Sunday, November 17, 2024
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बलूचिस्तान में तेज़ हुई आज़ादी की ज़ंग, 102 पाकिस्तानी फौजियों को उतारा मौत के घाट: पंजाब प्रांत वालों को खोज-खोज कर उड़ा रहे, समझिए इस विद्रोह का इतिहास

बीएलए में सबसे खतरनाक ब्रिगेड है मजीद ब्रिगेड, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ फिदायीन हमलों से लेकर छोटे-छोटे समूहों में हमला करता है। बीएलए के अधिकतर हमलावर मजीद ब्रिगेड से ही होते हैं।

बलूचिस्तान के विद्रोही संगठनों में से एक बलूच लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर लड़ाई लड़ते हुए पाकिस्तानी सेना के खिलाफ ‘ऑपरेशन हेरोफ’ और ‘ऑपरेशन डार्क वाइंडी स्टॉर्म’ चलाया, जिसमें 100 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, तो पाकिस्तान के आर्मी बेस के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया। यही नहीं, बलूच लिबरेशन आर्मी ने हाईवे ब्लॉक कर दिए और बसों या अन्य सार्वजनिक वाहनों की तलाशी लेकर लोगों के पहचान पत्र देखे और पंजाबी मूल के लोगों को अलग कर उन्हें गोलियों से भून डाला। करीब 2 दर्जन पंजाबियों को बलूचियों ने अपनी गोली का शिकार बना डाला।

पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है बलूचिस्तान। क्षेत्रफल 44 प्रतिशत मगर आबादी महज 5 से 6 प्रतिशत। बलूचिस्तान से हजारों लोग गायब हैं। ये वो लोग हैं, जो बलोच होते हुए बलूचियों के बारे में और बलूचिस्तान की आजादी के बारे में सोचते थे। अब बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के कब्जे के आठवें दशक में एक बार फिर से बलूचियों ने सर उठाया है। बलूचिस्तान के विद्रोहियों ने पाकिस्तान से खुलकर टक्कर लेना शुरू कर दिया है। पाकिस्तानी सेना बलूचियों पर जितना अत्याचार बढ़ा रही है, बलूच भी उतनी ही ताकत से अब जवाब दे रहे हैं।

आजादी से जुड़ी है बलूचिस्तान के विद्रोह की कहानी

बलूचिस्तान में ये कत्लेआम आज का नहीं है। इसकी जड़ें जुड़ी हैं भारत और पाकिस्तान की आजादी से। बलूचिस्तान के लोगों का मानना है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के व़क्त उन्हें ज़बरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया, जबकि वो ख़ुद को एक आज़ाद मुल्क़ के तौर पर देखना चाहते थे। बलूचिस्तान में कलात के शाह ने तो अंग्रेजों को ये पेशकश भी की थी कि वो आजादी चाहते हैं, भले ही विदेशी मामलों की जिम्मेदारी ब्रिटेन अपने पास रखे। वो किसी भी हाल में पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे।

दरअसल, भारत की आजादी के समय बलूचिस्तान में चीफ कमिश्नर के नेतृत्व में एक राज्य हुआ करता था, जिसमें 4 मुख्य प्रिंसली स्टेट्स भी थे। इनके नाम कलात, मकरान, लाल बेला और खारन थे। इनका नेतृत्व कलात के शाह कह रहे थे। इन्होंने अपने लिए पहले भारत में आने की कोशिश की, लेकिन भारत के मना करने के बाद और पाकिस्तान के दबाव के आगे कलात के खान- अहमद यार खान (आखिरी) को झुकना पड़ा और उन्होंने 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए सहमति दे दी।

हालाँकि उनके भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने अहमद यार खान के फैसले को मानने से इनकार कर दिया और जुलाई 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। ये लड़ाई 1950 तक चली। वहीं, अहमद यार खान को कलात के खान की उपाधि 1955 तक चलती रही। इसके बाद बलूचिस्तान का पाकिस्तान में पूरी तरह से विलय हो गया। ये लड़ाई रह-रह कर पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बनती रही। 1948 के बाद 1958-1959, 1962-62, 1973-77 तक पाकिस्तान को लगातार इनसे जूझता रहा।

