रीय परिवहन मंत्री सुप्रीम कोर्ट में आकर उन्हें अपनी योजनाओं से अवगत करा सकते हैं?
वाकया बुधवार का है। सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण से निपटने के लिए देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को लाने के लिए एक एनजीओ की याचिका पर सीजेआई की अगुआई वाली खंडपीठ सुनवाई कर रही थी। खंडपीठ ने कहा कि पटाखे और पराली से प्रदूषण कुछ दिनों के लिए होता है। हवा की गुणवत्ता को बदतर करने में गाड़ियों का सबसे ज्यादा योगदान होता है। इसे रोकने के लिए पीठ ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से सलाह मॉंगी। पीठ ने उनकी तारीफ करते हुए मिलने की इच्छा जताई। कहा- सार्वजनिक परिवहन और सरकारी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ई-व्हीकल्स) से बदलने का गडकरी का आइडिया शानदार है।
Chief Justice of India SA Bobde expresses inclination to discuss with Transport Minister Nitin Gadkari the issues relating to Centre’s policy of switching all public transport and government vehicles to electric vehicles over a period of time in order to curb air pollution. pic.twitter.com/kQWnoXUp14
— ANI (@ANI) February 19, 2020
खंडपीठ ने पूछा, “क्या परिवहन मंत्री आकर इलेक्ट्रिक वाहनों की तकनीक की योजना की जानकारी दे सकते हैं?” सीजेआई ने यह भी स्पष्ट किया कि इसे समन नहीं निमंत्रण समझा जाना चाहिए, क्योंकि इससे इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में योजना की तस्वीर ज्यादा स्पष्ट होगी।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एएनएस नडकर्णी ने मंत्री को अदालत में बुलाए जाने को लेकर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इसका राजनीतिक दुरुपयोग हो सकता है। इसके बाद पीठ ने साफ किया कि गडकरी को अदालत में आमंत्रित करने के लिए कोई लिखित आदेश जारी नहीं किया जाएगा। उन्हें समन नहीं किया जा रहा। वे केवल सलाह देने आएँगे। पीठ ने कहा, “हम सरकार को कोई आदेश नहीं दे रहे, बल्कि हम ये जानना और समझना चाहते है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए सरकार के पास क्या योजना है?” सीजेआई बोबडे ने कहा कि केंद्रीय मंत्री चाहें तो अपने किसी अधिकारी को भी भेज सकते हैं जो उनकी योजना से अदालत को पूरी तरह अवगत करा सके।
असल में इस मामले में एनजीओ की ओर पैरवी प्रशांत भूषण कर रहे हैं। पीठ ने हल्के अंदाज में कहा, “हम जानते हैं कि प्रशांत भूषण राजनीतिक व्यक्ति हैं, लेकिन वे मंत्री से बहस नहीं करेंगे।” वैसे राफेल मामले में लोकसभा चुनाव के वक्त शीर्ष अदालत का तत्कालीन कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गॉंधी ने भी गलत तरीके से हवाला दिया था। इसके लिए बाद में उन्हें माफी भी मॉंगनी पड़ी थी।
इससे पहले सुनवाई के दौरान भूषण ने कहा कि राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी मिशन योजना, 2020 पेश की गई थी। इसके अनुसार सरकार को इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने थे। इस योजना को लागू कराने और इसके तहत इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिए सब्सिडी देने की मॉंग उन्होंने रखी।
पीठ ने कहा कि प्रदूषण को लेकर समझौता नही किया जा सकता है। यह मामला न केवल दिल्ली एनसीआर के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए सरकार को इस पर विचार करने का निर्देश दिया। साथ ही केंद्र को एनईएमएमपी- 2020 पर फैसले के लिए अथॉरिटी बनाने का निर्देश भी दिया।