Monday, November 18, 2024
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चीन-पाकिस्तान का दखल, कमजोर राजनीतिक जमीन, घटती लोकप्रियता… MS वोट बैंक के लिए हिंदुओं-भारत से रिश्ते बिगाड़ रहे जस्टिन ट्रूडो?

जस्टिन ट्रूडो की जनता में लोकप्रियता रसातल को चली गई है। जनता की पसंद-नापसंद बताने वाली अप्रूवल रेटिंग में भारी गिरावट हुई है। सितम्बर, 2024 में ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग मात्र 30% थी। यानी 100 में से 70 लोग ट्रूडो को पसंद नहीं करते।

खालिस्तानियों से हमदर्दी दिखाने और भारत से कूटनीतिक रिश्ते खराब करने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो घरेलू राजनीति में भी अलग-थलग पड़ गए हैं। कनाडा की राजनीतिक और पत्रकार बिरादरी भी ट्रूडो की नीतियों ने कतई सहमत नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत विरोध का यह झंडा ट्रूडो ने अपने वोटबैंक को ठीक करने के लिए उठाया है। यह भी कहा जा रहा है कि कनाडा के चुनावों में चीन के हस्तक्षेप से लोगों का ध्यान भटकाने को लेकर ट्रूडो भारत का नाम उछाल रहे हैं।

अपनी ही पार्टी के निशाने पर ट्रूडो

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं। उनकी लिबरल पार्टी के कई सांसदों ने ट्रूडो सरकार की नाकामियों के चलते जस्टिन ट्रूडो से प्रधानमंत्री पद छोड़ने को कहा है। कई सांसद मुखर होकर यह बात उठा रहे हैं। कनाडाई मीडिया बता रहा है कि लिबरल पार्टी के सांसद एक साथ आकर ट्रूडो पर दबाव बना रहे है कि वह आगामी चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ दें। उन पर यह दबाव हालिया टोरंटो उपचुनाव में हार के बाद और बढ़ा है।

CBC की एक रिपोर्ट बताती है कि सांसद सीन केसी ने जस्टिन ट्रूडो से खुले तौर पर पद छोड़ने को कहा है। इसके अलावा बाकी सांसद संख्याबल जुटा रहे हैं ताकि वह ट्रूडो को किनारे लगा सकें। ट्रूडो के विरोधी सांसद तब तक इस पूरी प्रक्रिया को चुपचाप कर रहे हैं। कई सांसदों से एक ऐसे कागज पर दस्तखत करने को कहा जा रहा है जिसमें ट्रूडो को हटाने की बात कही गई है। ट्रूडो को हटाने की यह कोशिश अकारण ही नहीं हो रही है। कनाडा में 2025 में आम चुनाव होने हैं।

चुनाव से पहले जस्टिन ट्रूडो की जनता में लोकप्रियता रसातल को चली गई है। जनता की पसंद-नापसंद बताने वाली अप्रूवल रेटिंग में भारी गिरावट हुई है। सितम्बर, 2024 में ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग मात्र 30% थी। यानी 100 में से 70 लोग ट्रूडो को पसंद नहीं करते। जब ट्रूडो प्रधानमंत्री बने थे, तब उनको पसंद करने वालों का आँकड़ा 60% के पार था। युवा वर्ग और पुरुषों में तो ट्रूडो की रेटिंग 25% पर पहुँच गई है। उनकी लोकप्रियता घटने का सबसे बड़ा कारण कनाडा में बढती महंगाई और बेरोजगारी है।

अपनी पार्टी के विरोध से बचने को ट्रूडो भारत विरोध का पैंतरा अपना रहे हैं। उन्हें लगता है कि राजनयिक बखेड़ा खड़ा करने से कुछ समय के लिए उनकी कुर्सी बच जाएगी। वह अपनी पार्टी को देश के संकट में फंसे होने का बहाना दे सकेंगे। हालाँकि, उनकी कुर्सी बचाने की यह तरकीब कनाडा को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारी पड़ने वाली है।

मुस्लिम-सिख वोटबैंक भी है कारण

जस्टिन ट्रूडो के खुले भारत विरोध का एक कारण वोटबैंक भी है। वह यूँ ही खालिस्तानियों का समर्थन नहीं कर रहे हैं। दरअसल, सिख कनाडा की आबादी का लगभग 2% हैं। उनके वोट ब्रैम्पटन जैसे इलाकों में निर्णायक हैं। कनाडा में सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकांश नेता भी खालिस्तान के समर्थक हैं। जगमीत सिंह इसका एक उदाहरण हैं। कई बड़े गुरुद्वारों में भी खालिस्तानियों का प्रभाव है। इन सब परिस्तिथियों में सिख वोट ट्रूडो के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

