कांग्रेस पार्टी द्वारा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में नामित किये गए कमल नाथ का बचाव करते हुए शशि थरूर ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह उन्हें भी “संदेह का लाभ” मिलना चाहिए। बता दें कि कमल नाथ पर 1984 सिख दंगों में शामिल होने का आरोप लगा था। तिरुअनंतपुरम सांसद थरूर ने उनकी तुलना प्रधानमंत्री से करते हुए कहा कि जैसे नरेन्द्र मोदी को 2002 दंगों में उनकी भूमिका को लेकर “संदेह का लाभ” मिला है वैसे ही कमल नाथ को भी मिलना चाहिए। थरूर ने आल इंडिया प्रोफेसनल कांग्रेस के सदस्यों से बातचीत करते हुए यह बयान दिया।
दरअसल उनसे जब ये सवाल पुछा गया कि क्या कमल नाथ को मध्य प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में नामित कर कांग्रेस अपने ही नैतिक मूल्यों का उल्लंघन कर रही है तब उन्होंने इसके जवाब में ये बयान दिया। उन्होंने कहा कि दंगों के दौरान कमलनाथ ऐसी स्थिति में नहीं थे कि उनके पास किसी तरह के अधिकार थे और न ही वह दिल्ली के मुख्यमंत्री थे। वह दंगों के दौरान इतने पावरफुल व्यक्ति नहीं थे, जो इतने बड़े स्तर पर दंगे फैला सकें, वैसे भी “किसी भी अदालत को उनके खिलाफ दोषी ठहराने के लिए कोई सबूत नहीं मिला है। असंतुलित और अप्रत्याशित आरोपों के आधार पर फैसला करना गलत है।”
कमल नाथ पर क्या है आरोप?
ज्ञात हो कि कमल नाथ के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा से पहले ही दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर बग्गा ने ट्वीट कर ये दावा किया था कि यह वही व्यक्ति है जिसने रकाबगंज गुरुद्वारा (गुरु तेगबहादुर जी का श्मशान घाट) जलाया था। उनके अनुसार इस फैसले से एक बार फिर कांग्रेस का सिख विरोधी चेहरे का पर्दाफाश हुआ है। यही नहीं, उन्होंने कांग्रेस के इस फैसले के विरोध में अनिश्चितकालीन अनशन की घोषणा भी कर दी है।
दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने भी इस मुद्दे पर ट्वीट करते हुए लिखा था कि 1 नवम्बर 1984 के दिन दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारा पर 4000 लोगों ने हमला किया और दो सिख (पिता और बेटे) को जिंदा जला दिया गया। मौके पर मौजूद सूरी नाम के प्रत्यक्षदर्शी पत्रकार ने जांच आयोग को बताया कि दंगाइयों की इस भीड़ का नेतृत्व कमलनाथ कर रहे थे।
2016 में हुए पंजाब चुनावों के दौरान कांग्रेस ने कमल नाथ को राज्य में पार्टी मामलों का प्रभारी बना कर भेजा था लेकिन सभी दलों के कड़े विरोध के बाद उन्हें इस पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय आम आदमी पार्टी के नेता और वकील एचएस फुल्का ने नानावती आयोग के निष्कर्षों और अखबारों की खबरों का उल्लेख करते हुए कहा था:
“सिखों के खिलाफ 1984 की हिंसा में कमलनाथ का नाम बार-बार आया है। वे उन्हें क्लीनचिट कैसे दे सकते हैं?’ खबरों से साफ पता चलता है कि कमलनाथ गुरुद्वारा रकाबगंज के बाहर जमा उपद्रवियों में मौजूद थे। वह वहां क्या कर रहे थे? यदि वह गुरुद्वारे की रक्षा करने पहुंचे थे तो उन्होंने वहां पीड़ित सिखों की मदद क्यों नहीं की जब उन्हें जिंदा जलाया जा रहा था और उनमें से तीन डॉक्टरी मदद के लिए गुहार लगा रहे थे?”
क्या मोदी को सच में मिला संदेह का लाभ?
ऐसे में कमल नाथ की तुलना नरेन्द्र मोदी के किये जाने पर ये अवाल उठना लाजिमी है कि क्या नरेन्द्र मोदी को सच में 2002 दंगों के मामले में संदेह का लाभ मिला था? इसकी पड़ताल के लिए थोड़ा पीछे जाना जरूरी है। अप्रैल 2012 में शीर्ष अदालत द्वारा गठित की गई एक एसआईटी ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगे से जुड़े मामले में क्लीन चिट देते हुए कहा था कि उनके खिलाफ कोई भी साक्ष्य साबित नहीं होते। 2010 में एसआईटी द्वारा नरेन्द्र मोदी से लगभग नौ घंटों तक पूछताछ की गई थी।
छिन्दवाड़ा से नौ बार सांसद रहे कमल नाथ 17 दिसम्बर को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की मौजूदगी में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।