पत्रकारिता के नाम पर आजकल कुछ वामपंथी या कॉन्ग्रेस पोषित पत्रकार किस तरह से खुलेआम ‘पक्षकार’ होने के बावजूद भी निष्पक्ष पत्रकार बने हुए हैं। इसकी बानगी देखिए, इंडिया टुडे के सेलिब्रिटी टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित उनकी आगामी बायोपिक के बारे में अभिनेता विवेक ओबेरॉय का साक्षात्कार लेते हुए लाइव टेलीविज़न शो पर कई जगह सवाल पूछने के नाम पर विपक्ष के नाम से वह सारे सवाल किए, जो उनके एजेंडा को शूट करते हैं, वो भी बिना फिल्म का ट्रेलर देखे ही।
फिर भी कमाल की बात ये है कि अपने ही शो में राजदीप विवेक ओबेरॉय द्वारा कई बार बेचैन और निःशब्द किए गए। एक जगह सरदेसाई ने विवेक से पूछा अपने दिल पर हाथ रख के कहिए कि क्या इस फिल्म को बनाने के लिए किसी भी राजनीतिक पार्टी से पैसा मिला है? विवेक ने तो इसका जवाब ना में दे दिया, प्रॉसेस भी समझा दिया। लेकिन क्या राजदीप जानते हुए भी ये सवाल उन तमाम पक्षकारों, लेखकों या अन्य खुले-तौर पर प्रोपेगेंडा बाजों से पूछने की हिम्मत कर सकते हैं? जवाब नहीं है, खुलेआम एजेंडा चलाते राजदीप को कई बार धरा गया है। लेकिन इसके बाद भी उनकी पक्षकारिता निष्पक्षता के चोंगे में लिपटी सुरक्षित है।
इसी इंटरव्यू में, जब राजदीप ने पीएम मोदी की बायोपिक पर अपनी राय और घृणा विपक्ष के कंधों पर बन्दूक रख के चलानी चाही तो उनकी सड़ाँध बाहर आते देर नहीं लगी। साथ ही राजदीप ने विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित आगामी फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ और अनुपम खेर स्टारर ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ जैसी अन्य फिल्मों पर भी पूर्वग्रह ग्रसित कमेंट किया।
I don’t need to make @narendramodi look like a hero. He is a hero, says @vivekoberoi
— India Today (@IndiaToday) April 2, 2019
Watch #Countdown with @sardesairajdeep |#LokSabhaElections2019
LIVE: https://t.co/4fqxBVUizL pic.twitter.com/E61bPJU9aa
साक्षात्कार के इस विशेष भाग में, राजदीप सरदेसाई ने विवेक ओबेरॉय से कहा कि वह राजनीतिक दलों के बीच रस्साकशी के बीच फँसे हुए हैं क्योंकि फिल्म के रिलीज़ का समय संदिग्ध है। इससे पहले जब चुनाव के समय किसान आंदोलन प्रायोजित किए गए, अवॉर्ड वापसी का पूरा नाटक चला वो भी चुनाव से पहले ही था तब उन्हें उसमें प्रोपेगेंडा और किसी एक व्यक्ति के प्रति दुराग्रह नज़र नहीं आया और अब जब 200 लेखक खुलेआम बीजेपी को वोट न देने की अपील कर रहे हैं तो राजदीप को उसमें न दुराग्रह नज़र आ रहा, न पक्षकारिता, न लोकतंत्र की हत्या, न प्रोपेगेंडा।
राजदीप ने कहा कि अन्य फिल्मों, जैसे ताशकंद फाइल्स, को भी रिलीज़ किया जा रहा है जिससे ‘कॉन्ग्रेस नेतृत्व’ पर सवाल उठाए जा रहे हैं। शायद यहाँ राजदीप ये भूल गए कि कहाँ गया उनका वह आदर्श कि सवाल पूछे जाने चाहिए। क्या यहाँ वह यह कहना चाहते हैं जब सवाल कॉन्ग्रेस या वामपंथियों पक्षकारों से हो तो मुँह पर ताला लगा लेना चाहिए?
बता दें कि फिल्म द ताशकंद फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म भारत के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत पर आधारित है। राजदीप को तो खुद कॉन्ग्रेस या उससे जुड़े सभी पक्षों से सवाल करना चाहिए। खैर, राजदीप सरदेसाई के इस कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल वाले सेगमेंट का जवाब देने के लिए भी ट्विटर पर विवेक अग्निहोत्री ने खुद ही मोर्चा संभाला कि आपका आरोप है कि ताशकंद फाइल्स कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रही है।
Friends,
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) April 3, 2019
Someone sent me the attached clip from Rajdeep Sardesai’s show.
Since Rajdeep Sardesai has blocked me, I have not other way to communicate to him.
Can someone send my note to him.
