धार्मिक घृणा को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) में भारत ने दुनिया के देशों द्वारा अपनाए जा रहे दोहरे मानदंड पर लताड़ लगाई है। भारत ने कहा कि ‘रिलीजियोफोबिया (Religiophobia)’ सिर्फ अब्राहमिक मजहबों (यहूदी, ईसाई और मुस्लिम) के लिए नहीं, बल्कि सभी धर्मों पर लागू होना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति (TS Tirumurti) ने कहा, “रिलिजियोफोबिया केवल 1 या 2 धर्मों को शामिल करने वाला एक चयनात्मक अभ्यास नहीं होना चाहिए, बल्कि गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ भी यह समान रूप से लागू होना चाहिए। धार्मिक भय पर दोहरे मानदंड नहीं हो सकते।”
#WATCH | Religiophobia should not be a selective exercise involving only 1 or 2 religions but should apply equally to phobias against non-Abrahamic religions as well… There cannot be double standards on religiophobia: TS Tirumurti, India's Permanent Rep to UN
— ANI (@ANI) June 19, 2022
(Source: UN TV) pic.twitter.com/dBPDUGbbi5
तिरुमूर्ति ने कहा, “हमने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि धार्मिक भय का मुकाबला करना केवल एक या दो धर्मों को शामिल करने वाला एक चुनिंदा अभ्यास नहीं होना चाहिए, बल्कि गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ भी समान रूप से लागू होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में कभी सफल नहीं हो सकेंगे।”
उन्होंने कहा कि भारत ने अब्राहिमक धर्मों के खिलाफ ही नहीं, बल्कि सिख धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म सहित सभी धर्मों के खिलाफ नफरत और हिंसा का मुकाबला करने के लिए लगातार कोशिश की है। दरअसल, तिरुमूर्ति हेट स्पीच (Hate Speech), गैर-भेदभाव और शांति के मूल कारणों को लेकर शिक्षा की भूमिका नाम से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय दिवस की पहली वर्षगाँठ पर बोल रहे थे।
तिरुमूर्ति ने आगे कहा, “हम सहनशीलता और समावेश को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश करते हैं। किसी भी विचार में भिन्नता को कानूनी ढाँचे के भीतर हल किया जाना चाहिए।” बीजेपी के दो नेताओं की टिप्पणी को लेकर कई मुस्लिम देशों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के मामले में सलाह देते हुए उन्होंने कहा, “दूसरे देशों को विशेष बात को मसला बनाकर भारत को आक्रोश दिखाने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।”
हिंदू-सिखों पर बढ़ते हमलों को लेकर उन्होंने कहा कि धार्मिक भय के रूपों को गुरुद्वारों, मठों और मंदिरों जैसे धार्मिक स्थलों पर हमलों में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है। गैर-अब्राहमिक धर्मों के खिलाफ घृणा और दुष्प्रचार के प्रसार में वृद्धि इसका उदाहरण है।
अफगानिस्तान (Afghanistan) में इस्लामिक कट्टरपंथ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कट्टरपंथियों द्वारा बामियान स्थित प्रतिष्ठित बुद्ध की मूर्ति को तोड़ना, गुरुद्वारे पर आतंकवादी हमला करना, हिंदू और बौद्ध मंदिरों का विनाश जैसे धार्मिक घृणा वाले कृत्यों की भी निंदा की जानी चाहिए।
बता दें कि अफगानिस्तान के काबुल में शनिवार (19 जून 2022) को गुरुद्वारा करते परवान पर आतंकी हमला किया गया, जिसमें दो लोगों के मौत हो गई है। वहीं, मार्च 2020 में अफगानिस्तान के ही एक गुरुद्वारे पर इस्लामिक आतंकियों ने हमला किया गया था, जिसमें 25 सिख मारे गए थे।
तिरुमूर्ति ने यह भी कहा कि भारतीय समाज की बहु-सांस्कृतिक ढाँचे ने सदियों से भारत को आश्रयदाता बनाया है। चाहे वह यहूदी समुदाय हो, पारसी समुदाय हो या पड़ोस का तिब्बती समुदाय, भारत ने सबको सुरक्षित शरण दिया है।
टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत आतंकवाद, खासकर सीमा पार आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार रहा है। उन्होंने कहा कि सभी देशों को एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा देकर आतंकवाद का मुकाबला करने में सही अर्थों में योगदान दे सके।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए 15 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित करने के लिए इस साल के शुरू में एक प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव को पाकिस्तान द्वारा पेश किया गया था।
भारत ने सिर्फ धर्म के खिलाफ फोबिया के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाने पर चिंता व्यक्त की थी। भारत ने कहा था कि धार्मिक भय के कई रूप आजकल बढ़ रहे हैं, जिनमें हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी फोबिया विशेष रूप से शामिल है।
तिरुमूर्ति ने तब कहा था कि भारत को उम्मीद है कि इससे चुनिंदा धर्मों के आधार पर फोबिया पर कई प्रस्तावों को जन्म देगा और संयुक्त राष्ट्र को धार्मिक में विभाजित करेगा। उन्होंने कहा था कि अब समय आ गया है कि केवल एक धर्म के बजाय संपूर्ण धार्मिक भय के प्रसार के रोक को स्वीकार किया जाए।
गौरतलब है कि हिंदू धर्म के 1.2 अरब, बौद्ध धर्म के 53.5 करोड़ और सिख धर्म के 3 करोड़ से अधिक अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं। वहीं, दुनिया भर इस्लाम मानने लोगों की संख्या 1.8 अरब और ईसाइयों की संख्या 2.3 अरब है। यहूदियों की संख्या 1.52 करोड़ और पारसियों की संख्या लगभग 2 लाख है।