प्राचीन भारतीय विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए एक बहुत ही अच्छी ख़बर है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने ये माना है कि प्लास्टिक सर्जरी की जड़ें भारत में है। आज के युग में प्लास्टिक सर्जरी का ख़ासा चलन है। हॉलीवुड के बड़े अभिनेता-अभिनेत्रियों से लेकर प्रसिद्ध खिलाड़ियों तक- कई सेलेब्रिटीज़ आज करोड़ों रुपए ख़र्च कर प्लास्टिक सर्जरी करवाते हैं ताकि वो और आकर्षक दिख सकें। लोग अपनी नाक, होंठ या गाल की संरचना में इच्छानुसार बदलाव लाने के लिए भी प्लास्टिक सर्जरी का ही सहारा लेते हैं। आज प्लास्टिक सर्जरी का बाज़ार इतना विशाल और व्यापक है कि सिर्फ अमेरिका में एक साल में इस पर 16 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा ख़र्च किए जाते हैं।
ऐसे में अगर कोई आपको कहे कि प्लास्टिक सर्जरी की उत्पति भारत में हुई थी, तो आप एक पल के लिए चौंक जाएँगे क्योंकि ये बात न हमारे स्कूली सिलेबस में पढ़ाई जाती है और न ही आम लोगों को इस बारे में ज्यादा पता है। लेकिन प्राचीन भारत में कई सारी ऐसी चीजें है जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। दरअसल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने ‘मेडिसिन का इतिहास’ (History of medicine) के अंतर्गत एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है जहाँ प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी और इसके द्वारा नाक की संरचना में बदलाव कराए जाने की बात कही गई है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है:
“क्या प्लास्टिक सर्जरी एक मॉडर्न लक्ज़री है? यह पता चला है कि कॉस्मेटिक और पुनर्संरचनात्मक प्रक्रियाओं की जड़ें 2500 से भी अधिक वर्ष पीछे जाती हैं। यह एक सामान्य गलत धारणा है कि ‘प्लास्टिक सर्जरी’ में ‘प्लास्टिक’ एक कृत्रिम सामग्री को संदर्भित करता है जब यह वास्तव में ग्रीक शब्द, प्लास्टिकोस से निकलता है, जिसका अर्थ “ढालना” या “रूप देना है।”
कोलंबिया यूनिवर्सिटी भारत को इस खोज का श्रेय देते हुए कहा कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, सर्जरी के जनक के रूप में प्रसिद्ध सुश्रुत नाम के एक भारतीय चिकित्सक ने चिकित्सा और शल्य चिकित्सा पर दुनिया के शुरुआती कार्यों में से एक लिखा था। सुश्रुत के महान योगदान की पुष्टि करते हुए कोलंबिया यूनिवर्सिटी आगे कहती है:
“सुश्रुत संहिता ने 1100 से भी अधिक बीमारियों के निदान बताए, सैकड़ों औषधीय पौधों के उपयोग को समझाया और सर्जरी के कई सारे तौर-तरीक़ों को समझाया। इनमे तीन प्रकार के त्वचा-ग्राफ्ट और नाक का पुनर्निर्माण भी शामिल है। सुश्रुत का ग्रंथ एक फोरहेड फ्लैप राइनोप्लास्टी का पहला लिखित रिकॉर्ड प्रदान करता है। यह एक ऐसी तकनीक है जो आज भी उपयोग की जाती है। इस से माथे के त्वचा की पूरी मोटाई का टुकड़ा नाक को फिर से बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।”
बता दें कि महर्षि विश्वामित्र के वंश से ताल्लुक़ रखने वाले सुश्रुत को ‘फादर ऑफ सर्जरी’ कहा जाता है। उनके द्वारा लिखे गए ग्रन्थ सुश्रुत संहिता को आयुर्वेद का मूलभूत टेक्स्ट माना जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि इसे छठी शताब्दी ईसापूर्व में लिखा गया था, यानी कि आज से करीब 2500 साल पहले। आपको अगर उनके योगदान के बारे में और पढ़ना है तो आप इस रिसर्च जर्नल के कुछ हिस्से यहाँ पढ़ सकते हैं। वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब ने अपनी पुस्तक A People’s History of India 20 – Technology in Medieval India, c. 650–1750 में लिखा है कि भारत में ऐसे सर्जन हुआ करते थे जो जाँघ या गाल का मांस काटकर प्लास्टिक सर्जरी करते थे।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद ये पता चलता है कि आजकल विश्व में कई सारी ऐसी प्रसिद्ध तकनीक है, जिस की जड़ें प्राचीन भारत में हैं। महाभारत ग्रन्थ में भी सुश्रुत का ज़िक्र किया गया है और उन्हें विश्वामित्र का पुत्र बताया गया है। आज दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा भाग प्लास्टिक्स सर्जरी के बाज़ार पर निर्भर है। कई देशों से लोग प्लास्टिक सर्जरी कराने के लिए दक्षिण कोरिया का रुख करते हैं। ऐसे में इस सवाल का उठना लाज़िमी है कि क्या भारत अपने धरोहरों की सही तरीके से पहचान नहीं कर पाया? या फिर, हम अपने ही द्वारा खोजी गई तकनीकों को पूरी तरह से उपयोग में लाने और उनका प्रचार-प्रसार करने में विफल हो गए?