राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP) के सुप्रीमो शरद पवार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के चेयरपर्सन हो सकते हैं। फिलहाल यह जिम्मेदारी कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी के पास है। यह दावा रिपब्लिक टीवी ने सूत्रों के हवाले से किया है। दिलचस्प यह है कि 1999 में सोनिया के इटली मूल को मुद्दा बनाकर पवार कॉन्ग्रेस से अलग हुए थे। बाद में 2018 में पवार ने बताया था कि उन्होंने कॉन्ग्रेस इसलिए छोड़ी क्योंकि सोनिया प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं।
रिपोर्ट के अनुसार पवार जल्द यूपीए अध्यक्ष की जिम्मेदारी सँभालेंगे। इस संबंध में शुरुआती बातचीत हो चुकी है। यह खबर ऐसे वक्त में आई है जब कॉन्ग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। बिहार विधानसभा और हैदराबाद निकाय चुनावों में करारी शिकस्त को लेकर कई वरिष्ठ नेता नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं। कुछ पार्टी अध्यक्ष के तौर पर राहुल गाँधी की वापसी चाहते हैं तो एक खेमे को उनकी क्षमताओं पर भरोसा नहीं है।
सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि राहुल गाँधी ने पार्टी के साथ-साथ यूपीए की जिम्मेदारी सँभालने से भी इनकार कर दिया है। ऐसी स्थिति में तय किया गया है कि राहुल गाँधी यूपीए के चेहरे होंगे, वहीं चेयमैन की जिम्मेदारी पवार सँभालेंगे जो गठबंधन के सबसे वरिष्ठ नेता हैं।
बुधवार (9 दिसंबर 2020) को जब विपक्ष के नेताओं ने किसानों के आंदोलन को लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात की थी तब उनका नेतृत्व पवार ने ही किया था। इस प्रतिनिधिमंडल में राहुल गाँधी भी शामिल थे। इससे पहले पवार ने राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में कुछ हद तक उनमें ‘निरंतरता’ की कमी लगती है। उससे पहले चीन को लेकर राहुल गाँधी की बयानबाजी पर सवाल उठाते हुए पवार ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। बिहार के चुनावी नतीजों के बाद सहयोगी राजद के नेता ने भी राहुल पर सवाल उठाए थे।
गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस से अलग होकर अलग पार्टी बनाने के बावजूद पवार की एनसीपी ज्यादातर समय उसके साथ गठबंधन में रही है। यूपीए की दोनों सरकारों में खुद पवार भी मंत्री थे। महाराष्ट्र में भी दोनों दल सरकार चला चुके हैं। शिवसेना के नेतृत्व वाली मौजूदा महाविकास अघाड़ी में भी दोनों दल शामिल हैं।
वहीं सोनिया गाँधी 2004 से ही यूपीए की चेयरपर्सन हैं। यूपीए का गठन उसी साल आम चुनावों के बाद तब हुआ जब कॉन्ग्रेस ने वामदलों के समर्थन से मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार का गठन किया था। यह भी कहा जाता है कि 10 साल तक मनमोहन सिंह भले सरकार का चेहरा रहे, लेकिन पर्दे के पीछे से उसे सोनिया ही चला रही थीं। 2017 में कॉन्ग्रेस में औपचारिक तौर पर राहुल ने उनकी जगह ले ली थी, लेकिन 2019 के आम चुनावों में हार के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। काफी मान-मनौव्वल के बावजूद जब राहुल दोबारा जिम्मेदारी सॅंभालने को राजी नहीं हुए तो पार्टी ने सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष बनाया था।