इस समय बलूचिस्तान में सबसे ज्यादा सक्रिय जो संगठन है, उसका नाम है बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी। माना जाता है कि ये संगठन 1970 के दशक से सक्रिय है। जब जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार थी, तब बलूचों ने एक बार फिर से हथियार हुआ, लेकिन जियाउल हक ने तानाशाही करते हुए जब भुट्टो का तख्तापलट किया, तब जियाउल हक ने बलूच विद्रोहियों से भी बातचीत की। इसके बाद सशस्त्र लड़ाई तो खत्म हो गई, लेकिन जो वादे किए गए, वो कभी पूरे नहीं हुए। हालाँकि लड़ाई खत्म होने की वजह से बलूच लिबरेशन आर्मी भी लगभग खत्म हो गई। इसके बाद 1999 के आसपास जब जनरल मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल किया, तो एक बार फिर से बलूचियों की हिम्मत जागी और तब से बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी लगातार सशस्त्र लड़ाई लड़ रही है।

21वीं सदी में बलूच राष्ट्रवाद का नया उभार

साल 2003 में परवेज मुशर्रफ ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को तबाह करने के लिए पूरा जोर लगाना शुरू किया। इसके साथ ही बलूचियों ने भी पूरी ताकत से जवाब देना शुरू कर दिया। मशहूर बलूच नेता नवाब अकबर खान बुगती को परवेज मुशर्रफ ने मरवा दिया। लेकिन बलूचियों का संघर्ष थमने की जगह बढ़ता चला गया। नवाब अकबर खान बुगती के बाद बीएलए का नेतृत्व संभाला नवाबज़ादा बालाच मिरी ने, लेकिन साल 2007 में उसे भी पाकिस्तानी सेना ने मार डाला।

माना जाता है कि गैर बलूचियों के खिलाफ साल 2009 से गुस्सा बाहर निकलना शुरू हुआ और बीएलए ने पंजाबियों को निशाना बनाना शुरू किया। साल 2009 में करीब 500 पंजाबी बलूचिस्तान के इलाकों में मारे गए, इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने सिस्टमैटिक तरीके बलूचियों को गायब करना शुरू किया। माना जाता है कि 5000 से अधिक राष्ट्रवादी बलूचियों को पाकिस्तानी सेना ने या तो मार डाला, ये उन्हें किसी ऐसी जगह कैद कर रखा है, जिनका किसी को कुछ अता-पता ही नहीं। इस साल भी पाकिस्तान में इस्लामाबाद तक बलूचियों ने प्रदर्शन किया था, लेकिन पाकिस्तानी सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी।

एक तरफ बलूच पूरी दुनिया में पाकिस्तान की फौज की ज्यादतियों का मुद्दा उठा रहे हैं और शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ बीएलए जैसे संगठन अब हथियारों के दम पर पाकिस्तान की सरकार की नाक में दम कर दिया है। बलूचिस्तान के दोहन में जुटे पाकिस्तान ने ग्वादर में चीनी निवेश लाने में जितना जोर लगाया, बीएलए अब उतनी ही ताकत से चीनियों और पाकिस्तानियों को निशाना बना रहा है। जिसकी वजह से मौजूदा समय में ग्वादर को किलेबंदी की शक्ल में कैद किया जा चुका है और वहाँ से एक आवाज भी बाहर नहीं आ पा रही है।

एनजीओ वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स की रिपोर्ट कहती है कि 2001 और 2017 के बीच 16 साल में 5,228 बलूच लोग लापता हुए और इनका कोई पता नहीं चल सका। पाक सेना ने क्रूरता दिखाई है तो बलूच समूहों ने भी हिंसा का सहारा लिया है।

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के कुछ बड़े हमले

बीएलए ने जुलाई, 2000 को क्वेटा में बम धमाका किया, जिसमें 7 लोगों की मौत हुई तो 25 लोग घायल हुए थे। ये इस सदी की शुरुआत में बीएलए का सबसे बड़ा हमला था। साल 2004 में बीएलए ने पहली बार चीनी श्रमिकों पर हमले किए थे। बीएलए शुरू से ही बलूचिस्तान के अंधाधुंध दोहन के खिलाफ रहा है, इसलिए उसके निशाने पर पाकिस्तानी पंजाब के साथ ही चीनी नागरिक भी रहे हैं।

