पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद वहाँ से सैंकड़ों की तादाद में लोगों ने देश छोड़ा और भारत में आकर शरण ली। इन्हीं शर्णार्थियों में से एक 32 वर्षीय अफगानी ने भारत में आकर तालिबान की बर्बरता बयां करते हुए कहा कि उनकी बिटिया ने खुद चार लोगों को अपनी आँख के आगे मरते देखा। वहीं एक भारतीय ने बताया कि कैसे वह बिस्कुट पर जिंदा रहे।
32 साल के मोहम्मद खान, जो बंगाल के हावड़ा जिले में अपनी पत्नी और बच्चियों के साथ हैं, वह बताते हैं, “मेरी बेटी इस घटना से इतना आहत है कि वह रातों में रोती है। मैं उसे वापस से सोने के लिए कहता रहता हूँ और समझाता हूँ कि हम भारत में हैं, यहाँ तालिबान नहीं है।”
वह उम्मीद करते हैं कि अफगानिस्तान में बाकी फँसे लोग भी जल्द से जल्द निकाल लिए जाएँ। वह कहते हैं, उनके माता-पिता समेत कई अफगानी इस समय परेशानी में हैं। उनके अम्मी-अब्बा पूछते हैं, “तुम हमें छोड़कर कैसे चले गए।” इस पर खान कहते हैं, “मुझे उनको भी निकलवाना है। मैं भारतीय एंबेसी से अनुरोध करता हूँ कि उन्हें बचा लें।” खान ने भारतीय एंबेसी को मदद के लिए आभार व्यक्त करते हुए याद किया कि कैसे उनका जीवन अब बदल चुका है।
खान कहते हैं, “मैंने अपना सब खो दिया। बड़ी मुश्किल से 60 हजार रुपए और कुछ सूटकेस अपने साथ लेकर आ पाया।…मैं वहाँ बचपन से था। मेरा घर और दुकान लूट ली गई। मैं अपनी भावनाएँ नहीं कंट्रोल कर पाया, जब मैंने अपनी टूटती दुकान की वीडियो देखी। तालिबान ने सब ले लिया।”
अफगान से लौटे भारतीय की आपबीती
मोहम्मद खान जैसे तमाम अफगानियों की आपबीती के अलावा कई भारतीय भी हैं जो अफगान से लौटे हैं। इन्हीं में से एक नवीन हैं जो सोमवार देर रात 12: 55 बजे अपने घर सरकाघाट (हिमाचल प्रदेश) पहुँचे हैं। नवीन बताते हैं कि पिछले 5 दिनों में उनका कई बार मौत से सामना हुआ। उनके लिए कैंप से लेकर एयरपोर्ट तक पहुँचना बहुत ही भयानक रहा। वह बताते हैं कि उन्होंने ऐसी दर्दनाक घटनाएँ देखी, जिसे याद करके रूह काँप जाए।
नवीन ने बताया कि जब वह किसी तरह एयरपोर्ट की तरफ चले तो उससे पहले एक गेट पर पहुँचे। यहाँ ब्रिटिश आर्मी थी। उस गेट के पास सभी के पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज चेक किए जा रहे थे। वहाँ करीब 30 से 40 हजार लोग थे और भगदड़ मची हुई थी। इस दौरान कई बच्चे, बुजुर्ग पाँवों के नीचे आ रहे थे। फायरिंग भी हो रही थी। इसके बावजूद लोग एयरपोर्ट जाने के लिए आतुर थे। कई लोग अपने बच्चों को आर्मी के जवानों की तरफ फेंक रहे थे।
नवीन कहते हैं कि उन्होंने दो दिनों तक बिस्कुट खाकर ही गुजारा किया। उनके लिए एयरपोर्ट तक पहुँचना मुश्किल था। करीब ढाई किलोमीटर के रास्ते में बहुत ही डरावना मंजर देखा। जैसे-तैसे एयरपोर्ट पहुँचे जिसके बाद सभी ने राहत की साँस ली।
महिलाओं को लेकर तालिबान का पक्ष
उल्लेखनीय है कि तालिबानियों का चेहरा अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। पिछले हफ्ते तक जहाँ बातें हो रही थीं कि महिलाओं को समान अधिकार दिया जाएगा। वहीं हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबानी प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने ये बयान दिया है कि महिलाओं को अपनी सुरक्षा के मद्देनजर काम पर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि कुछ तालिबानियों को महिलाओं को चोट न पहुँचाने के लिए ट्रेनिंग नहीं दी गई है।
मुजाहिद ने कहा था, “हम चिंतित हैं कि हमारी फोर्स में जो नए हैं, वो अभी तक बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित नहीं हुए हैं, वे महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं।” उन्होंने कहा, “हम नहीं चाहते कि हमारी सेनाएँ, अल्लाह न करे, महिलाओं को नुकसान पहुँचाएँ या परेशान करें।”
तालिबान की सांस्कृतिक मामलों की समिति के डिप्टी अहमदुल्ला वासेक ने भी एक दिन पहले इसी तरह की टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि तालिबान को कामकाजी महिलाओं से तब तक कोई दिक्कत नहीं है जब तक वे हिजाब पहनती हैं। लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा था कि वर्तमान में महिलाओं को काम पर नहीं जाने के लिए कहा जा रहा है क्योंकि वर्तमान में यह एक सैन्य स्थिति है। उन्होंने कहा था कि स्थिति सामान्य होने पर महिलाएँ काम पर जाना शुरू कर सकती हैं।