पाकिस्तान के लिए ग्वादर शहर आर्थिक और रणनीतिक दोनों ही तरीके से महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन वहाँ बीते दो महीनों से लगातार आंदोलन चल रहा है। स्थानीय बलूच लोग अपने अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे हैं। साथ ही, देश में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप का विरोध कर रहे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि सरकार ग्वादर से कोई भी खबर बाहर नहीं आने दे रही।
दरअसल, ग्वादर बलूचिस्तान प्रांत का बंदरगाह वाला शहर है। इस शहर में चीन ने काफी निवेश किया है। इस निवेश का कारण चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPCE) है। इस परियोजना में चीन ने करीब 62 अरब डॉलर (5.127 लाख करोड़ रुपए) का निवेश किया है। साथ ही CPEC के लिए ग्वादर बंदरगाह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
क्यों हो रहा आंदोलन?
दरअसल, पाकिस्तान में बलूच लोगों को पहले ही दोयम दर्जे का माना जाता था। एक ओर जहाँ बलूचों को उनके अधिकार नहीं मिल रहे थे। वहीं अब CPEC के चलते उनकी जमीनों पर भी कब्जा किया जा रहा है। CPEC के रास्ते में आने वाले सैकड़ों गाँव नष्ट हो चुके हैं। इस परियोजना का विरोध करने वाले लोगों पर पाकिस्तानी सरकार बर्बरता कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार, CPEC का विरोध करने वाले लोगों को या तो गायब करवा दिया जा रहा है या फिर उनकी हत्या कर दी जा रही है।
पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत प्राकृतिक संसाधनों का भंडार माना जाता है। लेकिन अब चीन इन संसाधनों का उपयोग कर रहा है। चीन ग्वादर बंदरगाह को बढ़ाता जा रहा है। इससे आसपास के अन्य क्षेत्रों पर भी खतरा मंडरा रहा है। यही नहीं, जहाँ एक ओर इस पूरी परियोजना में चीनियों को रोजगार मिल रहा है। वहीं, गरीबी और भुखमरी झेल रहे पाकिस्तान में बलूच बेरोजगार घूम रहे हैं। इन तमाम बातों के चलते शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन अब आंदोलन का रूप ले चुका है।
पाकिस्तान-चीन का विरोध
मौलाना हिदायतुर रहमान की अगुवाई में हो रहे इस आंदोलन में आंदोलनकारियों ने सरकार के खिलाफ हथियार भी उठा लिए हैं। बलूचिस्तान में चीनी नागरिक लंबे समय से निशाने पर रहे हैं। वहाँ चीनियों पर हमला होना आम हो गया है। यही नहीं, बलूचों ने चीनी नागरिकों को ग्वादर छोड़ने की धमकी भी दी है। साथ ही, आंदोलनकारी में चीन द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्यों में तोड़फोड़ कर रहे हैं।
आंदोलन कर रहे लोगों की माँगे…
ग्वादर में आंदोलन कर रहे लोग बलूचिस्तान में चीनी सरकार का कम से कम हस्तक्षेप चाहते हैं। साथ ही उन्होंने बलूचिस्तान में अवैध रूप से मछली पकड़ने पर रोक लगाने की माँग की है। यही नहीं, बलूचिस्तान में जगह-जगह लगे चेकपोस्ट को कम करने की भी माँग की जा रही है। इसके अलावा, एक माँग CPEC का विरोध कर रहे लोगों के लापता होने को लेकर है।
इस आंदोलन को लेकर बलूच नेशनल मूवमेंट के नेता हकीम बलूच कहते हैं, “बलूचिस्तान के लोग चीन के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। हमारा मानना है कि पाकिस्तानी सरकार और सेना के साथ मिलकर चीनी सरकार बलूचों के संसाधनों को लूट रही है। वो लोग कहते हैं कि CPEC बलूचिस्तान के लिए मिलियन डॉलर परियोजना है। लेकिन बलूचिस्तान के लोगों के लिए यह परियोजना शुरुआत से ही आपदा की तरह है।”
बलूचों का रोजगार छीन अमीरों की झोली भर रहा पाक
इस आंदोलन का कारण चीन-पाकिस्तान गलियारे से जुड़ा होने के साथ ही रोजी रोटी से भी जुड़ा है। बलूचिस्तान के लोगों का मुख्य पेशा मछली पकड़ना है। लेकिन चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के कारण जगह-जगह चेकपोस्ट लगा दिए गए हैं। साथ ही मछली पकड़ने के लिए बलूचों को लंबी यात्रा करनी पड़ रही है। इससे उनके सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
दूसरी तरफ, कराची के बड़े-बड़े व्यापारी ग्वादर में आकर गैर कानूनी तरीके से मछली पकड़ रहे हैं। इसके बाद वह ट्रकों से मछलियों को बाहर भेज रहे हैं। लोगों का आरोप है कि चीनी जहाज भी मछली पकड़ने के कारोबार में शामिल हैं। इससे उनकी कमाई में बड़ा असर पड़ा है।
अब आगे क्या…?
मौलाना हिदायतुर रहमान की अगुवाई में हो रहा यह आंदोलन लगातार जारी है। मौलाना फिलहाल अंडरग्राउंड हैं। लेकिन, आंदोलनकारी अपनी माँगों को लेकर डटे हुए हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो चीन की करोड़ों रुपए की योजना CPEC ध्वस्त हो जाएगी। इस कारण चीन पाकिस्तान को सहायता देना बंद कर देगा। पाकिस्तान लंबे समय से दूसरे देशों के सहारे ही चल रहा है। यदि चीन ने पाकिस्तान के सिर से हाथ अलग कर लिया तो उसे बचाने वाला कोई नहीं होगा।
यही कारण है कि पाकिस्तान सरकार इस आंदोलन को दमन करने में जुटी हुई है। पाकिस्तान सरकार अब तक 100 से अधिक आंदोलनकारियों को गिरफ्तार भी कर चुकी है।