केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार (जुलाई 29, 2020) को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को मंजूरी देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है क्योंकि 34 साल तक देश की शिक्षा नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ।
Cabinet Briefing @PrakashJavdekar @DrRPNishank https://t.co/47u5S0pH6f
— Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank (@DrRPNishank) July 29, 2020
नई शिक्षा नीति पर केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने कहा कि इस नीति गुणवत्ता, पहुँच, जवाबदेही, सामर्थ्य और समानता के आधार पर एक समूह प्रक्रिया के अंतर्गत बनाया गया है। जहाँ विद्यार्थियों के कौशल विकास पर ध्यान दिया गया है, वहीं पाठ्यक्रम को लचीला बनाया गया है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके।
उन्होंने कहा कि मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि नई शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भारत अपने वैभव को पुनः प्राप्त करेगा।
#NEP2020 को गुणवत्ता, पहुंच, जवाबदेही, सामर्थ्य और समानता के आधार पर एक समूह प्रक्रिया के अंतर्गत बनाया गया है।
— Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank (@DrRPNishank) July 29, 2020
जहां विद्यार्थियों के कौशल विकास पर ध्यान दिया गया है वहीं पाठ्यक्रम को लचीला बनाया गया है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके।
उच्च शिक्षा अधिकारी अमित खरे ने इस बारे में कहा कि नई शिक्षा नीति और सुधारों के बाद, हम 2035 तक 50% सकल नामांकन अनुपात प्राप्त करेंगे। सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि GDP का 6% शिक्षा में लगाया जाए जो अभी 4.43% है। इसमें बढ़ोतरी करके शिक्षा का क्षेत्र बढ़ाया जाएगा।
शिक्षा नीति 2020 के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु –
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा। यह संस्थान के लिए अनिवार्य नहीं होगा।
नई शिक्षा नीति का सबसे महत्वपूर्ण हिसा ‘मल्टिपल एंट्री एंड एग्जिट’ बताया जा रहा है। इसके अनुसार, यदि 4 साल कोई कोर्स करने के बाद किसी कारण से यदि छात्र आगे नहीं पढ़ सकता है तो वो सिस्टम से अलग होने से बच जाएगा।
New Education Policy 2020: Major Reforms in Higher Education
— All India Radio News (@airnewsalerts) July 29, 2020
◾️Multidisciplinary Education
◾️Integrated 5 year Bachelor’s/Master’s
◾️UG Program:3/ 4 Year
◾️PG Program1/2 year
◾️Single regulator for Higher education(excluding Legal&Medical)
◾️MHRD Renamed as Min of Education pic.twitter.com/BuimAlBwZl
लेकिन, अब एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा तीन या चार साल के बाद डिग्री, यानी प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष के क्रेडिट जुड़ते जाएँगे। यानी, उसे एकेडमिक क्रेडिट मिलेंगे। ऐसे में छात्रों को अपना कोर्स पहले साल से ही शुरू नहीं करना होगा।
उदाहरण के लिए, वर्तमान व्यवस्था में विज्ञान के साथ फैशन डिजायनिंग नहीं ली जा सकती, जबकि अब मेजर और माइनर प्रोग्राम लेने की सुविधा होगी। इसका फायदा यह होगा कि आर्थिक या अन्य कारणों से ड्रापआउट होने वाले लोगों का वर्ष बर्बाद नहीं होगा और अलग-अलग क्षेत्रों में रूचि रखने वाले छात्र अपनी रूचि के अनुसार प्रमुख विषय के साथ माइनर विषय को चुनने की आजादी रखेंगे।
उच्च शिक्षा में अब मल्टीपल इंट्री और एग्जिट का विकल्प दिया जाएगा। इसके तहत, पहले साल के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल बाद डिग्री दी जाएगी। पाँच साल के इंटीग्रेटेड कोर्स करने वालों को एमफिल नहीं करना होगा। 4 साल का डिग्री प्रोग्राम, फिर MA, और उसके बाद बिना M.Phil के सीधा PhD कर सकते हैं।
अब कॉलेजों के एक्रेडिटेशन के आधार पर ऑटोनॉमी दी जाएगी। मेंटरिंग के लिए राष्ट्रीय मिशन चलाया जाएगा। हायर एजुकेशन के लिए एक ही रेग्यूलेटर रहेगा। हालाँकि, इसमें कानून एवं मेडिकल शिक्षा को शामिल नहीं किया जाएगा।
नई शिक्षा नीति के अनुसार, केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए सामान्य मानदंड होंगे। नई शिक्षा नीति के अनुसार विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए आम प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी।
अन्य विशेषताओं में संस्थानों की श्रेणीबद्ध शैक्षणिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता शामिल हैं। ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किया जाएगा; वर्चुअल लैब विकसित की जाएँगी और एक राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच (NETF) बनाया जा रहा है।
शिक्षा (टीचिंग, लर्निंग और एसेसमेंट) में तकनीकी को बढ़वा दिया जाएगा। तकनीकी के माध्यम से दिव्यांगजनों में शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा। ई-कोर्सेस आठ प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किया जाएँगे। नेशनल एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फोरम (एनईटीएफ) की स्थापना की जाएगी।
अब कला, संगीत, शिल्प, खेल, योग, सामुदायिक सेवा जैसे सभी विषयों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इन्हें सहायक पाठ्यक्रम या फिर, अतिरिक्त पाठ्यक्रम नहीं कहा जाएगा। आयोग ने शिक्षकों के प्रशिक्षण में व्यापक सुधार के लिए शिक्षक प्रशिक्षण और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को विश्वविद्यालयों या कॉलेजों के स्तर पर शामिल करने की सिफारिश की है।
प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा का इस्तेमाल
प्राथमिक स्तर पर शिक्षा में बहुभाषिकता को प्राथमिकता के साथ शामिल करने और ऐसे भाषा शिक्षकों की उपलब्धता को महत्व दिया दिया गया है, जो बच्चों के घर की भाषा समझते हों। यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में दिखाई देती है।
पहली से पाँचवी कक्षा तक जहाँ तक संभव हो, मातृभाषा का इस्तेमाल शिक्षण के माध्यम के रूप में किया जाएगा। जहाँ घर और स्कूल की भाषा अलग-अलग है, वहाँ दो भाषाओं के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है।
लड़कियों की शिक्षा के लिए उनको भावनात्मक रूप से सुरक्षित वातावरण देने का सुझाव दिया गया है। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का विस्तार 12वीं तक करने का सुझाव नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में किया गया है।
पढ़ाई की रुपरेखा “5+3+3+4” के आधार पर तैयारी की जाएगी। इसमें अंतिम 4 वर्ष 9वीं से 12वीं शामिल हैं। वर्ष 2030 को हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी। विद्यालयी शिक्षा से निकलने के बाद हर बच्चे के पास कम से कम लाइफ स्किल होगी। जिससे वो जिस क्षेत्र में काम शुरू करना चाहेगा कर सकेगा।
इसके अलावा, पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान पद्धतियों को शामिल करने, ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ का गठन करने और प्राइवेट स्कूलों को मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने से रोकने की सिफारिश की गई है।