प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) से में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका पहुँचे हैं। इससे पहले जून में इन सभी देशों के के विदेश मंत्रियों के बीच केपटाउन में बातचीत हुई थी। अब 22-24 अगस्त, 2023 को इन सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात होनी है। अक्सर G-7 के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाने वाला ये समूह अब खुद को विस्तार देने की सोच रहा है। विदेश मंत्रियों की हुई बैठक में अल्जीरिया, अर्जेंटीना, ईरान, सऊदी अरब, UAE, इजिप्ट और कज़ाख़िस्तान के विदेश मंत्री भी मौजूद थे।
बैठक के बाद दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री नलेडी पंडोर ने कहा था कि संघाई स्थित ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ ने ब्रिक्स के मंत्रियों को एक नई मुद्रा के इस्तेमाल को लेकर भी प्रेजेंटेशन दिया, जिससे वैश्विक प्रतिबंधों से ये देश प्रभावित न हो पाएँ। दुनिया की 41% जनसंख्या ब्रिक्स देशों में रहती है, साथ ही ये समूह दुनिया की 24% GDP का स्वामित्व रखता है और दुनिया के 16% कारोबार पर भी इन देशों का कब्ज़ा है। ब्रिक्स के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद अंतरराष्ट्रीय कारोबार में स्थानीय मुद्राओं के इस्तेमाल और व्यापारिक लेनदेन में भी इसके इस्तेमाल को लेकर भी चर्चा हुई।
बता दें कि पिछले साल ही यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ट्रांसफर के लिए एक अलग वैकल्पिक व्यवस्था की वकालत की थी। उन्होंने वीडियो लिंक के जरिए ब्रिक्स के सम्मेलन को संबोधित करते हुए एक ‘अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करेंसी’ का सुझाव भी दिया था। उन्होंने यहाँ तक कहा था रूस कारोबार और आर्थिक समझौतों को अपने विश्वसनीय दोस्तों भारत और चीन की तरफ मोड़ रहा है। नई कॉमन करेंसी लाने के पीछे उद्देश्य है ब्रिक्स देशों के आर्थिक, भौगोलिक और जनसांख्यिकी हितों को सुरक्षित रखा जाए।
2009 में ब्रिक्स की स्थापना हुई थी और 2015 में इसने ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ की स्थापना की। विकासशील देशों और उभरते हुए बाजारों में इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए संसाधनों को जुटाया जा सके। पहले इसे ‘ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक’ के रूप में जाना जाता था। ब्रिक्स चाहता है कि ‘वर्ल्ड बैंक’ और ‘इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF)’ में पश्चिमी आधिपत्य को खत्म किया जा सके। G20, नाटो और यूरोपियन यूनियन जैसे पश्चिमी संघों से मुकाबले के लिए कई अन्य देश हैं जो ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं।
लगभग 40 देश ऐसे हैं जो BRICS में शामिल होना चाहते हैं। कई देशों ने NBD में निवेश भी किया है, जिसमें अल्जीरिया ताज़ा है। अल्जीरिया ने 1.5 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ बैंक से जुड़ने के लिए आवेदन दिया। बांग्लादेश और UAE 2021 में इस बैंक से जुड़ चुके हैं। अर्जेंटीना, जिम्बाब्वे और सऊदी अरब भी इसमें शामिल होने को लेकर विचार कर रहे हैं। सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल विक्रेता है, ऐस में वो एशिया में अपने निवेश और बाजार को विस्तार देने के लिए इस बैंक से जुड़ना चाहता है।
रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण ब्रिक्स के बाजारों पर भी खराब असर पड़ा है। NBD में 18.98% हिस्सा उसी का है। मार्च 2022 में NBD ने अनिश्चितताओं और पाबंदियों के कारण रूस में नए लेनदेन रोकने का ऐलान किया था। हालाँकि, भारत और ब्राजील ब्रिक्स को विस्तार देने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे समूह में चीन का प्रभाव बढ़ने की भी आशंका है। भारत चाहता है कि भविष्य में देशों को इसकी सदस्यता देने के लिए नियम-कानून बनें। वहीं ब्राजील नहीं चाहता कि इसे अमेरिका-EU के विरोधियों का अड्डा बना दिया जाए।
ब्रिक्स इस चीज को लेकर लगभग एकमत है कि द्विपक्षीय व्यापारों के लिए स्थानीय (उन देशों की) मुद्राओं का इस्तेमाल किया जाए। रूस का नाम लिए बिना प्रतिबंधों, बॉयकॉट और नाकेबंदियों से बचने के लिए इसकी ज़रूरत पर बल दिया गया। भारत ने रुपया-रूबल समझौते को पुनर्जीवित करने की कोशिश की, लेकिन रूस ने 40 बिलियन से अधिक के भारतीय रुपए सरप्लस में रखने से इनकार कर दिया और करेंसी को कन्वर्ट कराने में खर्च अधिक होने के कारण बात आगे नहीं बढ़ सकी।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के UAE दौरे में रुपया-दिरहम को लेकर भी एक समझौता हुआ। बताया गया कि ये वैश्विक अर्थव्यवस्था में डॉलर के प्रभाव को कम करने के लिए नहीं था, बल्कि खाड़ी देशों में भारतीय रुपए के चलन को बढ़ाने और दोनों देशों के पेमेंट और मैसेजिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए हुआ। अब तक RBI ने 18 देशों को रुपए में व्यापार करने की अनुमति दी है। चीन पहले से ही युआन का इस्तेमाल कर के 120 देशों के साथ व्यापार कर रहा है। हालाँकि, निकट भविष्य में ब्रिक्स की कॉमन करेंसी आने की कोई उम्मीद नहीं है।
🎥 As PM @narendramodi is heading to Johannesburg, take a look at what PM’s visit to South Africa & Greece has in store. pic.twitter.com/H9PiW1592C
— Arindam Bagchi (@MEAIndia) August 22, 2023
विश्लेषण इस पर भी हो रहा है कि क्या ब्रिक्स नया वर्ल्ड ऑर्डर स्थापित करेगा? ‘इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट’ ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ वॉरंट जारी कर रखा है, ऐसे में वो यूक्रेन से युद्ध के बीच दक्षिण अफ्रीका में होने वाले समिट में नहीं आएँगे, बल्कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से शामिल होंगे। रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका-चीन तनाव के बीच में ब्रिक्स की ये बैठक हो रही है। अभी हमने बताया कि ब्रिक्स देश कैसे GDP-जनसंख्या के मामले में G-7 से आगे हैं, लेकिन IMF में उनकी वोटिंग की हिस्सेदारी सिर्फ 15% ही है।
ग्लोबल साउथ (गरीब देशों) में भी असंतोष का माहौल है। दुनिया में असंतुलन की स्थिति का भय है, क्योंकि अमेरिका किसी भी देश पर प्रतिबंध लगा कर उसे अलग-थलग कर सकते हैं। भारत ने भी कहा है कि वो खुले विचार के साथ ब्रिक्स के विस्तार को देख रहा है। भारत का इस दिशा में सकारात्मक रुख है, ऐसे में ब्रिक्स का एक्सपेंशन तय लग रहा है। ये ब्रिक्स का 15वाँ समिट हो रहा है। 2019 के बाद पहली बार ब्रिक्स की इस तरह की कोई बैठक हो रही है।