वह खालिस्तानियों को खुश करके सिख समुदाय का वोट चाहते हैं। इसके अलावा कनाडा में हिन्दू वोट भी 2.3% है। ट्रूडो जानते हैं कि भारत का विरोध करने से उनको हिन्दू वोट का नुकसान होगा। हालाँकि, वह इस वोट का नुकसान करने को तैयार हैं और इसकी भरपाई वह सिख-मुस्लिम वोट मिलाकर करना चाहते हैं। कनाडा की आबादी में लगभग 5% हिस्सा मुस्लिमों का है। इनमें से भी बड़ा हिस्सा उन मुस्लिमों का है, जो पाकिस्तानी हैं।

इस मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए ट्रूडो ने कनाडा के भीतर पाकिस्तान की गतिविधियों को खुला छूट दे दी है। सितम्बर, 2024 में ही कनाडा की खुफिया और सुरक्षा एजेंसी CSIS प्रमुख वनेसा लॉयड ने स्पष्ट तौर पर विदेशी दखल की जाँच करने वाली कमिटी को बताया था कि पाकिस्तान कनाडा के भीतर दखल दे रहा है। उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान कनाडा के भीतर खालिस्तान समर्थकों को मदद करता है और साथ ही चुनावों में भी दखल देता है। पाकिस्तान यहाँ लोगों को दबाता भी है।

जस्टिन ट्रूडो ने इस खुलासे के ऊपर आँखे मूँद रखी हैं। उन्होंने पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी के ऊपर एक भी शब्द बोलने से इनकार कर दिया है। कनाडा के भीतर खालिस्तानियों को पाकिस्तान के साथ मिल कर भारत तोड़ने की साजिश रचने की पूरी छूट दी जा रही है। यह सब इसलिए ताकि ट्रूडो लगभग 7%-8% वोटबैंक बढ़ा सकें। चुनावी फायदे के लिए ट्रूडो ने अपने देश के रिश्तों को ताक पर रख दिया है। वह कनाडा की शिक्षा व्यवस्था का भी इससे बड़ा नुकसान करने वाले हैं।

चीन का दखल छुपाने का भी प्रयास

जस्टिन ट्रूडो का भारत विरोधी रवैये का एक और कारण है। यह कारण चीन का कनाडा की राजनीति और उसके चुनाव में दखल है। चीन के प्रभाव कनाडा में प्रभाव को ट्रूडो छुपाना चाहते हैं। कनाडाई चुनाव में दखल को लेकर एक जाँच चल रही है। जून, 2024 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक कुछ चीनी नागरिक, कनाडा के शासन और अर्थव्यवस्था में घुसपैठ करने और उसे प्रभावित करने के प्रयासों में लगे हुए हैं और लगे हुए हैं।

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कनाडा के चुनावों में दखल के लिए चीन सबसे बड़ा खतरा है। एक रिपोर्ट में तो यहाँ तक बताया गया था कि चीन ने कनाडा के भीतर अपने पुलिस स्टेशन तक बना लिए हैं। कनाडा में 7 चीनी पुलिस स्टेशन होने की बात कही गई थी। यह भी सामने आया था कि चीन ने कनाडा में कंजर्वेटिव पार्टी के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया। चीन ने कनाडा में सांसदों और कई नेताओं को धमकाने तक को लेकर प्रयास किए हैं। यहाँ तक कि जस्टिन ट्रूडो को जिताने में भी चीन का योगदान बताया जाता है।

चीन का कनाडा में दखल यहाँ राजनीति में बड़ा मुद्दा है। इसे दबाने को लेकर भी जस्टिन ट्रूडो भारत को निशाने पर ले रहे हैं। भारत लगातार कनाडा से खालिस्तानियों पर कार्रवाई की माँग करता आया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत की चिंताओं को लगातार नजरअंदाज करते आए हैं और साथ ही भारत विरोधियों को प्रश्रय देते रहे हैं। स्थानीय राजनीति चमकाने के लिए आतंकियों को बसाना कभी भी फायदे का सौदा नहीं होता है, जस्टिन ट्रूडो जितनी जल्दी यह समझेंगे, उतना ही कनाडा का नुकसान कम होगा।

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