रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे पी सुब्बाराव ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने यूपीए सरकारों के समय दो वित्तमंत्रियों के साथ काम किया था। इसमें प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम का नाम है। पी सुब्बाराव ने अपनी किताब में दावा किया है कि यूपीए सरकारों में वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम रिजर्व बैंक पर दबाव डालते थे कि वो सरकार के पक्ष में माहौल बनाने वाले आँकड़ें जारी करे। यही नहीं, वो अपने मनमुताबिक आरबीआई की नीतियों को बदलने का दबाव भी डालते थे। पी सुब्बाराव ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रणब मुखर्जी तो अपनी बात शालीन तरीके से रखते थे, लेकिन पी चिदंबरम अपनी बात मनवाने के लिए बहस करते थे।
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव ने अपनी किताब में दावा किया है कि यूपीए सरकारों के दौरान प्रणब मुखर्जी और पी. चिदंबरम के नेतृत्व वाला वित्त मंत्रालय ब्याज दरों में नरमी लाने के लिए रिजर्व बैंक पर दबाव डालता था और आम जनमानस में सरकार के प्रति सकारात्मक भावनाओं को बनाए रखने के लिए वृद्धि की बेहतर तस्वीर पेश करने के लिए कहता था। सुब्बाराव ने अपनी हालिया किताब ‘जस्ट ए मर्सिनरी: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ में यह भी लिखा है कि सरकार में केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के महत्व को लेकर ‘समझ और संवेदनशीलता’ कम है।
‘रिजर्व बैंक सरकार की चीयरलीडर?’ नाम के अध्याय में सुब्बाराव ने बताया है कि सरकार का दबाव सिर्फ रिजर्व बैंक के ब्याज दर के रुख तक सीमित नहीं था। केंद्रीय बैंक पर इस बात के लिए भी दबाव बनाया गया कि वह मूल्यांकन के विपरीत विकास और मुद्रास्फीति के बेहतर अनुमान पेश करे। उन्होंने कहा, ‘मुझे एक ऐसा अवसर याद है जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे। वित्त सचिव अरविंद मायाराम और मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने अपने अनुमानों के साथ हमारे अनुमानों का विरोध किया, जो मुझे लगा कि बहुत ज्यादा था।
उन्होंने कहा, “मायाराम ने एक बैठक में यहाँ तक कह दिया कि दुनिया में हर जगह, सरकारें और केंद्रीय बैंक आपस में सहयोग कर रहे हैं, यहाँ भारत में रिजर्व बैंक बहुत बदमाश है।” सुब्बाराव ने कहा कि वे उनकी इस उम्मीद से हमेशा परेशान और नाराज रहे कि आरबीआई को सरकार के लिए चीयरलीडर के रूप में काम करना चाहिए। आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि वह इस बात को लेकर सख्त थे कि रिजर्व बैंक अपने बेहतरीन पेशेवर फैसले में सिर्फ जनता के बीच सकरात्मक भावनाएँ बनाने न भटके।
उन्होंने यह भी याद किया कि आरबीआई के नीतिगत रुख को लेकर चिदंबरम और मुखर्जी दोनों के साथ उनका टकराव हुआ था क्योंकि दोनों हमेशा नरम दरों पर जोर देते थे, हालांकि दोनों की शैली अलग थी। सुब्बाराव ने लिखा, “चिदंबरम आमतौर पर वकील की तरह अपने मामले में बहस करते थे, वहीं मुखर्जी प्रतिष्ठित और सर्वोत्कृष्ट राजनेता थे। वे अपना नजरिया जाहिर करने के बाद मामले में बहस करने का काम अपने अधिकारियों पर छोड़ देते थे। उन्होंने साल 2012 में वित्त मंत्री बनने के फिजूलखर्ची पर भी रोक लगाने की कोशिश की थी।
बता दें कि डी सुब्बाराव 5 सितंबर, 2008 को पाँच साल के लिए आरबीआई के गवर्नर के रूप में कार्यभार संभालने से पहले वित्त सचिव (2007-08) थे। उनके आरबीआई गवर्नर का पद संभालने के कुछ दिन बाद ही 16 सितंबर को अमेरिका का लेहमैन ब्रदर्स दिवालिया हो गया था और यह 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का कारण बना था। यह इतिहास की सबसे बड़ी कॉरपोरेट विफलता भी मानी जाती है।