उत्तर प्रदेश में एक नया नियामक लागू किया गया, जिसके तहत शिक्षकों को कहा गया कि वो डिजिटल रूप से हाज़िरी लगाएँ। हालाँकि, इसके विरोध में शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। उत्तर प्रदेश में फ़िलहाल स्कूलों की टाइमिंग 8 बजे से लेकर 2 बजे तक हैं, हालाँकि, भाजपा सरकार ने आदेश जारी किया कि शिक्षकों को पौने 8 बजे हाज़िरी बनानी पड़ेगी। अब आदेश को मोडिफाई कर के कहा गया है कि शिक्षकों को आधे घंटे का अतिरिक्त समय दिया जाएगा।
शिक्षकों को एक तरह से ये वैकल्पिक व्यवस्था दी गई है, जिसके तहत वो साढ़े 8 बजे तक अटेंडेंस बना सकते हैं, लेकिन उन्हें सफाई देनी पड़ेगी कि वो क्यों देर से आए हैं। उम्मीद है कि इसके बाद शिक्षकों का विरोध प्रदर्शन कम होगा। ‘प्रेरणा पोर्टल’ के तहत ‘डिजिटल रजिस्टर’ की व्यवस्था की गई है। यूपी में शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। शिक्षकों के देर से आने पर उनका वेतन काटे जाने की व्यवस्था की गई थी।
अगर 8 जुलाई, 2024 की बात करें तो उस दिन 6 लाख शिक्षकों में से मात्र 2% ने रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। केवल 16,015 शिक्षकों ने अटेंडेंस बनाया था। 75 में से 14 जिलों में शत प्रतिशत लोगों ने इसका बहिष्कार किया। शाहजहाँपुर, पीलीभीत और संत कबीर नगर इन्हीं जिलों में से एक है। बरेली में 1, रामपुर में 2, और महराजगंज में 9 शिक्षकों ने ही हाज़िरी बनाई। कई शिक्षकों ने हाथ पर काली पट्टी बाँध कर ड्यूटी की थी।
भाजपा के विधान पार्षद बाबूलाल तिवारी ने खुद CM योगी आदित्यनाथ से मिल कर इस संबंध में सूचनाओं को साझा किया। हाज़िरी के लिए शिक्षकों के चेहरे पर आधारित सिस्टम भी की गई थी, लेकिन इसका भी विरोध किया गया। अखिलेश यादव ने वोट बैंक को देख कर प्रदर्शनकारी शिक्षकों को समर्थन दिया। इससे इतिहास की भी याद आ जाती है, जब भाजपा सरकार में ही कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते नक़ल विरोधी कानून 1992 में पारित किया गया था।
This needs to be dealt with an iron hand.
— The Uttar Pradesh Index (@theupindex) July 10, 2024
Over 6 lakh teachers & shiksha mitras are protesting against digital attendance move of Basic Shiksha Parishad.
Only 2% of the teachers marked their attendance on first day of its implementation.
Rest 98% need to be fired immediately.… pic.twitter.com/hjh5nhronR
उस समय राजनाथ सिंह यूपी के शिक्षा मंत्री थे। इस कानून के तहत पुलिस को परीक्षा केंद्रों में घुस कर जाँच व कार्रवाई करने की अनुमति दी गई, लेकिन, मुलायम सिंह यादव ने इसका फायदा उठाया। उस दौरान 17% छात्र-छात्राओं ने परीक्षा ही छोड़ दी थी। 1994 में मुलायम सिंह यादव ने सरकार बनते ही अपने पहले निर्णयों में इस कानून को रद्द किया। अब अखिलेश यादव उसी तरह की राजनीति कर रहे हैं। राजनाथ सिंह के CM रहते भी यूपी में भाजपा की हार हुई थी।