पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख़्यकों के क्या हालात हैं इस पर कई घटनाएँ सामने आती रहती हैं। अभी पाकिस्तान में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। जिसके आँकड़े चौकाने वाले हैं। पाकिस्तान के एक स्वतंत्र मानवाधिकार संगठन ने देश में हिन्दू एवं ईसाई लड़कियों के जबरन धर्मांतरण और निकाह पर सोमवार को चिंता जाहिर की और कहा कि पिछले साल अकेले सिंध प्रांत में ऐसे तकरीबन 1000 मामले सामने आए हैं।
अपनी वार्षिक रिपोर्ट में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने कहा, “सरकार ने ऐसी जबरन शादियों को रोकने के लिए अतीत में बहुत कम कोशिशें की हैं।” इस कारण से एचआरसीपी ने सांसदों से इस चलन को खत्म करने के लिए प्रभावी कानून बनाने की गुजारिश की।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आयोग ने 335 पन्नों की 2018 में मानवाधिकार की स्थिति रिपोर्ट में कहा है कि 2018 में सिर्फ सिंध प्रांत में ही हिन्दू एवं ईसाई लड़कियों से संबंधित अनुमानित 1000 मामले सामने आए। जिन शहरों में बार-बार ऐसे मामले हुए हैं, उनमें उमरकोट, थरपारकर, मीरपुरखास, बदीन, कराची, टंडो अल्लाहयार, कश्मोर और घोटकी शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण और जबर्दस्ती निकाह का कोई प्रमाणिक आँकड़ा मौजूद नहीं है। उसमें बताया गया है कि ‘सिंध बाल विवाह रोकथाम अधिनियम 2013’ को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया और जबरन निकाह पर सरकार की प्रतिक्रिया चलताऊ ही रही।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर पुलिस की मिली-भगत नहीं रही तो भी अधिकतर मामलों में उसका रवैया असंवेदनशील और बेरूखी भरा रहा। रिपोर्ट में कहा गया कि 2018 में पाकिस्तान में अपनी आस्था के मुताबिक जिदंगी गुजारने पर अल्पसंख्यकों ने उत्पीड़न का सामना किया, उन्हें गिरफ्तार किया गया। यहाँ तक की कई मामले में उनकी मौत भी हुई।