Friday, November 15, 2024
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श्रीलंका के बाद नेपाल पर छाया आर्थिक संकट: बैन करना पड़ा फल-सब्जियों का आयात, बचे हैं सिर्फ 6 महीने के पैसे

सोचिए, जब 2.19 करोड़ आबादी वाले श्रीलंका का हाल विदेशी मुद्रा भंडार के कारण ये हो सकता है तो 3 करोड़ आबादी वाले नेपाल में विदेशी मुद्रा भंडार कम होने से कितनी हलचल होगी।

श्रीलंका में आर्थिक संकट आने के बाद वहाँ के स्थानीयों का क्या हाल हो रहा है, ये दुनिया से छिपा नहीं है। खाने से लेकर गैस, सब्जियों से लेकर दूध और दवाइयों से लेकर मामूली कागज-दवात तक की कीमत श्रीलंका में आसमान छू रही है। नागरिक परेशान होकर मौजूदा सरकार के खिलाफ़ सड़कों पर हैं। एक पड़ोसी देश की ऐसी विकट स्थित में भारत अपनी तरफ से हर संभव मदद भेजने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इसी बीच खबर है कि भारत का एक और पड़ोसी देश यानी कि नेपाल श्रीलंका की तरह आर्थिक मोर्चे पर नीचे की ओर फिसलने लगा है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि नेपाल की आर्थिक स्थिति इस वित्तीय वर्ष से ही खस्ता थी, लेकिन इसकी चर्चा अब मीडिया में ज्यादा इसलिए है क्योंकि वहाँ अर्थव्यवस्था बचाने के लिए हो रहे फैसले इसे जगजाहिर करने लगे हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो जुलाई 2021 से जुलाई 2022 वाली फाइनेंशियल ईयर में लगातार विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। स्थिति ऐसी है कि उनके पास केवल सिर्फ 6 महीने तक सामान इंपोर्ट करने का पैसा बचा है जबकि माना ये है जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार हमेशा इतना तो रहना चाहिए कि वो कम से कम 7 माह आयात का प्रबंध कर सकें।

नेपाल में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट

ये विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने से हालात कैसे होते हैं इसका अंदाजा आप श्रीलंका को देख लगा सकते हैं। वहाँ 2019 में 7.5 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था जो 2021 में मात्र 1.58 बिलियन डॉलर रह गया। इसके बाद वहाँ महंगाई की मार आई और लोगों को हजार रुपए किलो तक दूध खरीदना पड़ा, पेपर कैंसिल हो गए क्योंकि सरकार कागज-दवात लेने में समर्थ नहीं थी।

ऐसे में सोचिए, जब 2.19 करोड़ आबादी वाले श्रीलंका का हाल विदेशी मुद्रा भंडार के कारण ये हो सकता है तो 3 करोड़ आबादी वाले नेपाल में विदेशी मुद्रा भंडार कम होने से कितनी हलचल होगी। खबर बताती हैं कि नेपाल में पिछले 8 माह में मुद्रा भंडार में करीब 16% कमी आई है, मार्च 2022 तक ये मात्र 975 करोड़ डॉलर (1.17 लाख करोड़ नेपाली रुपए) रह गया है और इसी के चलते उन्होंने बाहरी देशों से सामान इम्पोर्ट करने पर बैन लगा दिया है।

नेपाल में महंगाई

नेपाल की सरकार ने ऐसा कठोर कदम तब उठाया है जब ये बात सब जानते हैं कि उनकी आधी जरूरतें इंपोर्ट के जरिए पूरी होती थीं। दरअसल, नेपाल की भौगोलिक स्थिति के कारण वो खुद उन बुनियादी चीजों का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं। अब वैसे तो नेपाल इम्पोर्ट बैन करके अपने देश के हालातों को सुधारने के प्रयास कर रहा है लेकिन इसी बीच नेपाल में महंगाई ने दस्तक दे दी है जिसके कारण आम जन प्रभावित हैं। खाने-पीने के दाम बढ़ गए हैं

नेपाल फ्रूट होलसेलर्स एसोसिएशन के हवाले से मीडिया में खबरें आ रही हैं कि वहाँ 12 केले का थोक भाव ही 150 रुपए से 165 रुपए तक पहुँच गया है। खुदरा मूल्य 200 रुपए प्रति दर्जन तक पहुँच गया है। इसी तरह अंगूर 19 मार्च को 110 रुपए प्रति किलो थे और अब 145 रुपए किलो हैं। इसके अलावा नेपाल में नींबू व्यापारियों को ही 160-180 रुपए के बीच बीच मिल रहे हैं। बींस की कीमत 95 रुपए किलो है और हरी प्याज 70 रुपए किलो हो गया है।

