उत्तर प्रदेश में जिन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं, उनमें से एक है – स्वास्थ्य। कोरोना संक्रमण महामारी के दौरान हमने देखा कि किस तरह देश की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बाकी राज्यों से बेहतर रहा। खासकर भारत के सबसे अमीर राज्यों में से एक महाराष्ट्र और सबसे कम जनसंख्या वाले राज्यों में से एक केरल की स्थिति सबसे बदतर रही। लेकिन, योगी आदित्यनाथ की नेतृत्व वाली सरकार ने पूरी मुस्तैदी इस महामारी से निपटने में लगा दी और सकारात्मक परिणाम भी मिले।
खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि केंद्र में चल रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के समर्थन के कारण उत्तर प्रदेश अब एक ‘मेडिकल हब’ बन गया है। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे एक ऐसा समय था जब उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं था। लेकिन, आज स्थिति ये है कि सभी 75 जिलों में ICU बेड्स की व्यवस्था है, 1.80 लाख इमरजेंसी बेड्स हैं और 518 ऑक्सीजन प्लांट्स को संचालन की अवस्था में लाया जा रहा है।
इन सबके अलावा पहले राज्य डॉक्टरों की कमी से भी जूझ रहा था, लेकिन योगी सरकार ने 310 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की बहाली ‘पब्लिक सर्विस कमीशन’ के तहत की गई है। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 जिलों में कोरोना से बचने के लिए ‘बायो सेफ़्टी लेवल (BSL)’ का उद्घाटन भी किया। अमरोहा, बागपत, संभल, हरदोई, भदोही, चंदौली, शामली, रामपुर, प्रतापगढ़, हापुड़, मुजफ्फरनगर, पीलीभीत, फर्रुखाबाद,, सुल्तानपुर और संत कबीर नगर में इनका उद्घाटन किया गया।
आज सभी जिलों में वेंटिलेटर भी उपलब्ध है। आपको ये बात जान कर सुखद आश्चर्य होगा कि राज्य में 33 मेडिकल कॉलेज बन रहे हैं। इनमें से 9 मेडिकल कॉलेज सभी संचालन की स्थिति में हैं। जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तब उत्तर प्रदेश में जो स्थिति थी और दूसरी लहर के समय जो स्थिति थी, उसमें भी अंतर था। दूसरी लहर के समय योगी सरकार और ज्यादा तैयार थी। उत्तर प्रदेश 4 से अधिक लाख कोरोना टेस्ट प्रतिदिन की क्षमता की स्थिति में भी या गया था।
हमने देखा कि किस तरह यूरोप, यूके और चीन में जिस तरह से कोरोना ने तीसरी लहर के दौरान भी कहर मचाया, उत्तर प्रदेश में इसका कोई खास असर नहीं देखने को मिला। ये भी जान लीजिए कि 70 वर्षों में उत्तर प्रदेश में मात्र 12 मेडिकल कॉलेज थे, लेकिन सिर्फ डेढ़ वर्षों में 33 मेडिकल कॉलेज बन गए। 8 मेडिकल कॉलेजों में MBBS की तैयारी शुरू हो गई है और 9 मेडिकल कॉलेजों में इसकी पढ़ाई जल्द ही शुरू होगी। गोरखपुर और रायबरेली में AIIMS (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) का निर्माण किया गया।
मेडिकल संस्थानों ने आउटडोर सेवाएँ भी शुरू की हैं, जिससे लाखों लोगों को फायदा हो रहा है। साथ ही सभी मेडिकल कॉलेजों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों में सामान्य वर्ग के गरीबों (EWS) के लिए भी सीटें आरक्षित की गई हैं। साथ ही यूपी सरकार ‘वन स्टेट, वन मेडिकल कॉलेज’ के प्रस्ताव पर भी काम कर रही है। राज्य के 16 जिलों में ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP)’ के तहत मेडिकल कॉलेजों के निर्माण का काम भी चल रहा है। जिन जिलों में स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर नहीं रहीं, वहाँ खास ध्यान दिया जा रहा है।
वहीं अखिलेश यादव और मायावती के शासनकाल में एक भी PPP मॉडल वाले मेडिकल कॉलेज नहीं थे। 9 जिलों में इस कार्य के लिए 17 निवेशक भी सामने आए हैं। इसके लिए जनवरी 2022 में ही अप्लीकेशन मँगाया गया था। एक दर्जन से भी अधिक निवेशक प्रशासन से संपर्क में हैं। इसी तरह गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में इंसेफ्लाइटिस के मामले भी काफी कम हुए हैं। 2005 से 2018 तक 47,509 कोरोना मामले सामने आए। इससे 8373 मरीजों की मौत भी हुई है।
इसी तरह जापानी इंसेफ्लाइटिस के भी 4677 मरीज सामने आए थे और 881 मरीजों की मौत हो गई थी। आँकड़े कहते हैं कि इनमें अब 99 प्रतिशत की कमी आई है। इसी तरह अब डेंगू की समस्या से निपटने के लिए भी काम किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र में काफी काम हुए हैं, लेकिन बहुत कुछ होना बाकी भी है। इतना बड़ा राज्य, गरीबी और लंबे समय की उपेक्षा के कारण काम कठिन तो है, लेकिन उस दिशा में योगी सरकार ने काफी काम किया है।