केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (MHA Amit Shah) के बयान के बाद समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर बहस तेज हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने शनिवार (30 अप्रैल 2022) को कहा कि देश में आवश्यकता नहीं है। वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने कहा कि यह मुद्दा मुस्लिम महिलाओं से सीधा जुड़ा हुआ है, क्योंकि कोई मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसका शौहर घर ने तीन और बीवी लेकर आए।
ओवैसी ने कहा, “बेरोजगारी और महंगाई बढ़ रही है और आप समान नागरिक संहिता के बारे में चिंतित हैं। हम इसके खिलाफ हैं। विधि आयोग ने भी कहा है कि भारत में यूसीसी की जरूरत नहीं है।” उन्होंने कहा कि जब भाजपा शासित राज्यों ने इसे लागू करने की इच्छा व्यक्त की है तो इसे पूरे देश में लागू करे की जरूरत नहीं है।
#WATCH | It (Uniform Civil Code) is not required in this country. As per Goa civil code, Hindu men have the right of 2nd marriage if wife fails to deliver a male child by the age of 30. Law Commission has opined that a UCC is not required: AIMIM chief Asaduddin Owaisi (30.04) pic.twitter.com/tCm0RwLOwX
— ANI (@ANI) April 30, 2022
गोवा में लागू समान नागरिक संहिता की बात करते हुए ओवैसी ने कहा कि वहाँ का कानून एक हिंदू पुरुष को दूसरी पत्नी की अनुमति देता है। कानून के अनुसार, अगर पहली पत्नी 30 वर्ष की हो गई है और उसका कोई बेटा नहीं है तो उसका पति दूसरी शादी कर सकता है। उन्होंने कहा, “हिंदू अविभाजित परिवार की तरह मुस्लिमों, सिखों और ईसाइयों को कर में छूट क्यों नहीं है?”
वहीं, असम के सीएम सरमा ने कहा कि यूसीसी देश के लिए आवश्यक है। यह सभी मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा, “हर कोई यूसीसी का समर्थन करता है। कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसका शौहर तीन और बीवियाँ लेकर घर आए… तीन निकाह करे। ऐसा कौन चाहेगा? यह मेरा मुद्दा नहीं है, यह मुस्लिम माताओं और महिलाओं का मुद्दा है।”
#WATCH | "Everybody wants UCC. No Muslim woman wants her husband to bring home 3 other wives. Ask any Muslim woman. UCC not my issue, it's issue for all Muslim women. If they are to be given justice, after the scrapping of Triple Talaq, UCC will have to be brought," says Assam CM pic.twitter.com/tdp2Y5J5vi
— ANI (@ANI) April 30, 2022
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।
आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।
मुस्लिमों का कानून पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद मुस्लिमों की चार शादियों पर रोक लग जाएगी। पत्नी को तलाक के बाद उचित हर्जाना या गुजारा भत्ता देना होगा, संपत्तियों में बेटियों को बराबर का अधिकार देना होगा, गोद लिए बच्चों को अपनी संतान का दर्जा देते हुए संपत्ति में वारिस बनाना होगा और शरिया कोर्ट का अंत हो जाएगा।