अर्थव्यवस्था को संभालने में जुटा NRB

बता दें कि देश की गिरती अर्थव्यवस्था के संबंध में NRB ने वित्त मंत्री को पत्र लिखकर हालातों के बारे में सचेत कराया था और पेट्रोलियम आदि को नियंत्रित करने की सलाह दी थी। जिसके बाद अब नेपाल की सरकार ने विदेशी मुद्रा भंडा के सही प्रबंधन के लिए लक्जरी आइटम्स के आयात पर बैन लगा दिया है। वर्तमान में नेपाल सरकार के पास चुनौती यही है कि वो विदेशी मुद्रा भंडार का ढंग से प्रयोग करें और सही फैसले लें। खुद NRB ने भी देश के हालात ठीक करने के लिए कई कड़े फैसले लिए हैं। उन्होंने बैंको को बेवजह लोन देने से इंकार कर दिया है। अन्य बैंको को भी निर्देश हैं कि गैर जरूरी कर्ज देने से बचा जाए।

स्थानीय वहाँ घबराए हुए हैं। पेट्रोल पंप के बाहर सैंकड़ों तादाद में लोग लाइन लगाकर खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। नेपाल ऑयल कॉर्पोरेशन सरकार से 2 दिन सरकारी अवकाश घोषित करने की अपील कर रहा है। नेपाल सरकार ने अपने मंत्रालयों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के ईंधन भत्ते में 20 फीसद की कटौती करने की शुरुआत कर दी है। लेकिन दूसरी नेपाल के वित्त मंत्री मंत्री आश्वस्त कर रहे हैं कि नेपाल की अर्थव्यवस्था श्रीलंका की तरह नहीं गिरेगी क्योंकि उन पर श्रीलंका जितना कर्जा नहीं है।

नेपाल में इम्पोर्ट के लिए प्रतिबंधित हुई चीजों की लिस्ट

जिन चीजों के आयात पर नेपाल ने बैन लगाया है उनमें साइकिल, डिजाइनदार गाड़ियाँ, मोपेट, मोटर उपकरण, चावल, कपड़ा, मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स, सोना, बिजरी के उपकरण, रेडीमेड कपड़े, सोना, चांदी, धागा, सीमेंट, खिलौने, जार, खेल से जुड़ी वस्तुएँ, पत्थर को सजाने की सामग्री, चिमनी वाले बर्तन, लकड़ी, बालों के शैंपू, क्रीमें, सेंट, जूते, मेकअप,कोयला, फर्नीचर, छाता आदि बैन हैं। इनके अलावा पौधे, मिर्च, मछली, सब्जियों, मूँगफलियों, डेरी सामान, सुपारी, शहद, अंडे, केले, चिप्स, मीट, मेडिकल वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कर्जे मं श्रीलंका और नेपाल

गौरतलब है श्रीलंका की तरह ही नेपाल की आय का एक प्रमुख स्रोत पर्यटक होते हैं। पिछले दो साल में कोरोना महामारी के चलते जैसा असर श्रीलंका पर पड़ा, वैसा ही नेपाल पर पड़ा। दोनों ही देशों को पर्यटन रुकने से काफी नुकसान झेलना पड़ा। इसके बाद जो कर्जा लिया था उसकी वजह से भी इन देशों को परेशानी है। रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंकार पर जहाँ 51 बिलियन डॉलर का कर्ज है। वहीं नेपाल पर 20 बिलियन डॉलर का कर्ज है। श्रीलंका तो खुद को विदेशी कर्ज का भुगताने करने में असमर्थ घोषित कर चुका है। मगर नेपाल अभी अपनी स्थिति को सुधारने की कोशिशों में है।

चीन का हस्तक्षेप नेपाल में

पर्यटन या कर्जे के अलावा इन दोनों देशों की स्थिति में जो समान है वो इनका चीन के साथ कनेक्शन है। श्रीलंका को चीन ने अपने कर्ज जाल में कैसे फँसाया ये सब जानते हैं। ऐसे में इस बात को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है कि चीन का हस्तक्षेप लंबे समय से नेपाल में भी बराबर रहा है। चीन ने कई बार नेपाल के फैसलों में अपनी टांग घुसाकर निर्णयों को प्रभावित करने का प्रयास किया है

इतना ही नहीं कुछ समय पहले चीनी सुरक्षाबलों ने नेपाली इलाके में धार्मिक गतिविधियाँ बंद करवाने का काम किया था, किसानों के चारागाह को सीमित करने की कोशिश की थी, बॉर्डर पिलर पर अपने बाड़ बनाने लगा था, नहर के साथ सड़क निर्मित करने की कोशिश की थी।

उसकी विस्तारवादी नीतियों से वाकिफ हाल में नेपाल के एक अर्थशास्त्री ने चीन से कर्ज लेने के विचार पर नेपाल को आगाह भी किया था। ये बयान अर्थशास्त्री बिश्वंभर प्यकुरयाल ने तब दिया था जब चीन के विदेश मंत्री काठमांडू यात्रा करने वाले थे और यहाँ उसी बेंल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के नाम पर समझौते पर हस्ताक्षर होने थे जैसे श्रीलंका के साथ हुए थे।

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