Sunday, November 17, 2024
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गज़नी का वह अंतिम हिन्दू जो अफग़ानिस्तान में ही रुक गया ताकि मंदिरों में जलता रहे दिया, परिवार ने ली भारत में शरण

गज़नी के अंतिम हिन्दू राजा राम की कहानी इस बात का सबूत है कि वहाँ अल्पसंख्यकों को अपने मन मुताबिक़ पूजा करने के लिए कितना कुछ झेलना पड़ता है। इस तरह के मुश्किल हालातों में, अपने परिवार को छोड़ कर उन्होंने वहाँ रुकने का फैसला लिया। वह चाहते थे कि मंदिरों में दिया जलता रहे।

बहुत पहले ही बात नहीं है, भारत ने अफग़ानिस्तान के गज़नी से आए 21 हिन्दू और सिख परिवारों को शरण दी थी। वहाँ पर इन परिवारों को जिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है वह कोई राज़ की बात नहीं है। अफग़ानिस्तान में पहले ही युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं, इसके ऊपर इस्लामी आतंकवाद और कट्टरपंथ ने वहाँ के अल्पसंख्यकों का जीवन नरक से भी बदतर बना दिया है।

हिन्दू और सिख परिवार तो भारत आ गए लेकिन इस दौरान एक व्यक्ति वहीं रह गया या यूँ कहें वहीं रुक गया। व्यक्ति ने वहाँ रुकने का फैसला इसलिए किया क्योंकि उसे बचे हुए हिन्दू मंदिरों की सुरक्षा और देखरेख करनी थी। ऐसे ज़िंदा दिल और अटूट इरादों के व्यक्ति का नाम है ‘राजा राम’। भले उन्होंने कभी भारत की ज़मीन पर कदम नहीं रखा हो लेकिन उनके नाम और इस देश के बीच रिश्तों की सूरत बेहद खूबसूरत है। 

राजा राम ने रेडियो फ्री से बात करते हुए कहा, “हम सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं लेकिन हमला होने के बाद लोगों को यहाँ से जाना ही पड़ा। उन सभी के लिए कश्मीर ही मातृभूमि है।” इसके बाद उन्होंने कहा कि यहाँ पर हालात भयावह हो चुके थे, जिससे लोग पूरी तरह टूट चुके थे। जब लोगों के पास कोई विकल्प नहीं बचा, तब उन्होंने लाचार होकर अपनी ज़मीन छोड़ दी। राजा राम ने बताया कि एक बेहतर कल की आशा में उनकी पत्नी और बच्चे भारत आ चुके हैं। इसके बावजूद उन्होंने वहीं रहने का फैसला लिया, वहाँ स्थित मंदिरों की सेवा करने के लिए। अफग़ानिस्तान की सरकार ऐसा करने के लिए उन्हें हर महीने लगभग 100 डॉलर का भुगतान करती है। 

राजा राम अभी तक इस बात के लिए आशावादी हैं कि ऐसा समय ज़रूर आएगा जब उनकी पत्नी और बच्चे उस जगह वापस लौट कर आएँगे जिसे वह अपना देश मानते हैं। इस मुद्दे पर वह कहते हैं, “मुझे ऐसा लगता है कि एक दिन अफग़ानिस्तान में शांति होगी, सब कुछ बेहतर होगा। ऐसा होने पर यहाँ रहने वाले सभी लोग वापस लौटेंगे। हिन्दू से लेकर सिख सभी इस ज़मीन की औलाद हैं, हम भी अफगान हैं।”      

किसी ज़माने में अफग़ानिस्तान के भीतर हिन्दू और सिखों की संख्या 80 हज़ार थी। दोनों वहाँ पर मज़बूत अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते थे लेकिन अब उनकी संख्या लगातार कम हो रही है। अल्पसंख्यकों की एक बड़ी आबादी या तो भारत आ चुकी है या फिर विदेशों की ओर चली गई है। भारत ने हमेशा प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को अपने यहाँ जगह दी है, जिससे उनके बच्चों को एक बेहतर भविष्य मिल पाए। 

बेशक वह अपने देश को याद करते हैं, यह मानवीय स्वभाव है इसमें कोई गुरेज़ भी नहीं है। इसके अलावा वह इस बात के लिए आभारी भी रहते हैं जो भारत ने उन्हें अपने यहाँ शरण दी। उनके लिए इससे बेहतर बात क्या हो सकती है कि भारत उनके अस्तित्व को स्वीकार करता है। भारत पड़ोसी देशों (ख़ास कर इस्लामी देश) में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को शरण देना अपना कर्तव्य समझता है जिन्होंने हर तरह का अत्याचार झेला है।      

इस कड़ी में सबसे पहला कदम था नागरिकता संशोधन क़ानून 2019, जिसकी मदद से इस्लामी मुल्कों में अत्याचार झेल रहे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को राहत मिलेगी। इसका बहुत से लोगों ने विरोध भी किया लेकिन अल्पसंख्यकों के हालात देख कर यह साफ़ हो जाता है कि इस क़ानून की कितनी ज्यादा ज़रूरत है। पाकिस्तान में रहने वाले सिख और हिन्दू समुदाय के लोगों के साथ जिस तरह का व्यवहार होता है वह किसी से छिपा नहीं है।

गज़नी के अंतिम हिन्दू राजा राम की कहानी इस बात का सबूत है कि वहाँ अल्पसंख्यकों को अपने मन मुताबिक़ पूजा करने के लिए कितना कुछ झेलना पड़ता है। इस तरह के मुश्किल हालातों में, अपने परिवार को छोड़ कर उन्होंने वहाँ रुकने का फैसला लिया। वह चाहते थे कि मंदिरों में दिया जलता रहे। इस तरह के बलिदानों की वजह से पूर्वजों की धरोहर ज़िंदा रहती है और एक सभ्यता जीवित रहती है।     

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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