I am sure he will be fair. https://t.co/iGf3jfQRG5 pic.twitter.com/ESHgwNDE7t
उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि जब से राजदीप सरदेसाई ने उन्हें ब्लॉक किया है, उनके पास नोट ट्वीट करने के अलावा उनसे संवाद करने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। नोट में, राजदीप के इस आरोप का जवाब देते हुए कि फिल्म ‘कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाती है’, उन्होंने पूछा कि राजदीप को कैसे पता चल गया कि फिल्म में कॉन्ग्रेस पार्टी पर सवाल उठाया गया है कि जबकि आपने अभी फिल्म देखी भी नहीं है।
विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से पूछा कि जब आपने फिल्म नहीं देखी है और पहले से ही इस बारे में झूठी अफवाह फैला रहे हैं तो क्या यह नहीं माना जाए कि आप द ताशकंद फाइल्स के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं क्योंकि वह उनके खिलाफ राजनीतिक रूप से पूर्वग्रह से प्रेरित हैं।
इसके बाद विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से पूछा कि चूँकि आपने फिल्म को बिना देखे ही यह घोषणा कर दी कि फिल्म कॉन्ग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाती है। तो क्या सरदेसाई यह स्वीकार कर रहे हैं कि कॉन्ग्रेस पार्टी वास्तव में लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत में शामिल थी?
इस मामले पर ऑपइंडिया से बात करते हुए, विवेक ने कहा कि राजदीप संभवतः फिल्म के ट्रेलर को भी देखे बिना ही स्वघोषित जज के रूप में फैसले दे रहे हैं।
यह एक फिल्म को दुष्प्रचारित और उसके प्रति पक्षपात पूर्ण नजरिया रखने का एक स्पष्ट मामला है। चूँकि, राजदीप भारत के एक प्रमुख पत्रकार हैं, इसलिए उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए। ऐसा पूर्वग्रह ग्रसित रवैया रखना ठीक नहीं है। ताशकंद फाइल्स एक ऐसी कहानी है, जिसमें शास्त्रीजी की मृत्यु के आसपास की सभी संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है। पात्रों में से एक वास्तव में किसी भी साजिश या हत्या के कोण को दृढ़ता से खारिज करता है। यह फिल्म के ट्रेलर में ही स्पष्ट है।
सवाल उठाने के मुद्दे पर विवेक ने कहा, “विडंबना यह है कि यह काम एक पत्रकार को करना चाहिए कि किसी भी बात की सभी संभावनाओं को तलाशना। न कि बिना देखे खुद जज बनकर ये घोषित करना कि कोई फिल्म प्रोपेगेंडा है या नहीं।”
उन्होंने आगे कहा कि अगर राजदीप वास्तव में फिल्मों और चुनावों को जोड़ना ही चाहते हैं, तो उन्हें वास्तव में उन फिल्मों के बारे में बात करनी चाहिए, जिन्होंने सेना को नकारात्मक भूमिका में चित्रित किया है, खासकर कश्मीर में।
विवेक अग्निहोत्री ने राजदीप से सवाल किया, “कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कश्मीर में AFSPA में संशोधन करने का वादा करते हुए कॉन्ग्रेस ने लगभग भारतीय सेना पर बलात्कारी होने का आरोप लगाया है। इससे पहले सेंसर बोर्ड के सदस्य के रूप में, आप भी इस कहानी को जानते हैं कि कैसे मैंने एक फिल्म निर्माता से विश्वसनीय प्रमाण माँगे, जब वह भारतीय सेना को ऐसे ही अत्याचार में लिप्त दिखाना चाहता था। मुझे आश्चर्य है कि क्या राजदीप ऐसी फिल्मों को कभी प्रोपेगेंडा कहेंगे।”
यह पहली बार नहीं है जब राजदीप की हिप्पोक्रेसी पकड़ी गई है। हाल ही में, राजदीप ने राहुल गाँधी द्वारा हिंदू-अल्पसंख्यक वाले क्षेत्र वायनाड से लड़ने के बारे में प्रधानमंत्री मोदी के बयान को ट्विस्ट कर उसे सांप्रदायिक रंग दे दिया और पकडे जाने पर भी राजदीप ने अपनी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
ऐसा लगभग हर वामपंथी पत्रकार, लेखक, समर्थक कर रहा है। वह खुलेआम मतदाताओं को भड़का रहा है। उनकी राय को प्रभावित करने के लिए उन पर दबाव डाल रहा है। खुलेआम कॉन्ग्रेस के समर्थन और बीजेपी विरोध में बयानबाजी और एजेंडा परोसने के बाद भी निष्पक्ष है और देश से ऐसी ही चाटुकारिता भरे व्यवहार की उम्मीद लगाए बैठा है। पर जनता इन्हें हर जगह से खदेड़ रही है। अब न इनके पत्रकारों के गिरोह को जनता सिरियसली ले रही है न इनके लेखकों-प्रोफेसरों के अर्बन-नक्सल टुकड़ी को, बौखलाहट में इन्होने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जनता इनकी खीझ का मजा ले रही है और इनकी खिसियाहट बढ़ती जा रही है।
अब देखना ये है कि लोकसभा चुनाव तक ये पूरा गिरोह और कौन-कौन से रंग दिखाता है? कितना नीचे गिरता है? कौन-कौन सी संस्थाओं पर आरोप मढ़ता है? खुद जज बनकर फैसले सुना, उनका असर न होता देख क्या-क्या हरकत करता है? खैर, जनता तो इनके पूरे मजे लेने को तैयार है।