इसके बाद बलूचियों का बड़ा हमला जुलाई 2009 में सामने आया, जब बीएलए के लड़ाकों ने 19 पाकिस्तान पुलिसकर्मियों को किडनैप कर लिया। इस दौरान उन्होंने 1 पुलिस अधिकारी को मार दिया, तो 16 घायल हो गए। तीन सप्ताह तक इन पुलिसकर्मियों को बंधक बनाए रखने के बाद बीएलए ने 1 पुलिसकर्मी को छोड़कर बाकी 18 को मार डाला।

साल 2011 के नवंबर महीने में बीएलए के लड़ाकों ने उत्तरी मुसाखेल में कोयला खदान में तैनात पाकिस्तान के सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया, जिसमें 14 लोगों की मौत हुई, तो 10 घायल हो गए। दिसंबर 2011 में बीएलए के लड़ाकों ने पूर्व मंत्री मीर नसीर मेंगल के घर के बाहर कार धमाका किया था, जिसमें 13 लोग मारे गए थे। जून 2012 में बीएलए ने पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना के घर पर ही रॉकेट से हमला कर दिया था और जिन्ना के घर पर लगे पाकिस्तानी झंडे को उखाड़ फेंकने के साथ ही बीएलए का झंडा लहरा दिया था।

बीएलए से जुड़े मजीद ब्रिगेड ने कराची से लेकर ग्वादर तक चीनी नागरिकों को निशाना बनाया, जिसमें सबसे बड़ा हमला नवंबर 2018 का है, जिसमें कराची में स्थित चीनी वाणिज्य दूतावाल पर हुआ हमला भी शामिल है। इसमें चीनियों समेत 7 लोग मारे गए थे।

पाकिस्तान में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का ताजा बड़ा हमला

ताजे मामले में बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने अपने ऑपरेशन हेरोफ के पहला फेज पूरा होने का ऐलान किया है। बीएलए ने सैन्य शिविर और सैन्य चौकियों को निशाना बनाकर किए गए हमलों में 102 पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या की जिम्मेदारी ली है। बीएलए ने ऑपरेशन हेरोफ के सफल समापन की घोषणा करते हुए इसे बलूचिस्तान पर नियंत्रण हासिल करने के व्यापक अभियान का हिस्सा कहा है।

बीएलए के एक प्रवक्ता ने दावा किया कि इस ऑपरेशन के शुरू होने के छह घंटों के अंदर 102 पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके हैं। रिपोर्टों के अनुसार, इस ऑपरेशन में बीएलए के मजीद ब्रिगेड के आत्मघाती हमलावर भी शामिल हैं। इसमें पाकिस्तानी सेना के बेला कैंप के बड़े हिस्से पर कब्जा करना और सैन्य काफिलों पर घात लगाकर हमला करना शामिल है।

बलूचिस्तान में सैन्य चौकियों को ही नहीं सोमवार (26 अगस्त 2024) को मुसाखाइल जिले में पंजाब के भी 23 लोगों की उनकी आईडी देखे के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई। बलूचिस्तान में पंजाबियों के खिलाफ नफरत इस तरह का यह पहला हमला नहीं है। इसी साल अप्रैल में बलूचिस्तान के नोशकी में नौ पंजाबी यात्रियों की आईडी की जाँच के बाद गोली मारी गई थी। पिछले साल अक्टूबर में भी केच जिले में छह पंजाबी मजदूरों की मार डाला गया था। 

इस बीच, बीएलए के लड़ाकों ने बलूचिस्तान में सभी हाइवे पर अपने बैरियर-नाकेबंदी लगा दी है। बीएलए के कब्जे में आए हाईवे में ग्वादर-जिवानी हाईवे, होटाबाद इलाके के मंड-तुर्बत हाईवे, तेगरान में अब्दोई हाईवे, तुर्बत-हेरोनक सीपीईसी हाईवे, क्वेटा-ताफ्तान हाईवे, नोश्की-खरान हाईवे, मस्तुंग-खड़कुचा हाईवे, कलात-कराची हाईवे, बोलन और कोह-ए-सुलेमान के मेन हाईवे, बल्गटर-पंजगुर और सिबी-मिथ्री हाईवे शामिल हैं। इस काम बलूच लिबरेशन आर्मी के फतह स्क्वाड और स्पेशल टैक्टिकल ऑपरेशन स्क्वाड शामिल हैं।

बीएलए ने इस दौरान 22 से अधिक सैन्य, पुलिस और लेवी वसूली कर्मियों को पकड़ने की भी सूचना दी है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने चीन और पाकिस्तान को खुलकर कहा है कि वो अपनी सलामत चाहते हैं, तो बलूचिस्तान से दूर ही रहें।

बीएलए की मजीद ब्रिगेड से काँपता है पाकिस्तान

बीएलए में सबसे खतरनाक ब्रिगेड है मजीद ब्रिगेड, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ फिदायीन हमलों से लेकर छोटे-छोटे समूहों में हमला करता है। बीएलए के अधिकतर हमलावर मजीद ब्रिगेड से ही होते हैं। मजीद ब्रिगेड पर पाकिस्तान सरकार ने बैन लगाया हुआ है, जबकि बीएलए को पाकिस्तान के साथ ही यूके और अमेरिका ने भी आतंकवादी संगठन घोषित किया है।

एक नजर में बलूचिस्तान

पाकिस्तान में क्षेत्रफल के हिसाब से बलूचिस्तान सबसे बड़ा प्रांत है। इसकी सीमाएँ ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से मिलती हैं। बलूचिस्तान का पूरा इलाक़ा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत, ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत और अफगानिस्तान के निमरूज और हेलमंड समेत कुछ इलाकों से मिलकर बना है। पाकिस्तान के हिस्से में पड़ने वाला बलूचिस्तान प्रांत प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। यहाँ गैस, कोयला और तांबे के बड़े भंडार हैं। लेकिन इसके बावजूद ये पाकिस्तान का सबसे गरीब प्रांत है, क्योंकि इसका दोहन पाकिस्तान की पंजाबी प्रभुत्व वाली सरकार करती है।

ईरान के साथ ही बलूचियों की जंग

एक समय में बलूचिस्तान की आजादी के लिए लड़ाई पाकिस्तान के साथ ही ईरान के साथ भी चल रही थी। बलूचिस्तान में दूसरा महत्वपूर्ण संगठन बीएलएफ-बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट था, जो ईरानी कब्जे वाले बलूचिस्तान की आजादी के साथ ही एकीकृत बलूचिस्तान के लिए लड़ रही थी। हालाँकि 1980 के दशक में 5 साल तक चली बातचीत के बाद संघर्ष विराम हुआ, लेकिन बीते कुछ सालों में बलूच विद्रोही फिर से ईरान में भी सिर उठा रहे हैं। कुछ समय पहले ईरान का पाकिस्तान में घुसकर और पाकिस्तान सेना के ईरान में घुसकर हमलों की बात सामने आई थी, वो इन्हीं बलूच राष्ट्रवादी लड़ाकों की वजह से था।

बीएलएफ की स्थापना 1964 में सीरिया में हुई थी। यह ईरानी सरकार के खिलाफ बलूच समूहों का विद्रोह था। लेकिन साल 2013 से बीएलएफ ने ईरान के साथ ही पाकिस्तान की तरफ भी रूख कर लिया। बीते एक दशक में पाकिस्तान और ईरान की नाक में दम करने वाले संगठन यही बीएलए और बीएलएफ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। खास बात ये है कि दोनों के ही लड़ाके अफगानिस्तान में आने वाले बलूच इलाकों को बेस बनाए रखा था, लेकिन अब बीएलए पूरी तरह से पाकिस्तान में ही सक्रिय है और एक ठीक-ठाक हिस्से में बीते कुछ माह से स्वतंत्र होकर काम कर रहा है, जहाँ पाकिस्तानी सेना भी नहीं पहुँच पा रही है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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